न्यूनतम समर्थन मूल्य के बावजूद रबी फसल की बुआई पिछड़ी

किसानों की आय में बढ़ोतरी करने और फसलों के उत्पादन लागत का 1.5 गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रदान करने के वादे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने 2018-19 के रबी फसलों के एमएमसी में 50-112% की बढ़ोतरी की है।

लेकिन अधिक एमएसपी के बावजूद मूल्य रबी सीजन के दो महीने पूरे होने के बाद भी फसलों की बुआई पिछले वर्ष की तुलना में पिछड़ी हुई है। एमएसपी मे बढ़ोतरी का उद्देश्य किसानों को पैदावार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना था। लेकिन कृषि मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार 07 दिसंबर तक रबी फसलों की बुआई पिछले सीजन की समान अवधि की तुलना में 6% कम होकर 414.3 लाख हेक्टर में ही हुई है।
इस वर्ष मॉनसून सीजन में सामान्य से कम बारिश और मंडियों में खरीफ फसलों की कीमतों का एमएमपी से कम होना रबी फसलों की बुआई में कमी का प्रमुख कारण है। कम बारिश के कारण मिट्टी में नमी कम हो गयी है, जो रबी फसलों की बुआई के लिए अत्यंत आवश्यक होती है, जबकि खरीफ फसलों में से 11 फसलों की मंडियों में अपने-अपने एमएसपी से 5-32% कम कीमतों पर मिल रही है, जिससे बुआई के लिए किसानों के पास काफी कम पैसे रह जाते हैं। यहाँ तक कि मौजूदा सीजम में अभी तक किसानों को एमएसपी उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा तिलहन और दालों की गयी खरीदारी की मात्रा से पता चलता है कि यह योजना मंडी कीमतों के अंतर को पाटने में सफल नहीं हो पायी है। सरकार द्वारा खरीदारी की धीमी गति और मंडियों में खरीदारी में देरी के कारण किसान हताश होकर बिक्री करने के लिए बाध्य हो रहे हैं।
एगमार्कनेट के आँकड़ों के अनुसार कई चावल उत्पादन राज्यों, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा, में धान के सामान्य वेराइटी की औसत कीमत 6 दिसंबर तक एमएसपी 1,750 रुपये प्रति क्विंटल से लगभग 16% कम रही है। अक्टूबर में धान की औसत कीमतें एमएसपी से 11% कम थी। खरीफ दालों तूर और उड़द की कीमतें अक्टूबर के बाद से बढ़ी हैं, लेकिन अभी भी एमएसपी से कम है। नये एमएसपी 6,975 रुपये प्रति क्विंटल पर मूंग की खरीदारी अभी शुरू नहीं हुई है। नकद बाजार में यह 5,100-5,650 रुपये प्रति क्विंटल के दायरे में बिक रही हैं।
गेहूँ एक मात्र फसल है, जिसकी 07 दिसंबर तक बुआई पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में लगभग 2% बढ़ कर 194.5 लाख हेक्टर में हुई है। लेकिन चना, मसूर, जौ और मक्के की बुआई पिछले वर्ष की तुलना में कम हुई है, जबकि सरसों की बुआई पिछले वर्ष के लगभग बराबर है। 07 दिसंबर तक दालों की कुल बुआई पिछले वर्ष की समान अवधि के 113.69 लाख हेक्टर की तुलना में 10% से अधिक कम होकर 126.78 लाख हेक्टर में हुई है। मोटे अनाजों का उत्पादन क्षेत्र पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 26% कम होकर 33 लाख हेक्टर ही रह गया है।
इससे पता चलता है कि बाजार स्तर पर एमएसपी नहीं मिल रहा है और इससे न केवल किसानों की आय में बढ़ोतरी करने का सरकारी इरादा बाधित हो रहा है, बल्कि रबी फसल की बुआई भी कम हो रही है, जिससे प्रमुख दालों और तिलहनों की कमी हो सकती है। (शेयर मंथन, 17 दिसंबर 2018)