
राजीव रंजन झा : तिमाही नतीजों के दिन इन्फोसिस (Infosys) के शेयरों का बुरी तरह टूटना अब एक रिवाज जैसा बन गया है।
लेकिन इसके साथ ही ध्यान रखें कि इसके बाद अगले तीन महीनों तक यह शेयर ऊपर चढ़ने के रिवाज पर भी चलता रहा है। लिहाजा आज की तीखी गिरावट के बाद एक निवेशक को क्या करना चाहिए, इसका संकेत शायद इस शेयर के तिमाही चक्र के दूसरे पहलू में है। पर इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इन्फोसिस को लेकर शेयर बाजार का भरोसा काफी कमजोर हो चला है। इसीलिए कमजोरी का कोई छोटा बहाना भी इस शेयर पर काफी भारी पड़ने लगा है। इस कमजोर भरोसे का कारण यही है कि कंपनी का मौजूदा प्रबंधन बाजार को ज्यादा आश्वस्त नहीं कर पा रहा है। या फिर कह सकते हैं कि प्रबंधन में बार-बार का बदलाव बाजार को रास नहीं आ रहा है।
इसीलिए कंपनी के मौजूदा सीएफओ वी बालकृष्णन को इस पद से हटा कर बीपीओ, फिनैकल और भारतीय कारोबार का प्रमुख बनाये जाने को बाजार ने नकारात्मक ढंग से देखा है। कंपनी भले ही यह बता रही हो कि शीर्ष स्तर पर लोगों को ज्यादा जिम्मेदारियाँ देने के लिए इस तरह के बदलाव होते रहते हैं, लेकिन यह सफाई बाजार को भरोसा नहीं दिला पा रही है। बाजार ने मोहनदास पई से जुड़े घटनाक्रम को भुलाया नहीं है, जिन्हें पहले सीएफओ पद से ही हटा कर एचआर निदेशक बनाया गया और बाद में सीईओ पद की दौड़ में पिछड़ने के बाद उन्होंने कंपनी छोड़ दी।
यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि वी बालकृष्णन के मामले में असलियत क्या है। लेकिन इस बदलाव का एक मतलब यह भी हो सकता है कि कंपनी बीपीओ कारोबार को मुश्किल के दौर से निकालने के लिए ऐसा कर रही हो। उन्हें फिनैकल और भारतीय कारोबार की भी जिम्मेदारी दी जा रही है, जो इस बात का संकेत हो सकता है कि इन्फोसिस अब भारतीय बाजार को लेकर ज्यादा आक्रामक होना चाहती है। भारतीय बाजार में कम पैठ इन्फोसिस की कमजोरी रही है।
कंपनी के इन तिमाही नतीजों में कुछ विश्लेषक मार्जिन को लेकर निराश दिखे, खास कर सालाना मार्जिन के बारे में कंपनी के अनुमान को लेकर। लेकिन कंपनी की सफाई है कि हाल में डॉलर के मुकाबले रुपये में आयी मजबूती और कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि के बावजूद मार्जिन के अनुमान को स्थिर रखा गया है।
विश्लेषकों को यह भी उम्मीद थी कि कंपनी शायद लोडस्टोन के अधिग्रहण के मद्देनजर डॉलर में अपनी सालाना आमदनी के अनुमान को बढ़ायेगी, लेकिन जब अनुमान नहीं बढ़ाया गया तो वे निराशा नजर आये। हालाँकि कंपनी ने इस पर भी स्पष्ट किया है कि उसने 2012-13 की आमदनी को जो ताजा सालाना अनुमान रखे हैं, उनमें लोडस्टोन के अधिग्रहण के असर को शामिल नहीं किया गया है। यानी विश्लेषकों को इस मामले में निराश होने की जरूरत नहीं है। दरअसल इस सौदे की सारी औपचारिकताएँ अभी पूरी हो रही हैं और यह करीब हफ्ते भर में निपट सकता है। इसीलिए कंपनी ने संकेत दिया है कि अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही के नतीजों में लोडस्टोन के आँकड़े जुड़ सकते हैं।
जहाँ तक शेयर भावों की बात है, अगर पूरा बाजार ही कमजोर होता न दिखे तो शायद इन्फोसिस ने आज सुबह 2311 के स्तर पर अपनी एक और तलहटी बना ली है। जब तक यह 2270 के स्तर को न तोड़े, तब तक इसमें और ज्यादा तीखी गिरावट की चिंता करने की जरूरत नहीं होगी। इसलिए दबाव के इस दौर को खरीदारी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 12 अक्टूबर 2012)