राजेश तांबे
बाजार विश्लेषक
सेंसेक्स जून 2017 तक 30,000 के ऊपर नहीं जा सकेगा, जबकि दिसंबर 2017 के अंत तक यह 32,000 को पार नहीं कर सकेगा।
बल्कि मेरा आकलन यह है कि 30,000 को फिर से छूने में सेंसेक्स को 2020 तक का समय लग सकता है। उसके आगे सेंसेक्स साल 2025 तक 40,000 पर और साल 2030 तक 50,000 पर पहुँचेगा।
मुझे डिमॉनेटाइजेशन या विमुद्रीकरण शब्द गलत लगता है, क्योंकि 10, 50 और 100 रुपये के नोटों को बंद नहीं किया गया था, बल्कि केवल 500 और 1000 रुपये को नोटों को अमान्य घोषित किया गया था। सरकार का यह शानदार फैसला था। बाजार में नकदी का प्रचलन जीडीपी के 12% के स्तर पर पहुँच गया था, जो काफी अधिक है। अगर यह कदम नहीं उठाया गया होता तो आगे काफी मुश्किल हो जाती। हमारे देश की अर्थव्यवस्था के आकार के लिहाज से देखें, तो 8% नकदी पर्याप्त होती, जिसका मतलब है 12 लाख करोड़ रुपये।
सफेद अर्थव्यवस्था में नकदी दरअसल शरीर में रक्त की तरह होती है। मुद्रा को नष्ट करने से बेहतर यह है कि यह बैंकिंग व्यवस्था में प्रवेश कर जाये। हमारा मानना है कि बैंकों के पास 10 लाख करोड़ रुपये होंगे। फ्रैक्शनल रिजर्व मॉडल के जरिये अगले पाँच सालों में ये बढ़ कर 50 लाख करोड़ रुपये हो जायेंगे। ब्याज दरों में अब गिरावट देखने को मिलेगी। साल की पहली दो तिमाहियाँ कमजोर रहने की आशंका है, लेकिन अगली दो तिमाहियों में वी आकार की बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
सरकार के इस काम से आय कर की निम्नतम श्रेणी तकरीबन चार लाख रुपये पर पहुँच जायेगी। इसका मतलब यह है कि लोगों के हाथ में अधिक पैसे होंगे। लोगों को यह अच्छी तरह पता है कि अधिक बचत का उपभोग किस तरह किया जाये। कुल बचत का 85% घरों की बचत से आता है। इससे निवेश में बढ़ोतरी होगी और विकास दर बढ़ेगी। घरों की इस बचत में घर की महिला का योगदान काफी अहम होता है, जो वाकई प्रशंसनीय है।
शेयर बाजार को अधिक महत्व देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह भारतीय अर्थव्यवस्था की सच्ची परछाई नहीं है। बीएसई/एनएसई में सूचीबद्ध कंपनियाँ भारत की जीडीपी में महज 7% का योगदान करती हैं। इनमें से अगर ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों और बड़े कॉरपोरेट घरानों (टाटा/बिड़ला/अंबानी) को निकाल दिया जाये, तो बाकी कंपनियों का योगदान महज 2-3% होता है, जो केवल वर्धक के तौर पर कार्य करता है। असली जोर एसएमई के ऊपर दिये जाने की जरूरत है, जो देश की जीडीपी में 45% का योगदान करते हैं। मुद्रा बैंक को अति लघु इकाइयों और एसएमई के लिए खोलने में सरकार को जल्दी करनी चाहिए। (शेयर मंथन, 05 जनवरी 2017)