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बाजार के सामने बाकी हैं चुनौतियाँ

बाजार में तुरंत आगे क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। ऊपर की ओर तकनीकी रूप से निफ्टी का 8,450 का अगला लक्ष्य बनता है। वहीं नीचे 7,900 से ज्यादा फिसलने की आशंका मुझे नहीं लगती।

हालाँकि अगर यह 7,900 के नीचे चला गया तो यह 7,700 तक भी फिसल सकता है। दरअसल लोग 7,900 तक की नरमी में तो खरीदते रहेंगे, लेकिन इसके नीचे जाने पर बाजार में लोगों का नजरिया बदल जायेगा।

इस समय बाजार के सामने कुछ चुनौतियाँ दिख रही हैं। मध्य-पूर्व के देशों में जो कुछ हो रहा है और उसमें अमेरिका के कूद पड़ने की बातें हो रही हैं, उसके बावजूद कच्चे तेल का भाव 100 डॉलर प्रति बैरल के नीचे आ रहा है। इसका हिसाब ठीक बैठता नहीं है। यह तूफान के पहले की शांति लगती है।

दूसरी बात, आप अमेरिका में बॉण्ड यील्ड देखें। जब बेन बर्नांके ने मई 2013 में कहा था कि हम मौद्रिक ढील (क्वांटिटेटिव ईजिंग या क्यूई) खत्म करेंगे, तो 10 साल के बॉण्ड का यील्ड 3% हो गया था और बाजार में हाहाकार हो गया था। अब 15 महीनों के बाद इसे खत्म करने का पूरा खाका सामने है, हमें मालूम है कि दिसंबर तक यह हो जायेगा, इसके बावजूद अमेरिकी बॉण्ड यील्ड पिछले साल की तुलना में 0.60% अंक नीचे है। होना यह चाहिए था कि मौद्रिक प्रोत्साहन खत्म होने पर बॉण्ड यील्ड बढ़ता। लेकिन इसका उल्टा हुआ है। सोना भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले साल से करीब 350 डॉलर प्रति औंस नीचे आ गया है।

यह सारी बातें दिखी रही हैं कि निवेशकों में जोखिम उठाने का माहौल बढ़ा है। इसका अच्छा-खासा असर उभरते बाजारों पर दिख रहा है। विकसित देशों में जब सारा खेल हो गया तो उसके बाद निवेशकों का ध्यान उभरते बाजारों पर ही जायेगा। दुनिया के बाजार में तो हम उभरते हुए मँझोले नाम ही हैं।

इसलिए मैं कह नहीं सकता कि यह पार्टी कब तक चलेगी। लेकिन बाजार में पूरी तरह आम सहमति दिख रही है। आपको सावधानी की बातें कहीं भी सुनने को नहीं मिल रही हैं। मेरा मानना है कि बाजार का असली रुझान दिसंबर-जनवरी तक दिखेगा। उस समय तक दूसरी तिमाही के जीडीपी के आँकड़े सामने आ जायेंगे। साथ ही रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने महँगाई के बारे में अपना अनुमान रखा है कि जनवरी 2015 तक यह 8% पर और जनवरी 2016 तक 6% पर आ जायेगी।

लेकिन पिछली बार जब रघुराम राजन से पूछा गया तो उन्होंने यह नहीं बताया कि दोनों में से किस अनुमान पर उनका ज्यादा जोर है। अभी जनवरी आते-आते अगर खुदरा महँगाई दर (सीपीआई) 8-8.5% पर आ गयी तो ब्याज दरों में कटौती का हल्ला मचने लगेगा। मगर आरबीआई कह सकता है कि वह अब 6% का इंतजार कर रहा है। जब तक संरचनात्मक बदलाव नहीं होते, तब तक सीपीआई का 8% से एकदम 6% पर आ जाना मुश्किल होगा।

पहली तिमाही के बाद कैपिटल गुड्स क्षेत्र के लोगों ने बताया कि उन्हें जमीनी तौर पर कुछ बदलाव नहीं दिखा है। दूसरी तिमाही के बाद भी लोग यही बोलेंगे। उस समय तक अगर वैश्विक बाजारों में भी एक झटका लगा तो लोग इन सारी बातों पर नजर डालेंगे।

लोग डीजल के नियंत्रण-मुक्त होने की बातें करने लगे हैं। लेकिन सरकार ने अब तक कहा नहीं है कि वह ऐसा कर रही है। अभी वस्तुस्थिति यह जरूर है कि डीजल पर होने वाला घाटा शून्य हो गया है। लेकिन इसका मतलब नियंत्रण-मुक्त कर देना नहीं है। अगर डॉलर की कीमत फिर से 63 रुपये हो जाये और कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर पर चली जाये तो फिर से डीजल पर घाटा चालू हो जायेगा।

बाजार में अभी यह चर्चा भी है कि सरकार रसोई गैस (एलपीजी) पर हर महीने 10 रुपये प्रति सिलिंडर के हिसाब से दाम बढ़ाने का फैसला करने वाली है। लेकिन यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि विधानसभा चुनावों के नतीजे कैसे आते हैं। इन चुनावों के बाद ही वे फैसला करेंगे कि यह करना भी है या नहीं।

अगर एकदम निकट की अवधि के हिसाब से देखें तो बढ़त की सारी गुंजाइश पहले ही भुना ली गयी है, जबकि अभी जोखिम बाकी हैं। इसलिए तकनीकी रूप से चार्ट पर भले ही निफ्टी के लिए 8,450 के लक्ष्य दिखने लगे हों, लेकिन एक निवेशक के लिए ऐसे लक्ष्य ज्यादा मायने नहीं रखते। हम लोग तो जोखिम के इन पहलुओं को देख रहे हैं।

हमने पिछले महीनों और वर्षों में सही समय पर और सही भावों पर खरीदारी कर रखी है। इसलिए अब हम उस खरीदारी को पकड़ कर बैठे हैं। हम टेस्ट मैच वाले खिलाड़ी हैं। जब तक गेंद हमारे पास आती नहीं है, हम खेलते नहीं हैं।

हमें बाजार में सूचकांक के लिहाज से ज्यादा बड़ी गिरावट की आशंका नहीं है। जिन क्षेत्रों में हमारी रुचि है, उनमें निजी बैंकों और आईटी को छोड़ दें तो मूल्यांकन ऊँचे हो गये हैं। मँझोले शेयर तो हाथ में ही नहीं आ रहे। यह स्थिति बहुत हद तक सुधरेगी। इसलिए निफ्टी भले ही 7800 पर बना रहे, लेकिन बहुत से मँझोले शेयर 30-40% नीचे आ सकते हैं। हम उसका इंतजार करेंगे। जब तक गेंद हमारे खाने में आयेगी नहीं, तब तक हम खेलेंग नहीं।

बाजार में सबसे ज्यादा नरमी चक्रीय (साइक्लिकल) क्षेत्रों के मँझोले शेयरों में ही होगी। मैं बुनियादी ढाँचा और कैपिटल गुड्स वाले शेयरों की बात नहीं कर रहा। मैन्युफैक्चरिंग की मँझोली कंपनियों के शेयरों में अच्छी नरमी आ सकती है। (शेयर मंथन, 16 सितंबर 2014) 

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