भारत में कमोडिटी बाजार की विकास यात्रा पर बात करते हुए सीबीआई के एक कन्वेंशन में यह स्पष्ट किया गया कि भारत और चीन जैसे देशों के कमोडिटी बाजारों के बीच आज बड़ा अंतर दिखाई देता है।
एनसीडीईएक्स एमडी अरुण रास्ते कहते है कि करीब 20 साल पहले एनसीडीएक्स और चीन के डेलियन स्टॉक एक्सचेंज का आकार लगभग समान था, लेकिन आज डेलियन एक्सचेंज भारत से करीब 150 गुना बड़ा हो चुका है। इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया गया कि चीन में सरकारी एजेंसियां फ्यूचर्स मार्केट में सक्रिय रूप से ट्रेड करती हैं, जबकि भारत में नाफेड और एफसीआई जैसी संस्थाएँ अभी तक कमोडिटी फ्यूचर्स बाजार का पूरा उपयोग नहीं कर पा रही हैं। जिस दिन भारत में भी सरकारी एजेंसियां कमोडिटी फ्यूचर्स में भागीदारी शुरू करेंगी, उसी दिन कमोडिटी बाजार को नई रफ्तार मिल सकती है।
किसानों को कमोडिटी बाजार से जोड़ने की बात लंबे समय से होती रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज 1% से भी कम किसान सीधे तौर पर इस बाजार से जुड़े हुये हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि छोटे किसान को फसल कटते ही तुरंत नकदी की जरूरत होती है। उसे इस बात की अनिश्चितता रहती है कि फसल बेचने के समय क्या दाम मिलेगा और अगर वह तुरंत नहीं बेच पाया तो फसल को कैसे संभालेगा। ऐसे में किसान मजबूरी में अक्सर कम दाम पर फसल बेच देता है, जिससे उसे पूरा लाभ नहीं मिल पाता।
किसानों, सरकार और इंफ्रास्ट्रक्चर की बड़ी बाधाएं
इस समस्या के समाधान के लिए बैंकिंग सिस्टम और वेयरहाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना बेहद जरूरी बताया गया। अगर किसान के पास नजदीक वेयरहाउस की सुविधा हो और वह इलेक्ट्रॉनिक नेगोशिएबल वेयरहाउस रसीद (e-NWR) के जरिए अपनी उपज को गिरवी रखकर 60-70% तक फाइनेंस हासिल कर सके, तो वह एक-दो महीने तक फसल रोक सकता है। इससे किसान को बेहतर कीमत मिलने की संभावना काफी बढ़ जाती है और उसकी तात्कालिक नकदी की समस्या भी हल हो सकती है।
क्यों किसान कमोडिटी बाजार का पूरा फायदा नहीं उठा पा रहे?
एनसीडीएक्स ने खुद को केवल एक एक्सचेंज नहीं बल्कि एक पूरे इकोसिस्टम के रूप में विकसित किया है। इसके तहत क्लियरिंग कॉरपोरेशन, स्पॉट मार्केट और वेयरहाउसिंग रसीद से जुड़ी सब्सिडियरी कंपनियाँ काम कर रही हैं। इस पूरे इकोसिस्टम को मिलाकर देखा जाए तो करीब 4-5% लोग किसी न किसी रूप में इससे जुड़े हुए हैं। फिर भी यह संख्या काफी कम है और इसमें तेजी से बढ़ोतरी की जरूरत है।
कमोडिटी बाजार में एग्री और नॉन-एग्री कमोडिटीज की तुलना को लेकर भी यह स्पष्ट किया गया कि वैल्यू के लिहाज से सोना और क्रूड ऑयल जैसी नॉन-एग्री कमोडिटीज भारी दिखती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कृषि कमोडिटीज का महत्व कम है। असल चुनौती यह है कि कृषि कमोडिटी बाजार डिलीवरी बेस्ड होता है, जिसके लिए मजबूत फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी है। जब तक डिलीवरी सिस्टम, वेयरहाउस और लॉजिस्टिक्स मजबूत नहीं होंगे, तब तक इस बाजार का विस्तार सीमित रहेगा।
(शेयर मंथन, 26 दिसंबर 2025)
(आप किसी भी शेयर, म्यूचुअल फंड, कमोडिटी आदि के बारे में जानकारों की सलाह पाना चाहते हैं, तो सवाल भेजने का तरीका बहुत आसान है! बस, हमारे व्हाट्सऐप्प नंबर +911147529834 पर अपने नाम और शहर के नाम के साथ अपना सवाल भेज दें।)