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मंत्रिमंडल से ज्यादा आरबीआई (RBI) पर रहेगी बाजार की नजर

Rajeev Ranjan Jhaराजीव रंजन झा : केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़े स्तर पर फेरबदल राजनीतिक दृष्टि से एक बड़ी खबर है, लेकिन क्या शेयर बाजार पर इसका कोई विशेष प्रभाव दिखेगा?

ऐसा कम ही लगता है। इसके बदले आज बाजार इस बात पर कयास लगाने में ज्यादा व्यस्त रहेगा कि 30 अक्टूबर को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) क्या करने वाला है। अब तक यही लगता है कि बाजार इस बार आरबीआई की समीक्षा बैठक को लेकर ज्यादा उम्मीदें नहीं लगा रहा है, कम-से-कम ब्याज दरों को लेकर। आम तौर पर लोग यही मान रहे हैं कि ब्याज दरों में तो शायद कमी नहीं हो, अगर कमी होगी तो बस नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में होगी। सीआरआर में कटौती को लेकर भी उम्मीदें आधी-अधूरी ही हैं। इसलिए अगर आरबीआई की ओर से हमें मंगलवार को कोई अच्छी खबर मिली तो उसका सकारात्मक असर दिखना चाहिए।
मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल के बीच अगर बाजार के नजरिये से कोई महत्वपूर्ण बदलाव है, तो वह है पेट्रोलियम मंत्रालय में जयपाल रेड्डी के बदले वीरप्पा मोइली का आना। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बदलाव की वजह से रिलायंस और सरकार के बीच छिड़े विवादों में सरकार का रुख कुछ बदलता है क्या? अगर ऐसा बदलाव दिखा तो उसे लोग सीधे तौर पर नये मंत्री से जोड़ कर ही देखेंगे। वीरप्पा मोइली को पता है कि उन्हें राजनीतिक रूप से संवेदनशील मंत्रालय मिला है। जनवरी 2011 में एस जयपाल रेड्डी के आने के बाद से ही इस मंत्रालय में रिलायंस के लिए दिक्कतें बढ़ने लगी थीं। हालाँकि हाल में ऐसे संकेत मिले कि कुछ मुद्दों पर बर्फ पिघलने लगी है।
रेड्डी के जाने और वीरप्पा मोइली के आने से जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि कुछ जानकारों के मुताबिक प्रधानमंत्री की पसंद और दखल की वजह से रेड्डी को पेट्रोलियम मंत्रालय मिला था। खैर, हमारा संविधान तो कहता है कि कोई भी मंत्री प्रधानमंत्री की इच्छा बने रहने तक उस पद पर रहता है।
इस बार काफी अटकलें चलीं कि शायद राहुल गाँधी मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं। प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कहा भी कि वे उन्हें मंत्रिमंडल में लाना चाहते थे, लेकिन राहुल गाँधी संगठन के लिए काम करना चाहते हैं। लेकिन राहुल गाँधी के लिए मंत्री पद क्या चीज है! उनकी ‘कृपा’ से लोग मंत्रिमंडल में आते-जाते हैं। वे एक सामान्य-सा मंत्री बन कर अपने आभामंडल को क्यों तोड़ेंगे?
इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने सवाल उठाया था कि राहुल गाँधी की योग्यता क्या है? फिर यही सवाल ‘विपक्षी’ सहयोगी दल समाजवादी पार्टी ने भी उठाया था। लेकिन ऐसे सवालों से बने फंदे में राहुल गाँधी नहीं उलझने वाले। मैंने पहले भी लिखा था, “अगले लोकसभा चुनाव में (2014 में हो या उससे पहले ही) कांग्रेस राहुल गाँधी को ही आगे रख कर रणभूमि में उतरेगी। उससे पहले वह राहुल गाँधी को किसी भी व्यक्तिगत आलोचना से बचा कर रखना चाहती है। इसी वजह से अब तक राहुल गाँधी को ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं दी गयी, जो उनकी कार्यक्षमता के मूल्यांकन का आधार बन जाये।” Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 29 अक्टूबर 2012)

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