'अच्छे दिन' आने वाले हैं, इसलिए सेंसेक्स (Sensex) 27,300 पर!

राजीव रंजन झा : अब एंजेल ब्रोकिंग ने अगले 12 महीनों में सेंसेक्स (Sensex) का 27,300 का लक्ष्य दिया है, जो हाल में गोल्डमैन सैक्स के 7600 के लक्ष्य से भी कहीं अधिक आशावादी है।

अगर हम एंजेल ब्रोकिंग के इस लक्ष्य को निफ्टी के संदर्भ में समझना चाहें तो यह लगभग 8150 का लक्ष्य बनता है। एंजेल का कहना है कि मौजूदा स्तरों से सेंसेक्स में करीब 22% बढ़त की गुंजाइश बनती है। एंजेल ने यह लक्ष्य किस आधार पर तय किया है? उसके मुताबिक साल 2015-16 में सेंसेक्स की अनुमानित प्रति शेयर आय (ईपीएस) 1766 रुपये है और इस पर 15.5 का पीई अनुपात मान कर 27,300 का लक्ष्य निकाला गया है।

लेकिन अभी तो साल 2014-15 की शुरुआत ही है। हम 2013-14 की आखिरी तिमाही के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं। इस मौके पर अगले कारोबारी साल की अनुमानित ईपीएस के आधार पर लक्ष्य भाव तय करना कहीं कुछ ज्यादा जल्दबाजी तो नहीं है! यह एक साल आगे की अनुमानित आय पर लक्ष्य तय करना नहीं, बल्कि दो साल आगे की अनुमानित आय को भुनाने जैसा है!

हालाँकि यह हर विश्लेषक की व्यक्तिगत पसंद का मसला है कि कितना मूल्यांकन मान कर चलना है, किस पीई अनुपात पर लक्ष्य निकालना है। लेकिन आम तौर पर यही होता है कि आप या तो मौजूदा ईपीएस के आधार पर मूल्यांकन तय करते हैं या चार तिमाहियाँ आगे के अनुमान के आधार पर देखते हैं। दोनों में से आप जो भी तरीका चुनें, उसमें ऐतिहासिक रूप से औसत मूल्यांकन को देखा जाता है और उसके आधार पर यह आकलन होता है कि बाजार को अभी औसत से कम मूल्यांकन मिलने की संभावना लगती है या उससे ज्यादा।

खैर, इस आशावादी आकलन के पीछे मुख्य आशा यह बतायी गयी है कि हाल के जनमत सर्वेक्षणों के आधार पर एक स्थिर और सुधार-समर्थक (सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा) सरकार बनने की संभावना ज्यादा लग रही है। लेकिन इसी 'सकारात्मक चुनावी परिणाम' के आभास से भारतीय शेयर बाजार अपने नये शिखर पर पहुँचा है।

ऐसे में, चूँकि पाँच हफ्ते बाद जो घटना होने वाली है, उसे भुना चुके होने के कारण अब बाजार को ऐसे नये कारणों की तलाश है, जिनके आधार पर आगे की बढ़त को उचित ठहराया जा सके। एंजेल की रिपोर्ट कहती है कि "विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर में वृद्धि और इसके चलते विदेशी माँग में सुधार, भारत की विकास दर का अपनी तलहटी से वापस पलटना और इस कारण आगे विकास दर तेज होने की उम्मीद, साथ ही खाद्य महँगाई दर में कमी आगे के लिए कुछ सकारात्मक पहलू हैं।"

लेकिन इन सारे सकारात्मक पहलुओं में काफी अगर-मगर जुड़े हुए हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने जरूर सुधार के संकेत दिये हैं, लेकिन इसके साथ ही वहाँ फेडरल रिजर्व ने नकदी उड़ेलने के कार्यक्रम क्यूई-3 को समेटना शुरू कर दिया है।

काफी विश्लेषकों ने अब उन चक्रीय (साइक्लिकल) क्षेत्रों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है, जो अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव के चक्र से सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। उन्हें लग रहा है कि अर्थव्यवस्था में धीमापन खत्म होने का सीधा फायदा इन क्षेत्रों को मिलेगा, इसलिए शेयर बाजार में अगली बड़ी तेजी इन क्षेत्रों में आ सकती है। इस उम्मीद को पूरी तरह निराधार नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह उम्मीद पूरी होने की बुनियादी शर्त यह है कि अर्थव्यवस्था अपने धीमेपन से उबर जाये। अगर चुनावी नारों और बाजार की उम्मीदों की भाषा में कहें, 'अच्छी' सरकार आने की उम्मीद तो हकीकत के करीब दिख रही है, लेकिन 'अच्छे दिन' आने की उम्मीद अभी एक उम्मीद ही है। Rajeev Ranjan Jha

(शेयर मंथन, 09 अप्रैल 2014)