भारत के एकमात्र निर्यातक होने के कारण बढ़ सकती है जीरे की निर्यात माँग - एसएमसी

पहली तिमाही में फसल कटाई, जो फरवरी-मार्च में शुरू होती है, के बाद भारी आवक के दबाव के कारण जीरे की कीमतें औंधेमुंह लुढ़क गयी।

इसेक साथ ही दिसंबर और जनवरी में अधिक कीमतों से प्रोत्साहित होकर स्टॉकिस्टों ने अपने चार से सात वर्ष पुराने स्टॉक को भी बेचा। प्रारंभिक अनुमान से पता चलता है कि 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में राजस्थान और गुजरात में पैदावार क्षेत्र में बढ़ोतरी होने के कारण भारत में जीरे का उत्पादन पिछले वर्ष के 3,85,000-4,80,000 टन के मुकाबले 2,75,000-4,50,000 टन के दायरे में होने का अनुमान था।
मांग को देखें तो जब जीरे की कीमतों में लगातार गिरावट हो रही थी, तब निर्यातकों ने इसका खूब लाभ उठाया और भारत से अधिक से अधिक खरीदारी की। चीन, बांग्लादेश यूएई, अमेरिका, ब्राजील, पश्चिम एशिया, नेपाल और मलेशिया जैसे देश भारतीय जीरे के प्रमुख आयातक थे।
बाजार की मौजूदा स्थितियाँ और निर्यात की संभावनाएँ जीरे की कीमतों में तेजी की ओर संकेत कर रही हैं, जो 22,000 रुपये तक पहुँच सकती हैं। बाकी इस वर्ष कीमतों में उछाल दर्ज की जायेगी या नहीं, इस अहम प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने से पहले हमें पिछले वर्ष के मॉनसून, मिट्टी में नमी, किसानों द्वारा अन्य लाभकारी फसलों की खेती करने के इरादे और अंतत: मांग-आपूर्ति के आँकड़ों जैसे कई कारकों पर विचार करना होगा।
भारत की जीरा सीरिया, तुर्की (मार्च-अप्रैल) और ईरान (जुलाई) से पहले विश्व बाजार में आ जाता है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय जीरे को काफी फायदा होता है। स्टॉकिस्टों की खरीदारी और अन्य देशों से सप्लाई में कमी से कीमतों में तेजी के रुझान को मदद मिलती है, जो अगस्त-सितंबर तक जारी रहती है। सीरिया और तुर्की से जीरे की नयी फसल की आवक शुरू होती है और कीमतों में गिरावट होनी शुरू हो जाती है। मॉनसून और सीरिया की प्रगति पर भी निगरानी रखी जानी चाहिए। निर्यात मांग बेहतर सकती है, क्योंकि वर्तमान समय में विश्व बाजार में भारत जीरे का एक मात्र निर्यातक है। 2019 में जीरे की कीमतें एनसीडीईएक्स में 14,000-22,000 रुपये प्रति क्विंटल के दायरे में रह सकती हैं। (शेयर मंथन, 11 जनवरी 2019)