सेंसेक्स (Sensex) का अगला बड़ा लक्ष्य 50,000 का : रामदेव अग्रवाल (Raamdeo Agarwal)

नरेंद्र मोदी ने कार्यभार सँभालने से पहले ही अपना काम शुरू कर दिया और कूटनीतिक मोर्चे पर पहल कर दी। इस प्रक्रिया में उन्होंने क्षेत्रीय दलों को भी संदेश दे दिया कि विदेश नीति केंद्र की जिम्मेदारी है और राज्य सरकारों को उसमें ज्यादा दखल नहीं देनी चाहिए, क्योंकि मेरे पास बहुमत है।

उन्होंने जो टीम बनायी है, उसके बारे में कुछ लोग कह सकते हैं कि यह चमकते सितारों से सजी टीम नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि एक-दो बड़े सितारों के बदले एक अच्छी टीम का काम समय के साथ ज्यादा सशक्त साबित होगा। अगर वे सच्चे ढंग से कठिन परिश्रम करें और अगले एक-दो वर्षों में हासिल हो सकने वाले स्पष्ट लक्ष्य बनायें तो मुझे नहीं दिखता है कि उनके रास्ते में क्या अड़चन आयेगी। 

चीजें इतनी ज्यादा बिगड़ी हुई हैं कि अब स्थिति केवल सुधर ही सकती है। अब कितना सुधार होगा, क्या विकास दर 6% पर जायेगी? मुझे लगता है कि साल भर में विकास दर में एक-डेढ़ प्रतिशत का सुधार आ जायेगा। एक-डेढ़ प्रतिशत का यह सुधार काफी जल्दी आ जाना चाहिए। हो सकता है कि ऐसा छह महीने में ही हो जाये। उसके बाद अगर हर साल एक प्रतिशत का सुधार आता जाये तो चौथे-पाँचवें साल तक हमें उम्मीद करनी चाहिए कि विकास दर 9-10% तक हो जाये, दो अंकों में आ जाये। यह एक सपना हो सकता है। लेकिन चीजें ऐसी योजना के साथ नहीं चलती हैं। इसलिए स्थितियाँ कैसी बनेंगी, यह देखना होगा। 

अच्छी बात यह है कि अर्थव्यवस्था ऐसे मुकाम पर है, जहाँ से स्थिति और बिगड़ने की संभावना बेहद कम है। इसलिए जहाँ तक अर्थव्यवस्था का सवाल है, नीचे फिसलने की गुंजाइश काफी कम है। यहाँ खोने के लिए कुछ नहीं है। शेयर बाजार के नजरिये से पूछें कि कितना नुकसान संभव है, तो यहाँ से 10% की गिरावट आ सकती है। लेकिन दूसरी तरफ अगले तीन-चार सालों में 100% कमाने की संभावना भी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में यह अनिश्चितता का समय है। आप इस स्थिति को अवसर में बदल सकते हैं। 

इस सरकार के लिए लंबी अवधि का एजेंडा यही हो सकता है कि काफी ऊँची और समावेशी (इन्क्लूसिव) विकास दर हासिल की जाये। दो अंकों में विकास दर नहीं भी जाये तो 8-9% की विकास दर अगर टिकाऊ ढंग से बनी रहे। यह विकास अच्छी तरह वितरित तरीके से हो, जिसका फायदा केवल अमीरों के लिए सीमित नहीं हो। महँगाई दर को घटाना होगा। इस तरह कम महँगाई के साथ ऊँची विकास दर हो, जो अच्छी तरह से वितरित हो, जिसके जरिये रोजगार पैदा हों न कि रोजगार खत्म हों। इन्हीं सब बातों के लिए मैंने समावेशी शब्द इस्तेमाल किया। इस विकास का फायदा पूरे देश को मिले, हर समुदाय को मिले, सभी व्यवसायों को मिले। 

इस समय जो व्यापार-विरोधी माहौल बना हुआ है, उस पर ध्यान देना होगा। व्यापार में आसानी वाले देशों की सूची में भारत 135 पर है। कोई कारण नहीं है कि हम भारत को इस सूची में विश्व के 5-10 शीर्ष देशों के बीच न ले जा सकें। इसलिए एक लक्ष्य यह होना चाहिए कि अगले 4-5 सालों में भारत में व्यापार करने में कठिनाई पैदा करने वाली तमाम अड़चनों को तोड़ा जाये। कोई यह नहीं कह रहा कि आप देश को बेच दें। लेकिन आगमन पर वीसा जैसी सुविधाएँ दी जा सकती हैं। एक अनुकूल वातावरण बनाया जा सकता है। साथ ही उद्योग-जगत में कोई दोषी हो तो उसे सजा भी मिलनी चाहिए। अभी यह होता है कि अमीर लोग हर तरह के अपराध से बच निकलते हैं। उन्हें भी ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि किसी को बड़े भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का साहस नहीं हो। 

पर साथ ही ऐसा माहौल भी बनना चाहिए कि उद्योग जगत को भ्रष्टाचार का सहारा लेने की जरूरत ही नहीं हो। अगर आपको कहीं जाना है और रेलवे का टिकट मिल ही नहीं रहा है तो आपने एक अभाव पैदा कर दिया है। अगर आप अर्थव्यवस्था में खुलापन ला दें तो कोई कंपनी क्यों भ्रष्टाचार का सहारा लेगी? एक अनुकूल माहौल बनने से विदेशी निवेश भी आयेगा और देश के अंदर से भी निवेश होगा। मुझे उम्मीद है कि नयी सरकार धीरे-धीरे ये सब काम करेगी। अभी तो सरकार पानी में उतर कर उसकी थाह ले रही है। 

मैं तात्कालिक लक्ष्यों की बात नहीं कर रहा। मेरे विचार से उन्हें अपने सारे काम लंबी रणनीति के तहत करने चाहिए। पंचर लगाने वाले कामों की जरूरत नहीं है। अगर नदियों को जोड़ने की परियोजना को लें, तो इसमें एक महीने या चार महीने में तो कुछ नहीं होगा। मोदी की खूबी यह है कि वे लक्ष्य तय करते हैं और उन्हें हासिल करते हैं। 

जो छोटी-छोटी बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ हैं, उनसे होने वाला फायदा काफी बड़ा है। मिसाल के तौर पर मुंबई में जो वर्ली सी-लिंक बना, उससे शहर के लोगों को काफी बड़ी राहत मिली। इसलिए जहाँ-जहाँ कमी है, वहाँ बुनियादी ढाँचा विकसित करके बाधाएँ खत्म करने से खर्च की तुलना में काफी बड़ा फायदा मिलेगा और लोग राहत महसूस करेंगे। जहाँ दर्द ज्यादा है, वहाँ काम करने से तुरंत आराम मिलेगा। 

पर्यावरण की मंजूरी के लिए 800 फाइलें अटकी पड़ी हैं। आप महीने भर में इन सबको निपटा दें। सरकारी दफ्तरों में जहाँ-जहाँ भी चीजें अटकी हुई हैं, उन्हें आगे बढ़ाना ही सरकार के लिए सबसे पहला और सबसे आसान कदम है। इनके लिए आपको कानून नहीं बदलना, कुछ विशेष नहीं करना है। केवल भ्रष्टाचार मुक्त ढंग से लोगों से काम करवाना है। 

बजट सामने है, जो काफी महत्वपूर्ण है। इसमें सरकार को काफी सोच-विचार और कल्पनाशीलता से काम लेना होगा। बजट की तैयारी के लिए सरकार के पास पर्याप्त समय है। आपकी सोच सही हो तो पाँच हफ्ते भी काफी हैं। और ऐसा नहीं है कि बजट के बाद कुछ नहीं होगा। आप बजट के बाद भी नयी चीजें करते रह सकते हैं। लेकिन बजट में साफ होना चाहिए कि आप सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) को किस तरह सँभालना चाहते हैं। क्या आप उन सब्सिडी योजनाओं को पहले की तरह चलाते रहना चाहते हैं, जो देश के लिए बड़ी समस्या बन चुकी हैं? यहाँ सरकार के लिए एक अवसर है। 

सरकार को बहुत कुछ करना है, लेकिन कुछ भी रातों-रात नहीं होगा। सरकार के बहुत से विभाग सक्रिय नहीं रहे हैं, जहाँ काफी अवसर हैं। जैसे पर्यटन को ले लें। आगमन पर वीसा का नियम बनाने के लिए सरकार को संसद के सामने जाने की जरूरत नहीं है। आपकी वीसा नीति विश्व में सबसे आक्रामक होनी चाहिए। बेशक हमें सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना है। लेकिन इसे काफी सक्षम ढंग से ऑनलाइन बनाया जा सकता है। ऐसी व्यवस्था बना दें कि कोई एक घंटे में ऑनलाइन वीसा पा सके। कोई भी व्यक्ति जो घूमने या व्यवसाय करने के लिए भारत आना चाहे, उन्हें यहाँ आने पर स्वागत का भाव मिलना चाहिए न कि अड़चनों का। 

शेयर बाजार पिछले कुछ हफ्तों में काफी तेजी से बढ़ा था, इसलिए अब यह कुछ ठहराव (कंसोलिडेशन) के दौर से गुजरेगा। जैसे ही जनमत सर्वेक्षणों में बहुमत जैसी स्थिति दिखने लगी थी तो बाजार ने काफी उम्मीदें लगा लीं। अभी तो बाजार में जो भी तेजी आयी है, वह आगे की उम्मीदों पर आयी है। कंपनियों की आय वास्तव में बढ़ने में तो समय लगेगा। इसमें शायद साल भर लग जाये। लेकिन उम्मीदें तो रातों-रात बन जाती हैं। बाजार के लिए चुनाव सबसे बड़ी उम्मीद थे। वहाँ लोगों को उम्मीदों से कहीं ज्यादा मिल गया। लोग एनडीए के लिए 272 से अधिक सीटों की उम्मीद कर रहे थे, जबकि अकेले भाजपा ने 272 से ज्यादा सीटें जुटा लीं। 

बाजार के लिए अगली उम्मीद बजट से है। अभी दुनिया भर की अटकलबाजियाँ होंगी। कभी करों की दरें घटने की अटकलें, तो कभी सब्सिडी कम होने की अटकलें। इन उम्मीदों के दम पर बाजार कुछ आगे चढ़ेगा। यह कहानी अभी चलेगी। अगले छह-आठ महीनों में आप देखेंगे कि महँगाई घटने लगी है, निवेश-चक्र तेज होने लगा है, परियोजनाओं को मंजूरी मिल गयी है। इन सब चीजों से बाजार की चाल बनी रहेगी। इन सबके बाद आखिरकार कंपनियों, निवेशकों और उपभोक्ताओं को इसे आगे ले जाना होगा। 

ऐसा लगता है कि बाजार यहाँ से सकारात्मक ही रहेगा, लेकिन दो-चार महीनों के उतार-चढ़ाव को समझना बहुत मुश्किल है। लेकिन अगर आप इस सरकार की समीक्षा करने के लिए कम-से-कम एक साल का समय दें, तो निफ्टी 8000 पर जा सकता है। ऐसा नहीं होने पर मुझे निराशा होगी। 

इस समय शेयर बाजार में गिरावट की संभावना सीमित है, जबकि तेजी की उम्मीदें काफी बड़ी हैं। अगर कहीं मानसून कमजोर रहा या तेल के दाम बढ़ गये तो थोड़ा उतार-चढ़ाव आ सकता है। लेकिन अगले पाँच वर्षों के चक्र में अगर गिरावट की आशंका 10% तक की होगी तो बढ़त की संभावना 100% या इससे भी अधिक हो सकती है। बढ़त 200% हो जायेगी या 300% हो जायेगी, यह बहुत सारी बातों का संयोग बनने पर निर्भर है। जैसे कि सरकार कितने ठीक तरह से काम करती है, विपक्ष का रवैया कैसा रहता है, तेल के दाम कैसे रहते हैं। लेकिन मैं सोचता हूँ कि निवेश करने के लिए यह अच्छा समय है। 

सेंसेक्स के लिए अगर मैं अगले बड़े लक्ष्य की बात करूँ तो वह लक्ष्य 50,000 का है। अगर अगले पाँच साल में सेंसेक्स 50,000 पर पहुँचे, तब तो आपका पैसा दोगुना होगा! अगर मोदी सरकार के पाँच साल में सूचकांक दोगुना नहीं हो सके तो कैसे कहेंगे कि यह कई सालों की तेजी का दौर है? इसलिए कम-से-कम उतना तो होना ही चाहिए। 

अभी हम ऐसे शेयरों पर खास ध्यान दे रहे हैं, जहाँ कंपनी ने बीते पाँच सालों में बेहतर प्रदर्शन किया है। बीते कुछ साल अर्थव्यवस्था के लिए काफी तकलीफ वाले रहे हैं। जिन कंपनियों ने इस धीमेपन का इस्तेमाल करके खुद को बेहतर बनाया है, वे ही कंपनियाँ आगे चल कर ज्यादा बड़ी बन पायेंगी। हमें वैसी कंपनियों को चुनना है, जिन्होंने अपने कामकाज को कसा है। अच्छे समय में बाजार इन कंपनियों को ज्यादा अवसर देगा। इन कंपनियों को होने वाला फायदा अनुपात में ज्यादा बड़ा होगा। जो कंपनियाँ बीते वर्षों के धीमेपन का इस्तेमाल करके खुद को चुस्त नहीं बना पायीं और खुद को खोज-विकास (आरऐंडडी), बिक्री की प्रक्रिया, लागत पर नियंत्रण, वितरण वगैरह में नहीं सुधार पायीं, वे औसत बन कर रह जायेंगी। रामदेव अग्रवाल, जेएमडी, मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल (Raamdeo Agarwal, JMD, Motilal Oswal Financial)

(शेयर मंथन, 10 जून 2014)