राघव का सवाल है कि पिछले करीब 6 महीनों से जो भी शेयर खरीदे जाते हैं, वे सुबह तो ऊपर खुलते हैं लेकिन बाद में या तो साइडवेज हो जाते हैं या फिर नीचे चले जाते हैं। ऐसे में खुदरा निवेशकों को क्या करना चाहिए? आइए, बाजार विश्लेषक शोमेश कुमार से जानते हैं कि शेयरों में आगे क्या होने की संभावना है?
बाजार विश्लेषक शोमेश कुमार इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि सबसे पहले इस भ्रम को दूर करना जरूरी है कि क्या यह मंदी (Bear Market) का संकेत है। साफ तौर पर कहा जाए तो मौजूदा भारतीय बाजार को मंदी का बाजार कहना बिल्कुल सही नहीं है। मंदी का बाजार वही होता है जहां अर्थव्यवस्था में गंभीर और गहरी समस्या हो। 2008 का ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस एक असली बेयर मार्केट था क्योंकि उस समय पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था, खासकर फाइनेंशियल सिस्टम, बुरी तरह चरमरा गया था। इसके उलट 2020 में जो तेज गिरावट आई, वह किसी आर्थिक कमजोरी की वजह से नहीं बल्कि एक अचानक आई वैश्विक आपदा (कोविड) की वजह से थी। यही कारण है कि बाजार वहां से बहुत तेज़ी से रिकवर कर गया। अगर वह सच में बेयर मार्केट होता, तो इतनी जल्दी वापसी संभव नहीं होती।
शेयर बाजार असल में अर्थव्यवस्था का प्रतिबिंब होता है। जब तक भारत या वैश्विक स्तर पर कोई बड़ा आर्थिक संकट, रिसेशन या फाइनेंशियल बबल नहीं आता, तब तक बेयर मार्केट की बात करना जल्दबाज़ी होगी। भारत जैसी करीब 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, जो लगभग 7% की दर से बढ़ रही हो, वहां लॉन्ग टर्म मंदी की कल्पना फिलहाल तर्कसंगत नहीं लगती। इसलिए यह मानना ज्यादा सही है कि यह एक कंसोलिडेशन या सेक्टोरल रोटेशन का दौर है, न कि मंदी का।
रोज खरीदे शेयर गिर क्यों जाते हैं?
अब आते हैं असली सवाल पर कि रोज खरीदे गए शेयर नीचे क्यों जाते हैं। इसका पहला और सबसे बड़ा कारण रिटेल निवेशकों की आदत है। ज्यादातर रिटेल निवेशक स्मॉल कैप और माइक्रो कैप शेयरों पर फोकस करते हैं, क्योंकि वहां जल्दी और ज्यादा रिटर्न की उम्मीद होती है। जबकि सच्चाई यह है कि पिछले डेढ़ साल में मिड कैप और स्मॉल कैप में जबरदस्त रैली हो चुकी थी और अब इन सेगमेंट्स को “ब्रीदर” यानी ठहराव की जरूरत थी। इसलिए इन शेयरों में अब साइडवेज या करेक्शन दिखना बिल्कुल सामान्य है।
दूसरा कारण यह है कि कई निवेशक ऐसे सेक्टर्स या शेयरों में एंट्री कर रहे हैं जो पहले ही अपने पूरे रैली फेज़ से गुजर चुके हैं, जैसे कुछ डिफेंस, कैपिटल गुड्स या हाई वैल्यूएशन वाले स्टॉक्स। जब किसी शेयर में पहले ही तेज़ उछाल आ चुका हो और वैल्यूएशन काफी स्ट्रेच हो, तो वहां नई खरीदारी के बाद भाव ऊपर टिकना मुश्किल हो जाता है। नतीजा यह होता है कि निवेशक रोज सुबह वही शेयर गिरते या साइडवेज चलते हुए देखते हैं।
मौजूदा बाजार मंदी में नहीं है, बल्कि यह एक सेलेक्टिव और वैल्यूएशन-ड्रिवन दौर है। रिटेल निवेशकों को यह समझने की जरूरत है कि हर फेज़ में स्मॉल और माइक्रो कैप पैसा नहीं बनाते। सही सेक्टर, सही वैल्यूएशन और धैर्य के साथ की गई रणनीति ही इस तरह की रोज-रोज की निराशा से बचा सकती है।
(शेयर मंथन, 27 दिसंबर 2025)
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