सरकारी पैकेजः कुछ करना था, इसलिए...

राजीव रंजन झा

सरकारी पैकेज आखिरकार आ गया। शनिवार को लाने की बात थी, थोड़ा टला और रविवार को आया। कुल मिलाकर सरकार ने सोचा-विचारा ज्यादा, किया कम। सरकारी उपायों की घोषणा करने वाले योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने यह बात तो ठीक कही कि 7% विकास दर की संभावना दिखने की वजह से हम आत्मसंतुष्ट नहीं हो सकते, इसलिए विकास दर को कम कर सकने वाली समस्याएँ सामने आने से पहले हम कदम उठाना चाहते हैं। लेकिन फिलहाल जो कदम उन्होंने सामने रखे हैं, वे पहाड़ जैसी समस्या के सामने राई जितने हैं।


जरा गौर करें कि चीन भी मंदी की चपेट में नहीं है, बल्कि वह भी अपनी विकास दर को गिरने से ही बचाना चाहता है। लेकिन इसके लिए वहाँ की सरकार ने 586 अरब डॉलर का पैकेज तैयार किया। हमारी सरकार का मौजूदा पैकेज 6-7 अरब डॉलर का है। उद्योग जगत ने स्वाभाविक रूप से इस सरकारी पैकेज का स्वागत तो किया है, लेकिन यह भी साफ शब्दों में कहा है कि यह उसकी उम्मीदों से काफी कम है।
इसी बात का एक दूसरा पहलू भी है, जिस पर सरकार को नजर रखने की जरूरत है। सरकार को यह देखना होगा कि उसने उद्योग जगत को उत्पाद शुल्क में जो रियायतें दी हैं, वे वास्तव में आम उपभोक्ता की झोली तक जायें। मौजूदा माहौल में यह आश्चर्यजनक नहीं होगा, अगर कई क्षेत्रों की कंपनियाँ बस अपना मुनाफा कायम रखने के लिए इन रियायतों को खुद ही हड़प लेना चाहें।
ताज्जुब की बात तो यह है कि संकट में फंसे क्षेत्र इन रियायतों का फायदा तुरंत ग्राहकों को देने के लिए तैयार दिखते हैं, लेकिन जिनकी गाड़ी ठीक चल रही है वैसे क्षेत्र इस अतिरिक्त फायदे को अपनी ही जेब में डालना चाहते हैं। मसलन, ऑटो क्षेत्र ने तुरंत यह जताया है कि वह उत्पाद शुल्क में कमी का फायदा अपने ग्राहकों को देगा। लेकिन दूसरी ओर एफएमसीजी क्षेत्र की कंपनियाँ ऐसा कोई भरोसा नहीं दिला रहीं, जबकि ताजा खबरों के मुताबिक शहरी और ग्रामीण दोनों ही बाजारों में उनकी बिक्री हाल में काफी मजबूत रही है।
आज शेयर बाजार की संभावित प्रतिक्रिया की बात करें, तो सरकारी पैकेज की तुलना में शायद आरबीआई के शनिवार के फैसलों पर बाजार ज्यादा खुश होगा। अगर-मगर की गुंजाइश तो हमेशी रहती है, लेकिन दरों में कटौती मोटे तौर पर उम्मीदों के मुताबिक ही है।