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जीएसटी (GST) : कर जंजाल से मिलेगी राहत

भारतीय कर प्रणाली की उलझनों को सुलझाने के लिए मोदी सरकार ने लोकसभा में जीएसटी (GST) विधेयक पेश कर दिया है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार 19 दिसंबर को जीएसटी विधेयक को लोकसभा के सामने रखा। उम्मीद की जा रही है कि उद्योग जगत और व्यवसायियों को अलग-अलग ढेर सारे करों के जंजाल से मुक्ति मिल सकती है, जिनसे वे रोजाना दो चार होते हैं। केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्‍क (एक्साइज ड्यूटी), अतिरिक्‍त उत्‍पाद शुल्‍क, सेवा कर (सर्विस टैक्स), अतिरिक्‍त सीमा शुल्‍क और विशेष अतिरिक्‍त सीमा शुल्‍क आदि केन्‍द्रीय करों को जीएसटी में मिला दिया जायेगा। इसी प्रकार राज्‍य स्‍तर पर वैट/बिक्री कर, केन्‍द्रीय बिक्री कर, मनोरंजन कर, चुंगी और प्रवेश कर (एंट्री टैक्स), खरीद कर और विलासित कर आदि का जीएसटी में विलय कर दिया जायेगा।

जीएसटी कर प्रणाली को लागू करने की कोशिशें यूपीए सरकार के समय ही शुरू हो गयी थीं, हालाँकि इसकी अवधारणा वाजपेयी सरकार के समय ही सामने रखी गयी थी। वर्ष 2006-2007 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस बारे में प्रस्ताव रखा था। उसके बाद से ही जीएसटी के प्रावधानों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विभिन्न मुद्दों को सुलझाने के लिए लगातार बातचीत चलती रही है।

राज्य सरकारों को यह आशंका रही है कि जीएसटी लागू होने पर करों से उनकी आय घट सकती है। मगर केंद्र सरकार ने विधेयक में आश्वस्त किया है कि जीएसटी लागू होने से राज्‍यों को होने वाली हानि के लिए वह पाँच वर्षों तक उन्‍हें क्षतिपूर्ति करेगी। पहले तीन वर्ष तक 100%, चौथे वर्ष 75% और पाँचवें वर्ष 50% क्षतिपूर्ति की जायेगी।

क्या होगा जीएसटी से?

जीएसटी लागू होने के बाद बिक्री कर, सेवा कर, उत्पाद शुल्क वगैरह इतिहास बन जायेंगे। विशेषज्ञों के मुताबिक जीएसटी लागू होने के बाद देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 2% तक अतिरिक्त वृद्धि संभावित है।

जीएसटी लागू होने से कर चोरी में कमी आने और कर संग्रह में वृद्धि होने की उम्मीद है, क्योंकि जीएसटी कर प्रणाली पूरी तरह से ऑनलाइन है, जिससे कर ढाँचा पारदर्शी भी होगा और करों में असमानता भी नहीं होगी। 

जीएसटी से काफी हद तक कर विवादों में कमी आयेगी और ढेरों कर कानून और नियमनों के झंझट से भी छुटकारा मिलेगा। जीएसटी कर प्रणाली से पूरे देश में करों की दरें एक जैसी होंगी, जो करों की सुधार प्रक्रिया में निःसंदेह एक बड़ा कदम है। इसके लागू होने के बाद वस्तुओं और सेवाओं की खरीद पर अदा किये गये जीएसटी को उनकी आपूर्ति के वक्त दिये जाने वाले जीएसटी के मुकाबले समायोजित कर दिया जाता है।

विधेयक में प्रावधान है कि केंद्र और राज्य सरकारों, दोनों को साथ-साथ जीएसटी लगाने का अधिकार होगा। केंद्र सरकार सीजीएसटी लगायेगी और राज्य सरकारें अपनी सीमा के अंदर होने वाले लेनदेन पर एसजीएसटी। इसके अलावा आईजीएसटी यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी भी होगा जो एक से अधिक राज्यों के बीच होने वाले लेनदेन पर लगेगा। इसकी वसूली केंद्र सरकार करेगी और आनुपातिक रूप से राज्यों में वितरित करेगी। 

फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि जीएसटी की दरें कितनी होंगी। विधेयक में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इस बारे में जीएसटी काउंसिल के सुझाव के मुताबिक दरें तय होंगी। इससे पहले एम्पावर्ड कमेटी की उपसमिति की एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि रेवेन्यू न्यूट्रल रेट पर एसजीएसटी 13.91% और सीजीएसटी 12.77% रखी जानी चाहिए। दोनों को मिला कर कुल 26.78% की दर बनती है। (शेयर मंथन, 20 दिसंबर 2014)

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