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क्या एफआईआई (FII) कहते कुछ हैं, करते कुछ और हैं?

राजीव रंजन झा : गोल्डमैन सैक्स ने निफ्टी (Nifty) का लक्ष्य घटा कर 5700 करने के डेढ़ महीने बाद ही इसे बढ़ा कर 6900 करने की जो कलाबाजी दिखायी है, उसे इसने मोडी-फाइंग नाम दिया है।
मतलब यह कि नरेंद्र मोदी के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को देख कर उसने अपना नजरिया मोडी-फाई कर दिया है! इस लिहाज से गोल्डमैन सैक्स कह सकती है कि उसके पास अपने नजरिये को बदलने का एक वाजिब और महत्वपूर्ण कारण मौजूद है।
बाजार में गूँज रहे इस नमो-मंत्र की बात आगे करूँगा। लेकिन कल के राग बाजारी में मेरा मूल बिंदु यह था कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) के मीडिया में आने वाले बयानों, उनकी रिपोर्टों और ठीक उस समय उनके कारोबारी रुझान में क्या एकरूपता रहती है? ध्यान रखें कि अगर कोई विश्लेषक मीडिया में एक तरह की राय दे और खुद बाजार में दूसरी तरह का व्यवहार करे, तो बाजार नियामक इसे अनुचित व्यवहार की श्रेणी में रखेगा।
मैं यह आरोप नहीं लगा रहा कि एफआईआई वास्तव में ऐसा अनुचित व्यवहार कर रहे हैं। दरअसल मेरे पास या किसी भी पत्रकार या विश्लेषक के पास इन बातों की खोजबीन या विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त साधन और सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन बाजार में यह बात जरूर गाहे-बगाहे सुनने को मिल जाती है कि एफआईआई अक्सर कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।
हमारे लिए समस्या यह है कि एफआईआई हजार सिरों वाला प्राणी है। इसमें कौन क्या कह रहा है, यह तो हमें एक हद तक पता भी है। लेकिन कौन क्या कर रहा है, यह हमें नहीं पता। उम्मीद है कि जिनके पास इन बातों पर नजर रखने के लिए पर्याप्त साधन और अधिकार हैं, वे अपना काम कर रहे होंगे। कल का मेरा लेख इसी बात पर था।
जरा याद करें कि 28 अगस्त 2013 को निफ्टी ने 5119 की तलहटी बनायी थी, जिसके बाद यह सितंबर में तेजी से सँभल कर 19 सितंबर को 6142 तक गया था और उसके बाद हल्की नरमी में 1 अक्टूबर को 5701 तक आया था। इसके बाद फिर से यह मजबूती की राह पर बढ़ चला और अभी अपने रिकॉर्ड ऊपरी स्तरों के आसपास ही है।
अब इस दौरान एफआईआई की खरीद-बिक्री के आँकड़े देखें। नकद श्रेणी में अगस्त के अंत तक वे बिकवाल नजर आ रहे थे, सितंबर शुरू होते ही खरीदार बन गये। सितंबर और अक्टूबर में ज्यादातर दिनों में उन्होंने शुद्ध खरीदारी ही की है। यानी बाजार की तेजी और एफआईआई की खरीदारी के बीच सीधा संबंध बना रहा है।
लेकिन क्या ऐसा ही सीधा संबंध एफआईआई के विचारों से भी बनता है?
यूबीएस ने सितंबर के आखिरी हफ्ते में कहा कि उसके मुताबिक निफ्टी 6000 के ऊपर नहीं जायेगा। उस समय निफ्टी 5900 के आसपास ही था और यूबीएस ने मुनाफावसूली करने की सलाह दी थी। बीएनपी पारिबा ने सितंबर के दूसरे हफ्ते में ही सेंसेक्स का लक्ष्य घटा कर 21,300 से घटा कर 17,000 किया था। जब यह खबर आयी थी, उस समय सेंसेक्स 20,000 के आसपास था। बीएनपी पारिबा ने तब साल 2013-14 की आय के अनुमानों में भी कटौती की बात कही थी।
मॉर्गन स्टैनले के रिदम देसाई 5100 से 6100 तक की छलाँग के बाद सितंबर के तीसरे हफ्ते में कह रहे थे कि निफ्टी दोबारा 5300 की तलहटी की ओर बढ़ सकता था। जब वे ऐसा कह रहे थे, उस समय निफ्टी 5900 के पास था।
नोमुरा ने अभी-अभी सेंसेक्स का अपना लक्ष्य 20,000 से बढ़ा कर 22,000 किया है। सितंबर के दूसरे हफ्ते में ही नोमुरा ने कहा था कि मार्च 2014 में तय 20,000 के लक्ष्य को वह बरकरार रख रही है। उस समय सेंसेक्स 20,000 के पास ही था।
बार्कलेज की ओर से सितंबर के आखिरी हफ्ते में चेतावनी आ रही थी कि एफआईआई का भारतीय बाजार को लेकर ओवरवेट होना, यानी उनकी ओर से खरीदारी बढ़ाये जाने को बाजार के लिए एक जोखिम के रूप में देखना चाहिए।
मैक्वेरी ने सितंबर के अंतिम हफ्ते में कहा था कि आने वाले समय में भारत की विकास दर के अनुमानों में कटौती का एक और दौर चलने की संभावना है।
बेशक, हमें उस समय कुछ एफआईआई की ओर से थोड़ी सकारात्मक बातें भी सुनने को मिल रही थीं। मसलन, स्टैनचार्ट ने सितंबर के दूसरे हफ्ते में कहा था कि भारतीय बाजार के लिए सबसे बुरा दौर बीत गया है। लेकिन ऐसा कहते समय भी स्टैनचार्ट का मानना था कि अब निफ्टी फिर से 5200 नहीं तोड़ेगा, यह बात विश्वास के साथ नहीं कही जा सकती। खैर, लगभग उसी समय डॉयशे ने साल के अंत तक सेंसेक्स का 21,000 का लक्ष्य सामने रखा था। सितंबर के तीसरे हफ्ते में जेपी मॉर्गन सिक्योरिटीज ने भी निवेशकों को भारतीय बाजार में खरीदार बने रहने की सलाह दी थी।
आप इस तरह की टिप्पणियों की अंतहीन सूची बना सकते हैं। मगर मोटी बात यह है कि सितंबर में ज्यादातर एफआईआई का नजरिया भारतीय बाजार को लेकर नकारात्मक या सावधान दिख रहा था, फिर भी न केवल सितंबर, बल्कि उसके बाद भी एफआईआई की ओर से कुल मिला कर लगातार शुद्ध खरीदारी के ही आँकड़े आते रहे। एफआईआई के समूह ने सितंबर में 12,600 करोड़ रुपये से ज्यादा और अक्टूबर में 18,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की शुद्ध खरीदारी की। सवाल है कि इस बात को किस रूप में समझा और देखा जाये? बाजार की धारणा जिस ओर जाती है, उस दिशा में पड़ताल करने के लिए जरूरी औजार नियामक के पास हैं। जैसा मैंने पहले कहा, एफआईआई हजार सिरों वाला प्राणी है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 06 नवंबर 2013)

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