शेयर छोटे जोखिम बड़ा : जरा सँभल कर

राजीव रंजन झा : अक्सर आम निवेशक यह धारणा पाल कर बैठते हैं कि बड़ा मुनाफा केवल छोटे-मँझोले शेयरों में ही कमाया जा सकता है।

उनका सोचना यह होता है कि बड़े शेयरों पर तो सारी दुनिया की नजर रहती है, सारे विश्लेषक उनके बारे में हर कहानी भुना चुके होते हैं, ऐसे में कोई छिपा रत्न बड़े शेयरों के बीच कैसे मिल सकता है। इसलिए वे छोटे-मँझोले शेयरों के बीच अपना रत्न खोजने निकलते हैं। लेकिन इस खोज में अक्सर कोई छिपा रत्न उनके हाथ में आने के बदले उनके पाँव किसी बारुदी सुरंग पर पड़ जाते हैं और उनकी पूँजी उड़ जाती है।
एचडीआईएल, आईवीआरसीएल और तमाम ऐसे मँझोले-छोटे शेयरों में इस हफ्ते जो हाहाकार मचा है, वह इन शेयरों के ज्यादा जोखिम वाले पहलू को फिर से उभार कर सामने लाता है। दरअसल इन शेयरों के बारे में निवेशकों-कारोबारियों को तो जाने दीजिए, अक्सर जानकारों को भी कंपनी की कारोबारी स्थिति के बारे में उस हद तक पता नहीं होता, जितना होना चाहिए। छोटी-मँझोली कंपनियों की ओर से आम तौर पर उतनी जानकारियाँ निवेशक समुदाय को नहीं मिल पातीं, जितनी हमें दिग्गज कंपनियों की ओर से मिल जाती हैं। इस श्रेणी के शेयरों में अक्सर कीमत पर असर डालने वाली महत्वपूर्ण सूचनाएँ पाने के मामले में आम निवेशक या कारोबारी सबसे निचले पायदान पर होता है।
मुझे ऐसा कोई भ्रम नहीं है कि दिग्गज शेयरों में आम निवेशकों को जानकारियाँ देने के मामले में 100% पारदर्शिता बरती जाती है। वहाँ भी एक प्रवृति होती है कि नकारात्मक बातों को छिपाया जाये और सकारात्मक बातों को उछाला जाये। लेकिन छोटे-मँझोले शेयरों के बारे में कहीं ज्यादा जानकारियाँ अंधेरे में छिपी होती हैं। वहीं दिग्गज शेयरों पर हर वक्त सैंकड़ों विश्लेषकों और पत्रकारों की खोजी नजरें टिकी रहती हैं। 
जरा सोचिए कि जिन शेयरों के बारे विश्लेषकों को भी पूरी जानकारी नहीं, या पूरा भरोसा नहीं, उन शेयरों में क्या आप किसी एसएमएस से मिलने वाली सलाह (टिप्स) के दम पर पैसा बना सकते हैं? यहाँ मैं उन ब्रोकिंग फर्मों, रिसर्च फर्मों या विश्लेषकों के एसएमएस की बात नहीं कर रहा, जो बाकायदा पूरे विश्लेषण के बाद केवल अपनी सलाह अपने ग्राहकों तक तेजी से पहुँचाने के लिए एसएमएस को अपना साधन बनाते हैं। बात उन ‘100% सटीक’ टिप्स देने वालों की है, जो केवल एसएमएस पर उपलब्ध हैं और आपको इस बात का कोई अता-पता नहीं लगता कि उनकी सलाह किस आधार पर है।
यह बात ठीक है कि बड़े शेयर कभी छिपे रत्न नहीं हो सकते। लेकिन वे एक रत्न हैं, यह बात पहले से साबित है। बड़े शेयरों में आपको बड़ा मुनाफा नहीं मिल सकता, यह भी एक भ्रम है। दूसरी ओर छिपे रत्न खोजने की कोशिश में कहीं आपके हाथ में सुलगा हुआ पटाखा तो नहीं आ रहा, इसका ध्यान रखना भी जरूरी है।
क्या इसका मतलब यह है कि छोटे-मँझोले शेयरों की ओर देखा ही न जाये, उन्हें अपने पोर्टफोलिओ में रखा ही न जाये? ऐसा नहीं है। छोटे-मँझोले शेयरों की दुनिया काफी बड़ी है। इसलिए खोजने पर आपको ऐसे तमाम नाम मिल जायेंगे, जो निवेश के नजरिये से हर पैमाने पर खरे उतरें। इनके चुनाव के लिए मोटा पैमाना यही है कि क्या कंपनी का कारोबार ठीक चल रहा है, क्या कंपनी और उसके प्रमोटर भरोसेमंद हैं। ये बातें आपको किसी एसएमएस से नहीं पता चल सकतीं। अगर कंपनी, कारोबार और कर्ता-धर्ता में से किसी भी बात पर सवालिया निशान हो तो उस शेयर से दूर रहना ही बेहतर है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 25 जनवरी 2013)