बैंकों की हालत सुधारने के लिए बनी बड़ी योजना

मुश्किलों से जूझ रहे सरकारी बैंकों की वित्तीय हालत सुधारने के लिए कई स्तरों पर कदम उठाने की तैयारी की जा रही है।

इनमें छोटे सरकारी बैंकों द्वारा अपनी जोखिम भरी परिसंपत्तियों को बड़े सरकारी बैंकों को बेचने से लेकर उनके बैंकों से इतर कारोबारों में हिस्सेदारी बिक्री की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं। बैंकों की सेहत सुधारने के लिए बैंकिंग नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के हाल के कदमों के बाद अब सरकार भी इस मोर्चे पर सक्रिय हो गयी है।
असर दिखायेगी जुगलबंदी
चूँकि बैंकिंग कारोबार में सबसे बड़ी हिस्सेदार होने के नाते सरकार और इस क्षेत्र के नियमन की जिम्मेदारी से जुड़ा होने के कारण आरबीआई की यह साझा जिम्मेदारी है कि वे बैंकिंग और खास तौर से मुश्किलों के अंबार से जूझते सरकारी बैंकों की सिरदर्दी कुछ कम करें। इसके लिए रिजर्व बैंक ने प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन यानी तत्काल सुधार कार्ययोजना (पीसीए) का खाका पेश किया। फिर पिछले महीने वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने भी 11 सरकारी बैंकों को अपनी वित्तीय हालत को दुरुस्त करने और आरबीआई के सुझावों को अमल में लाने के लिए अपनी कार्ययोजनाएँ पेश करने को कहा था।
कैसे होगा कायाकल्प
बैंकों द्वारा पेश की गयी योजना में दो साल में हालात पटरी पर लाने की बात कही गयी है। इसमें बड़े और संसाधन संपन्न सरकारी बैंकों को अपने दबाव में फँसे कर्ज हस्तांतरित करने के साथ ही बीमा, म्यूचुअल फंड और रियल एस्टेट जैसी अन्य गैर-बैंकिंग गतिविधियों में भी अपनी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव है। साथ ही लागत घटाने, शाखाओं की संख्या कम करने, विदेशी शाखाएँ बंद करने और जोखिम भरे कर्जों की मात्रा घटाने जैसे उपाय भी किये जायेंगे। पीसीए में शामिल 11 में से 9 बैंकों ने सरकार को इन उपायों से अवगत करा दिया है, जिनमें इलाहाबाद बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, कॉरपोरेशन बैंक, आईडीबीआई बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स एवं बैंक ऑफ महाराष्ट्र शामिल हैं।
हालत है पतली
बीते वित्त वर्ष में सरकारी बैंकों का सम्मिलित घाटा 73,000 करोड़ रुपये के भारी-भरकम स्तर तक पहुँच गया था। इसी तरह उनके कुल फँसे हुए कर्जों के आँकड़े ने भी 8.5 लाख करोड़ रुपये के स्तर को पार कर लिया। ऐसे में इनके लिए तत्काल उपाय करना जरूरी हो गया है। पीसीए ऐसी ही एक कवायद है। इसके दायरे में आने वाले बैंकों पर सख्ती की गयी है, जिनमें लाभांश वितरण और मुनाफे पर कुछ प्रतिबंधों के साथ ही इन्हें शाखाओं के विस्तार से रोका जा सकता है। साथ ही निदेशकों एवं अन्य आला अधिकारियों को दिये जाने वाले वेतन-भत्तों में कटौती का निर्देश भी दिया जा सकता है। (शेयर मंथन, 02 जून 2018)