म्यूचुअल फंड क्यों कर रहे हैं बिकवाली

राजीव रंजन झा : अगर म्यूचुअल फंडों की खरीद-बिक्री के आँकड़े देखें तो साल 2012 से वे लगातार ही शेयर बाजार में शुद्ध रूप से बिकवाल की भूमिका में रहे हैं।
साल 2011 में जरूर वे 12 में से 8 महीने खरीदार थे, लेकिन इसके बाद साल 2012 में उन्होंने केवल एक महीने – जून 2012 में 296 करोड़ रुपये की मामूली-सी शुद्ध खरीदारी की थी। अगर साल 2012 के बारहों महीनों का कुल आँकड़ा देखें तो उन्होंने इक्विटी में 20,954 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की थी। इस साल अब तक केवल अगस्त में उन्होंने 1607 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की, बाकी हर महीने में वे बिकवाल रहे। अगस्त की खरीदारी के बाद वे सितंबर के शुरुआती दिनों में फिर से बिकवाली के मोर्चे पर डट गये दिखते हैं।
लेकिन यह बिकवाली बाजार के बारे में उनकी धारणा के बदले एक मजबूरी का नतीजा लगती है। निवेशकों ने बीते 12 महीनों में से अधिकांश महीनों के दौरान इक्विटी म्यूचुअल फंडों (ईएलएसएस सहित) से रिडेंप्शन किया है, यानी अपने पैसे वापस निकाले हैं। इस दौरान केवल मार्च, जून और अगस्त 2013 में इक्विटी और ईएलएसएस फंडों में शुद्ध रूप से नया निवेश आया है। जब इन फंडों के निवेशक अपनी यूनिटें बेच कर पैसे वापस माँग रहे हों, तो फंड मैनेजर के पास पोर्टफोलिओ के शेयर बेच कर नकदी जुटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
खुद शेयर बाजार की सुस्ती और फंड निवेशकों की ओर से पैसे निकालने के दोहरे दबाव के चलते इक्विटी और ईएलएसएस फंडों की कुल परिसंपत्ति या एसेट अंडर कंट्रोल (एयूएम) दिसंबर 2012 के बाद से केवल अप्रैल 2013 के अपवाद को छोड़ कर हर महीने घटा है। दिसंबर 2012 में यह राशि 191,761 करोड़ रुपये थी, जो जुलाई 2013 में घट कर 162,609 करोड़ रुपये रह गयी।
लेकिन दूसरी ओर अगर म्यूचुअल फंड क्षेत्र के फंड मैनेजरों की धारणा की बात करें, तो आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की ओर से किये गये एक ताजा सर्वेक्षण में शेयर बाजार के बारे में उनकी सोच सकारात्मक ही लग रही है। अधिकांश फंड मैनेजर मान रहे हैं कि भारतीय शेयर बाजार उचित मूल्यांकन पर है और कैलेंडर वर्ष 2013 के बाकी बचे महीनों में यह सकारात्मक ही रहना चाहिए। लेकिन रुपये में कमजोरी के रुझान और अमेरिका में फेडरल रिजर्व की प्रोत्साहन योजना या क्वांटिटेटिव ईजिंग (क्यू) के कार्यक्रम को धीमा किये जाने की संभावना के चलते निकट भविष्य के बारे में वे कुछ आशंकित नजर आये। गौरतलब है कि यह सर्वेक्षण अगस्त के मध्य में हुआ, जब डॉलर की कीमत 61 रुपये के आसपास थी।
लेकिन शेयर बाजार के बारे में सकारात्मक धारणा रखने के बावजूद साल 2013-14 में कंपनियों की प्रति शेयर आय (ईपीएस) के अनुमानों में तीन महीने के सर्वेक्षण के मुकाबले कमी दिख रही है। कंपनियों की आय बढ़ने की दर 5% से भी कम रहने जाने की आशंका 23% फंड मैनेजरों को है, जबकि 77% की राय में यह वृद्धि दर केवल 5-10% के बीच रहेगी। ज्यादातर फंड मैनेजरों ने आईटी और फार्मा को अपने पसंदीदा क्षेत्रों में गिना है। संभवतः यह सोच बाजार में रक्षात्मक रुझान और रुपये में कमजोरी के मद्देनजर बनी है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 12 सितंबर 2013)