एफआईआई (FII) के बिगड़े मिजाज से टूटी बाजार की चाल?

राजीव रंजन झा : पिछले हफ्ते गुरुवार की शाम टीसीएस (TCS) के जो नतीजे आये, वे इतने खराब नहीं थे कि यह शेयर अगले दिन शुक्रवार को 4.22% गिर जाये, मगर ऐसा हुआ।

यह फिर से सोमवार को भी बाजार के साथ-साथ 1.84% गिर गया। शुक्रवार की शाम को रिलायंस इंडस्ट्रीज के नतीजे आये थे। इसके आँकड़े देख कर लग रहा था कि नतीजे मोटे तौर पर बाजार के अनुमानों से थोड़ा बेहतर ही हैं। फिर भी आज सोमवार को रिलायंस 4.46% की भारी गिरावट के साथ बंद हुआ है। इसका मतलब है कि दिग्गजों के तिमाही नतीजे हल्के कमजोर भी हों तो भी भारी पिटाई, और उम्मीद से थोड़े बेहतर भी आ जायें तो भी भारी पिटाई।

अब साथ में शुक्रवार और सोमवार को विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) के आँकड़े देख लेते हैं। एक्सचेंजों के आँकड़ों के मुताबिक शुक्रवार को एफआईआई ने 676 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की थी। उस दिन घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) ने इस बिकवाली के मुकाबले केवल 73 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की। सोमवार को एफआईआई ने 1507 करोड़ रुपये की भारी शुद्ध बिकवाली की है। इसकी तुलना में डीआईआई ने शुद्ध खरीदारी की तो सही, मगर 962 करोड़ रुपये की। यानी वे एफआईआई का बराबरी वाला मुकाबला नहीं कर सके। नतीजा सेंसेक्स और निफ्टी में लगभग 2% की भारी गिरावट के रूप में दिखा है।
तो क्या इसका मतलब यह है कि एफआईआई ने भारतीय बाजार में अब निकट भविष्य में और ज्यादा बड़ी बढ़त की गुंजाइश नहीं देखते हुए बड़ी मुनाफावसूली शुरू कर दी है? अभी हमारे सामने एफआईआई की बिकवाली का दो-तीन दिनों का ही रुझान है, लेकिन अगर यह रुझान जारी रहा तो फिर सीधा मतलब यही निकलेगा। एक एफआईआई निवेशक के नजरिये से देखें तो कई पहलू उन्हें भारतीय बाजार से पैसा निकाल लेने के लिए उकसा सकते हैं।

एक तो अमेरिकी बाजार में तिमाही नतीजे उत्साह नहीं जगा पा रहे और वहाँ उठापटक दिखने लगी है। वैश्विक बाजारों में उत्साह नहीं दिखने पर भारतीय बाजार वैसे ही ठंडा पड़ जाया करता है। दूसरे, भारतीय बाजार में भी कंपनियों के चौथी तिमाही के नतीजे कमजोर रहने की आशंकाएँ हैं। इसलिए कंपनियों की आय के अनुमानों में कटौतियाँ होने की ही आशंकाएँ हैं, यानी जाहिर तौर पर बुनियादी रूप से उनके लक्ष्य भाव घटाये जायेंगे। यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है।

तीसरी बात, अमेरिकी फेडरल रिजर्व देर-सबेर ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला करेगा ही और जब भी ऐसा होगा तो वैश्विक बाजारों से नकदी बाहर निकलेगी। इसका सबसे ज्यादा असर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजारों पर हो सकता है और उनमें भारत एक प्रमुख नाम है। आखिर ऐसे समय में, जब न अमेरिकी बाजार तेजी दिखा पा रहा है और न भारतीय बाजार में नतीजों के दम पर कोई अच्छी उम्मीद दिख रही है, एफआईआई फेडरल रिजर्व की दरों में वृद्धि का औपचारिक ऐलान होने तक का इंतजार क्यों करेंगे? वे पहले ही मुनाफा निकाल लेने की कोशिश क्यों नहीं करेंगे?
इन सबके बीच अगर एफआईआई को टैक्स संबंधी नोटिस मिल रहे हों और वित्त मंत्रालय की ओर कहा जा रहा हो कि परेशानी है तो अदालत जायें, तो उनका रहा-सहा धैर्य भी खत्म होना स्वाभाविक है। मैं यह कतई नहीं कह रहा कि उन्हें टैक्स संबंधी नोटिस नहीं मिलने चाहिए। अगर टैक्स बनता हो तो सरकार क्यों नहीं दावा करेगी? और अगर एफआईआई मानते हैं कि टैक्स नहीं बनता, तो अदालत जाना उनका हक है! उस विवाद में गये बगैर केवल इतनी बात कहूँगा कि टैक्स विवाद ने एफआईआई का मिजाज बिगाड़ने में एक भूमिका निभायी होगी। अभी इस हफ्ते थोड़ा और देखते हैं कि आगे उनके आँकड़े कैसे रहते हैं। अभी तो हफ्ता शुरू ही हुआ है। Rajeev Ranjan Jha

(शेयर मंथन, 20 अप्रैल 2015)