नयी सरकार के लिए व्यापार मोर्चे पर है दो बड़ी चुनौतियाँ - एस्कॉर्ट्स सिक्योरिटीज (Escorts Securities)

शानदार बहुमत के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरू होते ही भारत के सामने व्यापार मोर्चे पर दो मुख्य चुनौतियाँ हैं।

ये दोनों ही चुनौतियाँ अमेरिका के तुनकमिजाज और अप्रत्याशित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के फैसलों के कारण सामने आयी हैं। ट्रम्प अपने राष्ट्र के हितों के लिए लड़ने पर आमादा हैं, भले ही इसका मतलब चीन, मेक्सिको, तुर्की और अब भारत जैसे अन्य देशों के साथ व्यापार युद्ध की घोषणा करना ही हो।
ट्रम्प का पहला फैसला, जो केवल भारत के लिए नहीं है, ईरान से तेल आयात करने वाले सभी आठ देशों को दी गयी छूट समाप्त करना था। दूसरे फैसले, जिसके जरिये भारत को विशेष रूप से लक्षित किया गया, में अमेरिका के सामान्यीकृत प्रणाली वरीयता (जीएसपी) के तहत 05 जून से भारत को प्राप्त लाभार्थी देश का दर्जा खत्म कर दिया गया।

ईरान से तेल आयात पर रोक
नवंबर में अमेरिका ने भारत सहित 8 देशों को 6 महीनों के लिए ईरान से तेल आयात करने की छूट दी थी, जो कि मई के पहले हफ्ते में समाप्त हो गयी। छूट समाप्त होने के बाद भारत को ईरान से तेल आयात रोकना पड़ा, जो इराक और सऊदी अरब के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है। अमेरिका की छूट खत्म होने के कुछ दिनों बाद ईरान से तेल आयात जारी रखने के लिए भारत को मनाने का प्रयास करने के लिए ईरानी विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने भारत का दौरा किया। मगर ऐसा लगता है कि विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से दोहराया कि आम चुनाव के परिणामों की घोषणा के बाद नयी सरकार द्वारा व्यावसायिक विचारों और ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही निर्णय लिया जायेगा।
अभी तक भारतीय सरकार ने ईरान पर लगे प्रतिबंधों की निंदा नहीं की है। भारत सरकार का रुख भी प्रतिबंधों को पूरी तरह से मानने वाला लगता है, भले ही वे भारत के हितों को नुकसान पहुँचाये और इसकी स्वायत्तता को सीमित करें। नयी सरकार के अमेरिकी प्रतिबंधों की उपेक्षा करने और ईरान से तेल आयात करने की संभावना भी नहीं है।
इस प्रकार इस समय ऐसा लगता है कि भारत, जिसने वित्त वर्ष 2018-19 में ईरान से 2.36 करोड़ टन तेल खरीदा था, ईरान से तेल आयात रोकने पर सऊदी अरब, अमेरिका, मेक्सिको और नाइजीरिया जैसे अन्य प्रमुख तेल उत्पादक देशों से तेल की जरूरत पूरी करेगा। इसी कड़ी में इंडियन ऑयल जैसी रिफाइनरी कंपनियों ने अमेरिका से कच्चे तेल के आयात के लिए दो समझौते किये हैं। साथ ही नॉर्वे की तेल कंपनी इक्विनॉर से 30 लाख टन और अल्जीरिया की राष्ट्रीय तेल कंपनी सोनाट्राच से 16 लाख टन कच्चा तेल खरीदने के लिए भी करार किया गया है।

भारत के लिए विशेष व्यापार लाभ समाप्त
भारत के विशाल बाजार में अमेरिकी उत्पादों के लिए न्यायसंगत और उचित पहुँच का आश्वासन न होने पर नाराज होकर 05 जून 2019 से ट्रम्प ने जीएसपी के तहत भारत का 'लाभकारी विकासशील देश' का दर्जा समाप्त कर दिया। जीएसपी के तहत अमेरिका लगभग 120 से अधिक लाभार्थी देशों के हजारों उत्पादों के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देता है। भारत इस अमेरिकी कार्यक्रम का सबसे अधिक लाभ प्राप्त करने वाला देश है, जिसने 6.35 अरब डॉलर की वस्तुओं का निर्यात किया है। जीएसपी के फायदों का प्रमुख आकर्षण यह था कि वे एकतरफा और गैर-पारस्परिक थे।
जीएसपी कार्यक्रम, जो देखने में तथाकथित विकासशील देशों की मदद करने के लिए बनाया गया लगता है, से अमेरिका के छोटे व्यवसायों को भी लाभ हुआ, क्योंकि वे बिना शुल्क भुगतान के भारत से सामग्री आयात कर सकते थे, जिससे अमेरिका में तैयार उपभोक्ता उत्पादों की लागत कम रहती है। एक अमेरिकी अनुमान के मुताबिक ट्रम्प का भारत को जीएसपी लाभार्थियों की सूची में से हटाने से अमेरिकी कारोबारियों के लिए 30 करोड़ डॉलर की अतिरिक्त लागत बढ़ा सकता है।

भारत पर प्रभाव
अमेरिका कारोबार प्रतिनिधि कार्यालय के आँकड़ों के अनुसार भारत को 2018 में जीएसपी शुल्क छूट से कुल 26 करोड़ डॉलर का लाभ हुआ। आधिकारिक तौर पर अमेरिकी बाजार में भारत के सामानों की शुल्क मुक्त पहुँच को समाप्त करने के ट्रंप के फैसले पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया असाधारण रूप से परिपक्व और शांत रही। एक आधिकारिक विज्ञप्ति में इसे केवल "दुर्भाग्यपूर्ण" कहा गया। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल इस पर असामान्य रूप से हैरान नहीं हैं। गोयल ने इस मामले पर कहा कि "भारत अमेरिका द्वारा प्रदान की गयी जीएसपी योजना पर आश्रित हुए बिना अपने आप में निर्यात प्रतिस्पर्धा तैयार करने का प्रयास करेगा। यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे कोई भी निर्यातक जीवन और मृत्यु के मामले के रूप में उठाये। इसका कुछ क्षेत्रों और जगहों पर 1-2% प्रभाव रहा। भारत कोई अविकसित या सबसे कम विकसित देश नहीं है कि उस तरह (जीएसपी) के समर्थन पर ध्यान लगाये।"
हालाँकि इस मामले में व्यापार संघ कम आशापूर्ण हैं। भारतीय निर्यात संगठन संघ (एफआईईओ) का मानना है कि वे उत्पाद जिन पर जीएसपी का लाभ 3% या उससे अधिक का है उन पर निर्यातकों के लिए नुकसान वहन करना मुश्किल हो सकता है। इसका प्रभाव केवल प्रोसेस्ड फूड, चमड़ा, प्लास्टिक, निर्माण सामग्री और टाइल, इंजीनियरिंग सामान और हाथ के औजारों जैसे क्षेत्रों पर कम होगा। कुछ निर्यातकों को डर है कि जीएसपी लाभ के समाप्त होने से उन बाकी देशों के उत्पादकों की बाजार हिस्सेदारी बढ़ सकती है, जिन्हें जीएसपी की सुविधा मिलती रहेगी।

नजरिया
किसी भी समस्या के लिए राष्ट्रपति ट्रम्प का दृष्टिकोण एक चतुर व्यापारी का प्रतीत होता है, जो कूटनीतिक बारीकियों या पुराने उदाहरणों से चिंतित नहीं है। लंबे समय से चले आ रहे समझौतों को समाप्त करने की एकतरफा घोषणा की उनकी मानक रणनीति को दूसरे पक्ष को बातचीत की मेज पर लाने के लिए तैयार की गयी है, ताकि वे अपने देश को कुछ लाभ पहुँचा सकें। यहाँ तक कि तेल आयात पर छूट का अंत ईरान को वार्ता की मेज पर मजबूर करना है। भारत ने अमेरिका को अपने बाजारों में न्यायसंगत और उचित पहुँच प्रदान करने का आश्वासन दिया है। इससे संभव है कि जीएसपी लाभ भारत के लिए फिर से बहाल हो जाये। (शेयर मंथन, 11 जून 2019)