अब बजट तक निफ्टी (Nifty) 7000-7500 के बड़े दायरे में

राजीव रंजन झा : शेयर बाजार ने इन लोक सभा चुनावों को लेकर जो सोचा था, वह पा लिया और जितना सोचा था उससे कहीं ज्यादा पाया। सेंसेक्स (Sensex) ने शुक्रवार 16 मई को पहली बार 25,000 का आँकड़ा पार कर लिया और 25,376 के नये उच्चतम स्तर तक गया।

निफ्टी (Nifty) ने भी पहली बार 7,500 पार किया और 7,563 के रिकॉर्ड स्तर तक चढ़ा। लेकिन जैसी संभावनाएँ कई विशेषज्ञों ने पहले ही जतायी थीं, इन स्तरों पर जाने के बाद बाजार में मुनाफावसूली भी आ गयी। यह स्वाभाविक ही था।

अब प्रश्न यह है कि यहाँ से आगे बाजार की दशा-दिशा कैसी रहेगी? क्या बाजार शुक्रवार को बने उच्चतम स्तरों को भी पार करके और आगे जाने की गुंजाइश रखता है? या फिलहाल हमने कुछ समय के लिए एक शिखर देख लिया है? अकेले भाजपा को 282 सीटों के स्पष्ट बहुमत और एनडीए को 337 सीटों के मजबूत बहुमत के बाद अब बाजार के लिए कोई बड़ी अच्छी खबर आनी बाकी रह गयी है क्या? अब बाजार किस अगली अच्छी खबर की उम्मीद के आधार पर नयी छलाँग लगायेगा?

अब तो बाजार को इंतजार करना होगा कि नयी सरकार उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन करना शुरू करे और उसके कामकाज से अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव होता दिखने लगे। लेकिन ऐसा होने में तो समय लगेगा। इसलिए बाजार को वह समय एक दायरे में रह कर गुजारना पड़ सकता है।

भाजपा को जिस तरह स्पष्ट बहुमत मिला है, उसके चलते राजनीतिक मोर्चे पर निकट भविष्य में घबराहट या निराशा पैदा करने वाली कोई बुरी खबर मिलने का अंदेशा नहीं लगता। यह सरकार बिना विघ्न-बाधा के आराम से चलेगी और नरेंद्र मोदी अपनी इच्छानुसार फैसले कर सकेंगे। इसलिए बाजार में राजनीतिक वजहों से अब उतार-चढ़ाव आने की आशंका नहीं है।

फिलहाल बाजार के लिए एक छोटी खुशी या निराशा मंत्रिमंडल गठन के समय हो सकती है। बाजार यह देखेगा कि महत्वपूर्ण आर्थिक मंत्रालय किन लोगों को मिलते हैं। वे नाम बाजार को पसंद आते हैं या नहीं, इसके आधार थोड़ी-बहुत उठापटक हो सकती है। लेकिन वह उठापटक एक दायरे के अंदर ही होगी।

शेयर बाजार के लिए अगली सबसे महत्वपूर्ण घटना नयी सरकार के बजट के रूप में सामने आयेगी। अगर बजट ने बाजार को खुश किया तो बाजार और ऊपर की नयी ऊँचाइयाँ हासिल करेगा। अगर बजट से मायूसी मिली तो मुनाफावसूली गहरा सकती है। तब तक शायद मोटे तौर पर निफ्टी 7000-7500 के बड़े दायरे में घूमता रहे। लेकिन इन सबके बीच यह देखना होगा कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीदारी का रुझान कैसा रहता है। अगर वे झोली भर-भर कर डॉलर उड़ेलते रहे तो कोई बाधा कब तक टिकेगी! Rajeev Ranjan Jha

(शेयर मंथन, 19 मई 2014)