वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमेपन से कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा दबाव - एसएमसी

2018 में कच्चे तेल की कीमतों ने अपनी तेज उठा-पटक से पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा ईरान पर प्रतिबंध की खबरों के कारण अक्टूबर 2018 में तेल की कीमतें कई वर्षो के उच्चतम स्तर पर पहुँच गयीं, जबकि वर्ष की अंतिम तिमाही में परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया और विश्व स्तर पर मांग में कमी के बीच अमेरिका, रूस और सऊदी अरब में बढ़ते तेल उत्पादन के कारण कीमतें 44% से अधिक नीचे लुढ़क गयी।
चीन और अमेरिका के बीच व्यापार तनाव के साथ ही अमेरिका में शेल गैस उत्पादन के कारण बढ़ती आपूर्ति तेल की कीमतों में तेज गिरावट का प्रमुख कारण रही है। अक्टूबर 2018 के प्रारंभ में एमसीएक्स में कच्चे तेल की कीमतें 5,660 रुपये से और नाइमेक्स में 76.9 डॉलर से ऊपर पहुँच गयीं। ईरान के परमाणु कार्यक्रम, जो अमेरिकी प्रशासन के अनुसार परमाणु हथियार तैयार करने के लिए शुरू किया गया है, के प्रत्युत्तर में अमेरिकी प्रतिबंध के कारण ईरान का तेल निर्यात बाधित हुआ और वेनेजुएला एवं अफ्रीका जैसे देशों से सप्लाई कम होने से कीमतों को मदद मिली।
2019 में तेल उत्पादन को लेकर ओपेक के फैसले और सदस्य देशों द्वारा इसके अनुपालन, अमेरिकी तेल उत्पादन और भंडार, डॉलर के कारोबार, मध्य-पूर्व सामरिक तनाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति जैसे कई कारकों का प्रभाव कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ता रहेगा। 2019 में ओपेक देशों द्वारा तेल उत्पादन कम करने और खास तौर से सऊदी अरब द्वारा अधिक कटौती करने से तेल बाजार में तेल उत्पादन में कमी देखी जा सकती है। लेकिन वर्ष 2018 में ओपेक और उसके सहयोगी देशों ने तेल उत्पादन में कटौती का अलग-अलग अनुपालन किया। नवंबर 2018 में ओपेक देशों ने 111% अनुपालन किया, जबकि गैर-ओपेक देशों ने केवल 17% ही अनुपालन किया।
लेकिन कच्चे तेल के रिकॉर्ड भंडार से 2019 में कीमतों की बढ़त पर रोक लग सकती है।
ईआईए के अनुसार अमेरिकी कच्चे तेल का भंडार पाँच महीने के उच्च स्तर 43.2 करोड़ बैरल पर पहुँच गया है। अमेरिकी तेल रिगों की संख्या से पता चलता है कि 2018 में तेल रिगों की संख्या 742 से धीरे-धीरे बढ़ कर 887 से अधिक हो गयी। 2018 की पहली तीन तिमाहियों में तेल की अधिक कीमतों का लाभ उठाने के लिए एनर्जी कंपनियों ने तेल उत्पादन में अधिक निवेश किया। 7 दिसंबर 2018 को ओपेक और दिग्गज रूस सहित कुछ गैर-ओपेक देशों ने तेल आपूर्ति में 12 लाख बैरल/दिन
की कटौती की घोषणा की है, जिसमें ओपेक देशों द्वारा 8,00,000 बैरल/दिन और गैर-ओपेक देशों द्वारा 4,00,000 बैरल/दिन कटौती करने का प्रस्ताव है। ओपेक के नेतृत्व में आपूर्ति में यह कटौती जनवरी 2019 से लागू हो गयी।
विश्व स्तर पर कई तरह के आर्थिक संकेतक वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमेपन की ओर संकेत कर रहे हैं, जिससे 2019 में कच्चे तेल की कीमतों पर दबाव पड़ सकता है। लेकिन यह भी संभव है कि तेल की कीमतों के कम होने के बाद मांग में वृद्धि हो। जहाँ तक तेल की मांग-आपूर्ति की बात है, ओपेक की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार 2018 में ओपेक के कच्चे तेल की मांग 3.26 करोड़ बैरल/दिन रहने का अनुमान है, जो 2017 के मांग से 9 लाख बैरल/दिन कम है। 2019 में ओपेक के कच्चे तेल की मांग 3.15 करोड़ बैरल/दिन रहने का अनुमान है, जो 2018 के मांग अनुमान से लगभग 11 लाख बैरल/दिन कम है।
इस बीच दिसंबर महीने में कतर ने घोषणा की है कि वह जनवरी 2019 से ओपेक के तेल आपूर्ति के कटौती के फैसले से अलग रहेगा। कतर केवल 6,00,000 बैरल/दिन ही तेल का उत्पादन करता है और ओपेक का 11वां सबसे अधिक तेल उत्पादक देश है। ओपेक द्वारा तेल उत्पादन में कमी, जो ओपेक की कुल सप्लाई के 2% से भी कम है, से बाजार में उसकी स्थिति प्रभावित नहीं होगी। अगला महत्वपूर्ण कारक अमेरिका में आने वाले तूफान होंगें जो 2019 में कच्चे तेल की कीमतों में बदलाव को प्रभावित कर सकते हैं। जैसा कि हमने देखा है कि 2018 की दूसरी छमाही में अमेरिका में दो प्रचंड तूफानों, फ्लोंरेंस और माइकेल, ने दस्तक दी। तूफानों के कारण तेल रिफाइनरियों को किसी भी तरह के नुकसान से कच्चे तेल की मांग कम हो जाती है।
एसएमसी के अनुसार कच्चे तेल की कीमतें एमसीएक्स में 2,800-5,800 रुपये प्रति बैरल और नाइमेक्स में 35-80 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रह सकती हैं। (शेयर मंथन, 11 जनवरी 2019)