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बजट 2014 : थोड़ी राहत, थोड़ा सुधार

राजीव रंजन झा : अरुण जेटली ने आय कर में छूट की सीमा बढ़ा कर मध्यम वर्ग का दिल जीतने की कोशिश की है। अब ढाई लाख रुपये तक कर छूट, धारा 80सी के तहत एक लाख के बदले डेढ़ लाख रुपये तक की छूट और आवास ऋण के ब्याज पर डेढ़ लाख के बदले दो लाख रुपये की छूट को जोड़ कर देखें, तो कर छूट की सीमा छह लाख रुपये पर पहुँच गयी है।

लेकिन यह एक तरह से पिछला बकाया चुकाने जैसा ही है। जिस तरह रेल के किराये बहुत पहले बढ़ जाने चाहिए थे, उसी तरह आय कर में छूट की सीमाएँ भी पहले ही बढ़ जानी चाहिए थीं। ऐसा करने से सरकार कभी यह कह कर बचती रही कि नयी प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) में यह काम होगा, तो कभी धीमी अर्थव्यवस्था के बीच सरकारी आमदनी घटने के डर से यह काम नहीं हुआ। वैसे भी आय कर में छूट की सीमा तीन लाख रुपये पर ले जाने की बात थी, अभी आधा ही काम हुआ है।

इस बजट में वित्त मंत्री ने स्पष्ट रूप से मोदी की छाप दिखाने की भी कोशिश की है। उन्होंने 100 स्मार्ट शहरों की योजना और 2022 तक सबको घर देने का वादा करके मोदी के चुनावी भाषणों और भाजपा के घोषणा-पत्र को ही बजट दस्तावेज में जगह दी है। लेकिन सामान्य रूप से पूरे बजट में आर्थिक उदारीकरण की झलक दिखती है। तमाम जगहों पर उद्योग जगत को राहत देने की कोशिश की गयी है, लेकिन इस रूप में कि उसका सकारात्मक असर विकास दर पर हो सके।

सरकार 100 स्मार्ट शहरों की योजना को किस तरह आगे बढ़ायेगी, इसका विस्तृत विवरण आना बाकी है। इस कारोबारी साल के दौरान इस योजना के मद में 7060 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो इस योजना के संभावित आकार के लिहाज से छोटी रकम है। लेकिन योजना के आरंभ की दृष्टि से यह अपने-आप में कम भी नहीं है। अभी यह स्पष्ट होना बाकी है कि इस योजना को एकमुश्त ढंग से चलाया जायेगा, यानी 100 शहरों का काम एक साथ शुरू होगा या इसे छोटे-छोटे चरणों में बाँटा जायेगा। संभव है कि इसे पहले कुछ चुनिंदा जगहों पर पायलट योजना के रूप में चलाया जाये और उसके बाद इसका विस्तार किया जाये।

इस योजना को 2022 तक सबको घर देने के महत्वाकांक्षी वादे का एक हिस्सा भी माना जा सकता है। लेकिन यह अपने-आप में बड़ी चुनौती है कि अगले आठ वर्षों के दौरान ही सबको घर देने का लक्ष्य पूरा किया जाये। जब तक इस बात का विवरण सामने न आ जाये कि सरकार यह लक्ष्य कैसे पाना चाहती है, तब तक इसे लेकर एक अविश्वास बना रहेगा।

उदारीकरण की राह पर चलते हुए रक्षा और बीमा क्षेत्रों में 49% एफडीआई की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा गया है। वैश्वीकरण और उदारीकरण के विरोधी इस पर अपनी बाहें जरूर चढ़ायेंगे, लेकिन दूसरी ओर यह दलील देने वाले भी कम नहीं हैं कि 49% एफडीआई के बाद भी विदेशी कंपनियाँ इस क्षेत्र में आने के लिए तत्पर नहीं होंगी। उनका कहना है कि 51% से कम एफडीआई पर विदेशी कंपनियाँ तकनीक हस्तांतरण के लिए तैयार नहीं होंगी। इसलिए जिस तरह 26% एफडीआई की अनुमति से रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश नहीं आया, उसी तरह 49% तक एफडीआई की छूट के बाद भी स्थिति जस-की-तस रहेगी। हालाँकि तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि 49% एफडीआई लगभग बराबर मुनाफे का सौदा है। विदेशी कंपनियों को अगर यहाँ बड़ा बाजार दिखेगा, तो वे आने के लिए आकर्षित क्यों नहीं होंगी?

मेरे विचार से इस बजट की असली परीक्षा इस बात को लेकर होगी कि यह भारत के आर्थिक विकास दर को बढ़ाने और निवेश का नया चक्र शुरू करने में किस हद तक सफल रहता है। बजट में जो प्रस्ताव किये गये हैं, वे इस संदर्भ में सकारात्मक लगते हैं। इस साल 8,000 किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य हो या 16 नये बंदरगाह बनाने के लिए 11,644 करोड़ रुपये की योजना हो, उनके पीछे एक सामान्य ध्येय यह दिखता है कि बुनियादी ढाँचे पर निवेश बढ़ा कर विकास के रास्ते में आने वाली अड़चनों को दूर किया जाये। बिजली कंपनियों को 10 साल का टैक्स हॉलिडे देना और उसके लिए 2017 तक परियोजना पूरी करने की शर्त रखना भी यही दिखाता है कि सरकार बुनियादी ढाँचे पर तुरंत काम तेज करने मंशा रखती है और समयबद्ध ढंग से नतीजे पाना चाहती है।

नयी सरकार से अभी आम जनता से लेकर उद्योग जगत तक सबकी उम्मीदें कायम हैं और मोहभंग जैसी स्थिति से लोग काफी दूर हैं। इसीलिए उद्योग जगत ने कुछ बातों पर अपनी निराशा को फिलहाल छिपा लिया है। उद्योग जगत माँग कर रहा था कि प्रणव मुखर्जी ने पिछली तारीख से लागू जो कर संशोधन (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स अमेंडमेंट) किये थे, उन्हें खत्म किया जाये। अरुण जेटली ने केवल इतना भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार पिछली तारीख से टैक्स वाले कानून नहीं बनायेगी। लेकिन जो मुकदमे पहले से चल रहे हैं, उनकी केवल समीक्षा करने की बात कही गयी है।

इसके अलावा लोग उम्मीद कर रहे थे कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर सरकार एक स्पष्ट समय-सीमा सामने रखे। कुछ लोगों ने तो बढ़-चढ़ कर कहा था कि इसकी तारीख अप्रैल 2015 से ही तय की जानी चाहिए। लेकिन अरुण जेटली अपने बजट भाषण में केवल जीएसटी पर प्रतिबद्धता जता कर आगे बढ़ गये, यह नहीं बताया कि इसे कब से लागू करने वाले हैं। मगर इन निराशाओं को लेकर हमें उद्योग जगत की ओर से कोई तीखी आलोचना सुनने को नहीं मिली। इसका मतलब यही है कि लोग इस सरकार को अभी समय देना चाहते हैं। Rajeev Ranjan Jha

(शेयर मंथन, 11 जुलाई 2014)

 

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