म्यूचुअल फंड रेगुलेशन में बदलाव करते समय सबसे बड़ा उद्देश्य यह था कि इन्वेस्टर प्रोटेक्शन भी सुनिश्चित हो और साथ-साथ म्यूचुअल फंड कंपनियाँ भी अपने बिजनेस को टिकाऊ तरीके से चला सकें।
सेबी के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने बताया कि म्यूचुअल फंड बैलेंस को बनाने के लिए रेगुलेटर ने शुरुआती प्रस्ताव के स्ट्रक्चर को काफी हद तक बरकरार रखा। खास तौर पर पारदर्शिता पर ज़ोर दिया गया, जिसमें टैक्स और स्टैच्यूटरी लेवीज को टीईआर (Total Expense Ratio) से अलग रखने का फैसला लिया गया। इससे पहले कुछ टैक्स अंदर गिने जाते थे और कुछ बाहर, जिससे कन्फ्यूजन पैदा होती थी, लेकिन अब सभी टैक्स और लेवीज को बाहर रखने से स्ट्रक्चर ज्यादा साफ और समझने योग्य हो गया है।
इसके अलावा, एग्जिट लोड से जुड़े शुरुआती प्रस्ताव को भी जस का तस रखा गया है। 1 अप्रैल से बेसिक एग्जिट लोड खत्म होने जा रहा है, जिससे सीधे-सीधे निवेशकों को फायदा होगा। करीब 600 से ज्यादा स्कीम्स, जिनमें बड़ी-बड़ी स्कीम्स भी शामिल हैं, उनमें निवेशकों को लगभग 5 बेसिस पॉइंट्स की कॉस्ट की बचत होगी। यह बचत तुरंत निवेशकों की रिटर्न प्रोफाइल में दिखाई देगी, जो उनके लिए एक बड़ा पॉजिटिव कदम है।
ब्रोकरेज सीलिंग में कटौत से निवेशकों को बचत
निवेशकों के नजरिए से देखें तो इन बदलावों का सबसे बड़ा फायदा कॉस्टिंग में ट्रांसपेरेंसी के रूप में सामने आएगा। भविष्य में अगर टैक्स में कोई बदलाव या कमी होती है, तो उसका फायदा तुरंत निवेशकों तक पहुंचेगा क्योंकि टैक्स अब सीधे टीईआर का हिस्सा नहीं रहेंगे। इससे यह भी साफ-साफ दिखेगा कि असल में निवेशकों पर कितना खर्च पड़ रहा है। इसके साथ ही, ब्रोकरेज सीलिंग में बदलाव, जो पहले 12 पैसे (टैक्स सहित) थी और अब 6 पैसे (टैक्स अलग) हो गई है। उससे भी निवेशकों को करीब 2.5 से 3 पैसे तक की अतिरिक्त बचत होगी। कुल मिलाकर, यह रेगुलेटरी बदलाव निवेशकों के लिए कम लागत, ज्यादा पारदर्शिता और बेहतर रिटर्न की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
(शेयर मंथन, 25 दिसंबर 2025)
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