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तीसरी-चौथी तिमाही से अच्छा होगा बाजार : विजय मंत्री (Vijai Mantri)

बाजार एक दायरे में है, मगर यह अंदर से मजबूत है। इस समय बाजार सभी सकारात्मक बातों को नजरअंदाज कर रहा है। यह इक्विटी में संपत्तियाँ बनाने का बहुत अच्छा समय है।

हाल की कमजोरी में वैश्विक संकेतों के साथ-साथ बिहार में एनडीए को मिली हार का भी योगदान रहा है। हालाँकि एक प्रमुख कारण यह है कि विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) बिकवाली कर रहे हैं। एफआईआई इस बात से निराश हैं कि पिछले कई वर्षों में डॉलर में उन्हें भारतीय बाजार से कुछ खास मुनाफा नहीं हुआ है। उनकी बिकवाली आगे भी जारी रह सकती है, हालाँकि उनकी बिकवाली के मुकाबले में म्यूचुअल फंडों की खरीदारी आ रही है। इसलिए एफआईआई बिकवाली का असर हल्का ही रहेगा।
एफआईआई दरअसल थक गये हैं। साल 2007 में जब बहुत निवेश आया था तो डॉलर का भाव 40 रुपये के आसपास चला गया था। तब सेंसेक्स 18000-20000 का था। अब 7-8 साल बाद सेंसेक्स वहाँ से करीब 50% ऊपर है, जबकि डॉलर की तुलना में रुपया 50% से ज्यादा गिरा हुआ है। इसलिए डॉलर में देखें तो एफआईआई ने पैसा ही नहीं बनाया।
दूसरी तिमाही में कंपनियों के कारोबारी नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं, मगर आने वाला समय अच्छा रहने की उम्मीद है। इसको 1993-94 के समय से मिला कर समझना होगा। उस समय अर्थव्यवस्था में जो बदलाव हुए, उसमें बिखर जाने वाली चीजों को लेकर मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं हुई। उस समय काफी उद्योग खत्म हुए या प्रभावहीन हो गये। अगर 1990 का सेंसेक्स देखें तो उसमें सेंचुरी टेक्सटाइल और मफतलाल इंडस्ट्रीज जैसे नाम शामिल थे, जो आज कहीं नहीं हैं। तब पुरानी अर्थव्यवस्था कमोडिटी पर आधारित थी, जो उस समय खत्म हो गयी। यह एक बड़ा पहलू है।
दूसरी बात यह है कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती जमीन-जायदाद (रियल एस्टेट) से जुड़ी है। कोई सामान्य निवेशक हो या एसएमई हो या बड़ा उद्योगपति हो, सभी रियल एस्टेट में बहुत फँसे हुए हैं। किसी से पूछें तो उनकी कुल संपत्ति 20 करोड़ रुपये की है, मगर बैंक खाते में 50 लाख रुपये भी नहीं पड़े हैं। लोगों का ज्यादातर निवेश जमीन-जायदाद में अटक गया है। उनकी दिक्कत यह है कि वे इससे बाहर नहीं निकल सकते। उसकी वजह से व्यक्ति की जोखिम लेने की क्षमता घट जाती है।
समस्या उनकी नहीं है जिन्होंने एक घर में पैसा लगा रखा है। जिन्होंने बहुत सारे मकान ले रखे हैं, उनके सामने समस्या है। बहुत-सारे निवेशक तो ऐसे हैं, जिनके पास 50, 100 या 150 तक फ्लैट हैं। इनमें अधिकांशतः एसएमई हैं। अब भला वे अपने व्यवसाय में कैसे जोखिम ले पायेंगे? लोगों का सारा पैसा रियल एस्टेट में है। साथ में इसके चलते रियल एस्टेट में एक कृत्रिम कमी भी बनी हुई है। यह कुछ वैसा ही है, मानो एफसीआई के गोदाम में अनाज पड़ा हो और लोग भूखे मर रहे हों। आज स्थिति यह है कि रियल एस्टेट में सात-सात साल तक की इन्वेंट्री हो गयी है।
इसके बाद तीसरा पहलू ई-कॉमर्स का है। ई-कॉमर्स की वजह से बहुत से व्यवसायों के मार्जिन पर असर पड़ रहा है। इसे कह सकते हैं कि मलाई जा रही है धंधे से। हम वापस ऐसे दौर में जा रहे हैं, जिसमें पैसा कमाना बहुत मुश्किल हो रहा है। साल 2003-04 से लेकर 2007-08 तक के समय में हमने बहुत आसान समय देखा। उस समय संपत्तियों की कीमतें बढ़ रही थीं। दूसरी ओर बीते 10-15 वर्षों में लोगों के रहन-सहन का स्तर और खर्चे काफी बढ़ गये हैं।
साथ ही नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की वजह से अर्थव्यवस्था में काले धन पर अंकुश लग गया है। मोदी काले धन के पीछे पड़े हैं। पहले जो पैसा आसानी से आ रहा था, वह अब नहीं आ पा रहा है। काला धन पैदा ही नहीं हो पा रहा है।
इसके अलावा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव इसलिए दिख रहा है कि जन धन योजना और खातों में सीधे पैसा हस्तांतरित करने के चलते गाँवों में मनरेगा के तहत सरपंचों के पास जो पैसा होता था, वह खत्म हो रहा है। अगर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेज खपत वाली उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) की माँग की बात करें, तो आम उपभोक्ता स्थानीय ब्रांड खरीदते हैं और गाँव के चौधरी और सरपंच बड़े ब्रांड खरीदते हैं।
इसलिए मेरा कहना है कि अर्थव्यवस्था तो अब भी मजबूत है, मगर मलाई वाली वृद्धि पर थोड़ा असर पड़ा है। मगर इसके अंदर जा कर देखें तो हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत ही हो रही है। कमोडिटी की वैश्विक कीमतों में कमी से इसे काफी मदद मिल रही है। अभी हमारी अर्थव्यवस्था एक समायोजन के दौर से गुजर रही है। यह समायोजन साल 2008 की मंदी के बाद ही हो जाना चाहिए था, मगर तब हमने एक देश के रूप में उदारता से खर्चे किये, इसलिए वह समायोजन अब हो रहा है।
अभी कंपनियों को तीन-चार बातें मदद कर रही हैं। वे कामकाजी स्तर पर काफी अच्छी स्थिति में आ गयी हैं। कर्मचारियों की लागत काफी तर्कसंगत स्तर पर है, किराये पर खर्च भी काफी वाजिब हो गया है, कच्चे माल की लागत घट रही है और ब्याज लागत भी आने वाले समय में घटेगी। इसलिए आने वाले समय में बिक्री में 1% की वृद्धि होने पर मुनाफे में 3-4% तक की वृद्धि हो जायेगी। हम अभी वह दौर शुरू होने से ठीक पहले की स्थिति में हैं।
हालाँकि इसका असर कंपनियों के तीसरी तिमाही के नतीजों में नहीं दिखेगा, उसमें समय लगेगा। बेशक, तीसरी-चौथी तिमाही से चीजें अच्छी होने लगेंगी और बाजार भी अच्छा होने लगेगा। पर अभी कंपनियों के मुनाफे में ज्यादा फर्क नहीं आयेगा। बाजार हर चीज को समय से पहले ही भुनाने की कोशिश करता है। कंपनियों के नतीजों में असर जून 2016 से दिखेगा, पर उससे पहले बाजार बहुत चढ़ जायेगा। अभी तीन महीने तो बाजार अभी जैसी स्थितियों में ही रहने वाला है, पर उसके बाद आपको आश्चर्य होगा कि हम फेडरल रिजर्व की ब्याज दरें बढ़ने का हौवा कितनी जल्दी भूल जायेंगे।
बाजार में यहाँ से आने वाली कोई गिरावट 5-7% से ज्यादा की नहीं होगी। ऊपर की ओर निफ्टी 8500-9000 के आसपास जाता हुआ दिखेगा। नया उच्चतम स्तर छूने में शायद अभी एक-डेढ़ साल का समय लग जायेगा। अभी कोई 30-40% वाली तेजी नहीं आयेगी। लेकिन भले ही आप सालाना आधार पर 10-12% का लाभ कमा सकें, पर वह भी अच्छा माना जायेगा क्योंकि सोना, रियल एस्टेट वगैरह किसी दूसरी संपदा में लाभ मिलेगा ही नहीं। लोगों के पास कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है। यही वजह है कि अभी म्यूचुअल फंडों के पास बहुत पैसा आ रहा है। विजय मंत्री, सलाहकार, निर्मल बांग समूह (Vijai Mantri, Advisor, Nirmal Bang Group)

(शेयर मंथन, 23 नवंबर 2015)

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