डेढ़ महीने में निफ्टी (Nifty) का लक्ष्य 5700 से बदल कर 6900

राजीव रंजन झा : प्रभुदास लीलाधर के पूर्व पीएमएस प्रमुख संदीप सभरवाल हँस रहे हैं कि गोल्डमैन सैक्स ने निफ्टी (Nifty) का लक्ष्य बढ़ा कर 6900 कर दिया है।
हँस इसलिए रहे हैं कि गोल्डमैन सैक्स ने अभी डेढ़ महीने पहले ही 18 सितंबर 2013 को निफ्टी का लक्ष्य घटा कर 5700 किया था। फेसबुक पर उनकी इस टिप्पणी के जवाब में कुछ मित्र टिप्पणी कर रहे हैं कि एफआईआई पहले डाउनग्रेड करते हैं और फिर निचले भावों पर शेयर इकट्ठा (एकम्युलेट) करते हैं। यह एक गंभीर आरोप है। इस समय गोल्डमैन सैक्स के संदर्भ में यह आरोप लगाना सही है या नहीं, यह कहना बड़ा मुश्किल है। या फिर कह सकते हैं कि जब तक आपके पास कोई ठोस तथ्य नहीं हो, तब तक ऐसा कुछ कहना सही नहीं है।
लेकिन गोल्डमैन सैक्स को यह तो साफ करना ही चाहिए कि आखिर 18 सितंबर 2013 से अब तक में ऐसा क्या बदलाव हुआ है, जिसके चलते उसे निफ्टी का लक्ष्य 5700 से 6900 करना उचित लगा है। क्या केवल इसलिए, कि निफ्टी अगस्त की तलहटी 5119 से उठ कर अपने रिकॉर्ड स्तरों के करीब, यानी लगभग 6300 के आसपास आ गया है। क्या केवल इसलिए, कि 5700 का उसका केवल डेढ़ महीने पहले दिया गया लक्ष्य मौजूदा स्तरों के चलते हास्यास्पद लगने लगा है?
शेयर बाजार बड़े गतिशील परिवेश में काम करता है। यहाँ किसी एक बड़ी घटना से आपके विचार रातों-रात बदल सकते हैं। आप अचानक बड़ी गिरावट के बदले बड़ी उछाल उम्मीद करने लग जा सकते हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है। लेकिन अगर आप एक तरफ निराशाजनक बातें करते रहें और दूसरी तरफ खरीदारी करते रहें, तो जरूर नीयत पर शक हो सकता है।
किसी एक संस्थान की बात करना अभी ठीक नहीं, लेकिन बाजार में यह धारणा तो रही है कि एफआईआई बोलते कुछ हैं और करते कुछ हैं। आपको ऐसे कालखंड मिल जायेंगे, जब एफआईआई की ओर से भारत के बारे में बड़ी अच्छी-अच्छी बातें सुनने को मिलती रहीं, लेकिन अक्सर दिन के अंत में एफआईआई की शुद्ध रूप से बिकवाली का आँकड़ा सामने आता रहा। इसका उल्टा भी होता रहा है।
कहा जा सकता है कि एफआईआई किसी एक व्यक्ति या एक संगठन का नाम तो है नहीं। यह तो काफी बड़ा और काफी विविध किस्म का समूह है और इस समूह के अंदर भी अलग-अलग सोच और रणनीति चलती रहती है। लेकिन अगर बाजार में कोई धारणा बनती है तो उसके पीछे कुछ-न-कुछ कारण अवश्य होता है। अगर आपको अलग-अलग एफआईआई की ओर से ज्यादातर एक जैसी बातें सुनने को मिले, लेकिन दिन के अंत में उन बातों की पुष्टि उनकी शुद्ध खरीदारी या शुद्ध बिकवाली के आँकड़े से होती न दिखे, तो कुछ खटकता है।
सामान्य रूप से एक निवेशक, विश्लेषक या हम जैसे पत्रकारों की अपनी सीमाएँ हैं। कुछ खटकता है तो बस दो बातें लिख-बोल कर हमें रुक जाना पड़ता है। बिना किसी ठोस तथ्य के हम एक सीमा से आगे कुछ नहीं लिख-बोल सकते। हमें यह तो मीडिया में देखने-सुनने या पढ़ने को मिल जाता है कि किस एफआईआई ने क्या कहा, लेकिन उस एफआईआई ने बाजार में वास्तव में क्या किया और उसकी गतिविधियाँ सार्वजनिक बयानों या रिपोर्टों के अनुरूप हैं या नहीं, यह सब जानने-समझने का कोई साधन हमारे पास नहीं है। जिनके पास साधन और अधिकार हैं, उन्हें इस पहलू पर गौर करना चाहिए। यह उनकी जिम्मेदारी भी है। तब तक संदीप 5700 से 6900 के सर्कस पर केवल हँस सकते हैं और मैं बस उनकी हँसी को आपके साथ साझा करता रह सकता हूँ। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 05 नवंबर 2013)