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सरसों तेल के दाम ने लगाया महँगाई में पलीता

दीपक कुमार

आम आदमी को न रोते बन रहा है, न हँसते। वो मदारी का बंदर बन गया है जो महँगाई रूपी डुगडुगी पर नाचने के लिए मजबूर है। अभी प्याज और दाल की कीमतें गिरी भी नहीं थीं कि खाद्य तेलों ने महँगाई में पलीता लगा दिया।

खास कर सरसों तेल के भाव में भारी उछाल देखा जा रहा है। पिछले साल के मुकाबले सरसों तेल के भाव में करीब 40% से ज्यादा की तेजी है। दिल्ली में पिछले एक महीने में ही भाव 115 रुपये से बढ़ कर 147 रुपये प्रति लीटर तक पहुँच गया है। ऐसा लगता है जैसे बाज़ार पर जमाखोरों और कालाबाजारियों ने कब्जा जमा लिया है। घरेलू बाजार में खाने के तेल में उस वक्त उबाल आया है, जब पूरी दुनिया में खाद्य तेलों में नरमी है।

फीकी होगी दीवाली

सरसों तेल के बढ़े दाम से त्योहारों की रौनक फीकी पड़नी तय है। दीवाली यानी रोशनी का त्योहार, और इस त्योहार में पकवान से ले कर दीप जलाने तक, सभी में सरसों तेल का इस्तेमाल होता है। लेकिन एक महीने के अंदर ही भाव में आयी भारी तेजी ने खेल बिगाड़ दिया। सर्दी के मौसम में भी सरसों तेल की खपत बढ़ जाती है और भाव में तेजी से लोगों की जेब ज्यादा ढीली होगी।

खुदरा बाजार में सरसों तेल के भाव (रुपये/लीटर में)
शहर         अक्टूबर 2015  अक्टूबर 2014
दिल्ली      147                106
मुंबई        132                97
कोलकाता 129                96
चेन्नई      120               105
जयपुर      123               93
पटना       127               95

भाव में तेजी की वजह

सेंट्रल ऑर्गेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड यानी कोएट के अध्यक्ष लक्ष्मीचंद के मुताबिक रबी सरसों की खराब पैदावार की वजह से सरसों तेल के भाव बढ़े हैं। लक्ष्मीचंद कहते हैं कि इस साल एक तो उत्पादन कम हुआ, दूसरी गुणवत्ता भी खराब थी। मार्च-अप्रैल में हुई बारिश से सरसों की फसल को भारी नुकसान हुआ। कृषि विभाग के आँकड़ों पर गौर करें तो 2014-15 में सरसों की पैदावार पहले के वर्षों की तुलना में करीब 20% घट कर 63 लाख टन ही रह गयी। हालाँकि लक्ष्मीचंद कृषि विभाग के इस आँकड़ों को गलत बताते हैं। उनके मुताबिक इस साल सरसों का उत्पादन 50 लाख टन से भी कम हुआ है। बीएल एग्रो ऑयल्स लिमिटेड, बरेली के एमडी घनश्याम खंडेलवाल बताते हैं कि सर्दी के मौसम में खपत बढ़ने से सरसों तेल के भाव में और उछाल आ सकता है।

देश में सरसों का उत्पादन
साल उत्पादन (लाख टन)
2014-15      63
2013-14      78
2012-13      80
2011-12      66
2010-11      81

(स्रोत: कृषि एवं सहकारिता विभाग)

भाव में और आ सकती थी तेजी

सरसों तेल के बिजनेस से जुड़े लोग भाव में तेजी के पीछे जमाखोरी और कालाबाजारी की बात से भले ही इनकार करें लेकिन आम आदमी भाव में तेजी की बड़ी वजह जमाखोरी ही मान रहे हैं। उपभोक्ताओं का कहना है कि दाल की तरह सरसों तेल के भाव में भी भारी तेजी आ गयी होती अगर सरकार ने दाल जमाखोरों के खिलाफ छापेमारी अभियान नहीं चलाया होता। जमाखोरों के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकारों ने कड़ा रुख अपना रखा है, इसलिए इस वक्त लगभग हर कमोडिटी के कारोबारी और स्टॉकिस्ट में दहशत है। अनुमान के मुताबिक दाल को लेकर जारी छापेमारी की वजह से जमाखोरों की गिरफ्त में सरसों ज्यादा नहीं आ पाया।

दूसरे खाद्य तेलों में नरमी

साल 2014-15 में दुनिया में खाद्य तेलों के उत्पादन में बढ़ोतरी की वजह से गिरावट का माहौल है। हालाँकि सितंबर में अमेरिकी कृषि विभाग की रिपोर्ट में 2015-16 फसल वर्ष के लिए ग्लोबल स्तर पर तिलहन उत्पादन घटने का अनुमान बताया गया है। अगस्त में आयी रिपोर्ट के मुकाबले सितंबर की रिपोर्ट में दुनिया में तिलहन उत्पादन 19 लाख टन घट कर 52 करोड़ 72 लाख टन रहने का अनुमान जारी किया गया। अनुमानित उत्पादन घटने का असर आने वाले दिनों में कीमतों पर पड़ सकता है। वहीं पाम ऑयल के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश मलेशिया में पिछले महीने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने की घोषणा से पाम ऑयल उद्योग पर असर पड़ने की आशंका है। मलेशिया में अगर पाम ऑयल की कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो वैश्विक बाजार में भाव में इजाफा होगा जिसका सीधा असर भारत पर पड़ सकता है लेकिन वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों में फिलहाल नरमी है। देश में खाद्य तेलों की जरूरत को पूरा करने के लिए आयात होने वाले तेल में सबसे ज्यादा पाम ऑयल का आयात होता है। जरूरत को पूरा करने के लिए इंडोनेशिया और मलेशिया से भारत पाम ऑयल का आयात करता है। सितंबर में भारत सरकार ने खाद्य तेलों पर लगने वाले आयात शुल्क में भी 5% की बढ़ोतरी कर दी है। बावजूद इसके घरेलू बाजार में अब भी सरसों तेल को छोड़ कर दूसरे खाद्य तेलों के भाव काफी नीचे बने हुए हैं।

रिटेल में दूसरे खाद्य तेलों के दाम

शहर                                             सनफ्लावर ऑयल                                        पाम ऑयल

                                      अक्टूबर 2015          अक्टूबर 2014          अक्टूबर 2015            अक्टूबर 2014
                                       (रुपये/लीटर)             (रुपये/लीटर)            (रुपये/लीटर)               (रुपये/लीटर)
दिल्ली                                  102                         105                         70                             86
मुंबई                                      81                           80                         59                             61
कोलकाता                               92                           82                          61                            62
चेन्नई                                    92                           85                          54                            60

(स्रोत : उपभोक्ता मामलों का विभाग)

खाद्य तेल भी विदेश के भरोसे

भारत में खाद्य तेल की खपत 225 लाख टन से भी ज्यादा है लेकिन उत्पादन सिर्फ 101 लाख टन के करीब हो पाता है। यानी हमें हर साल करीब 120-125 लाख टन खाद्य तेल आयात करना पड़ता है लेकिन इस साल आयोग बढ़ कर 150 लाख टन तक पहुँचने का अनुमान है। यानी कुल जरूरत का करीब 70% से भी ज्यादा खाद्य तेल आयात करना पड़ता है। मस्टर्ड रिसर्च प्रमोशन कंसोर्टियम यानी एमआरपीसी के प्रवक्ता उमेश वर्मा बताते हैं कि तिलहन की खेती को लेकर सरकार की उदासीनता की वजह से देश में तिलहन का उत्पादन लगतार घट रहा है। सरसों तेल सेहत के लिए फायदेमंद होने के बावजूद हम विदेशों से आयातित पाम ऑयल पर निर्भर हैं, जो सेहत के लिए भी नुकसानदेह है। उमेश वर्मा कहते हैं कि देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। अगर सरकार किसानों को बढ़ावा देती है तो देश में तिलहन का उत्पादन 100 लाख टन को आसानी से पार कर सकता है। कोएट अधअयक्ष लक्ष्मीचंद के मुताबिक सरकार को आयातित तेल पर सेस लगाकर उससे मिली रकम से एक फंड तैयार करना चाहिए जिसका इस्तेमाल देश में तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किया जा सके।

देश में खाद्य तेलों का आयात
साल                                    सोयाबीन तेल                     पाम ऑयल                         सनफ्लावर ऑयल
                                            (मिलियन टन)                   (मिलियन टन)                         (मिलियन टन) 
2014-15 (अप्रैल-दिसंबर)               1.7                                    6.3                                          1.3

2013-14                                      1.3                                     7.6                                          1.1

2012-13                                      1.1                                     8.4                                          1.1
2011-12                                      0.8                                     6.5                                          0.8
2010-11                                      1.2                                     4.9                                          0.6

(स्रोत: वाणिज्य विभाग)

कब तक घटेंगे भाव
सरसों तेल के भाव में फिलहाल कुछ महीनों तक कमी के आसार नहीं हैं। मार्च में सरसों की नयी फसल आने के बाद ही कीमतों में गिरावट शुरू होगी। कृषि मंत्रालय के ताजा आँकड़ों के मुताबिक 30 अक्टूबर तक देश भर में रबी तिलहन का रकबा 55% पिछड़ा हुआ पाया गया । 30 अक्टूबर तक देश में सिर्फ 9.43 लाख हेक्टेयर में ही रबी तिलहन की बुआई हुई। जबकि पिछले साल इस दौरान 20.83 लाख हेक्टेयर में तिलहन की बुआई हो गई थी। हालाँकि मस्टर्ड रिसर्च प्रमोशन कंसॉर्टियम के प्रवक्ता उमेश वर्मा कहते हैं कि देर से ही सही लेकिन तिलहन की बुआई का रकबा बढ़ेगा। देर से हुई बारिश और सर्दी शुरू होने से जमीन में नमी है और इस बार किसानों को अच्छे भाव मिलने की भी उम्मीद है। हालाँकि कोएट अध्यक्ष लक्ष्मीचंद के मुताबिक दाल कीमतों में आयी भारी तेजी से किसानों का रुझान दाल की बुआई में अधिक है। ऐसे में तिलहन की बुआई का रकबा घट सकता है। अगर अगले मौसम में भी उत्पादन पर असर पड़ता है तो भाव बहुत ज्यादा नीचे आने की गुंजाइश कम है। देश में तिलहन की मुख्य फसलें सोयाबीन, मूँगफली, सरसों और अलसी हैं जो कुल तिलहन उत्पादन का करीब 90% योगदान करती हैं। (शेयर मंथन, 07 नवंबर, 2015)

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