'आप' ने बढ़ायी है राजनीतिक अनिश्चितता : अजय उपाध्याय

आम आदमी पार्टी के उभरने से निश्चित तौर पर आगामी लोक सभा चुनाव रोचक हो गया है और 2014 का आम चुनाव एक ऐतिहासिक चुनाव होगा।
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी का कितना प्रभाव रहेगा, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन प्रभाव तो निश्चित तौर पर पड़ेगा। बड़े शहरों में इनका ठीक-ठाक असर दिख सकता है। अब बड़े शहरों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में इनका कितना असर पड़ता है, यह देखने वाली बात होगी। ये लोग भी आक्रामक और पेशेवर प्रचारक हैं। गाँव-गाँव में फैल जाना इन लोगों के लिए बहुत मुश्किल नहीं है। कुल मिला कर इनका ठीक-ठाक प्रभाव पड़ेगा। जहाँ तक लोक सभा के चुनावी समीकरणों का सवाल है, वह पहले तो यही था कि कांग्रेस कमजोर हो रही है और भाजपा मजबूत है, क्योंकि मोदी का एक बड़ा असर है। कांग्रेस इस हिसाब से देख रही है कि अगर अरविंद केजरीवाल आयेंगे तो भाजपा का वोट काटेंगे और मोदी के रास्ते में रोड़ा बनेंगे। अभी तक यही था कि मोदी आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन अब मोदी के साथ इसमें एक और व्यक्ति आ गया है। 
लेकिन देखा जाये तो कांग्रेस का कहीं ज्यादा बड़ा नुकसान है। दिल्ली के चुनाव में तो कांग्रेस को करीब 15% वोटों का नुकसान हुआ है, जबकि भाजपा को बस 3% वोटों का नुकसान हुआ है। कभी-कभी होता है कि लोग इस तरह की पार्टी को आगे बढ़ाते हैं। आप सोचते हैं कि स्थितियाँ आपके नियंत्रण में हैं। लेकिन कभी-कभी चीजें हाथ में रहती नहीं हैं। आप किसी चीज को आगे बढ़ाते हैं, लेकिन फिर वे वापस आपके हाथ नहीं आतीं। अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस ने भी आगे बढ़ाया, सोनिया गाँधी ने भी ठीक-ठाक बढ़ावा दिया। फिर उसके बाद जब अन्ना हजारे आये तो आरएसएस-भाजपा ने भी उसमें हाथ बँटाया। इन सबको लगा कि वे हमारे हाथ में हैं। लेकिन असल में वे इनमें से किसी के हाथ में नहीं थे। वे ठीक-ठाक प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वे बस किसी एक का नुकसान करेंगे। दरअसल वे कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुँचायेंगे। लेकिन वे किसको असली चोट पहुँचायेंगे, यह देखने वाली बात होगी।
दिल्ली चुनाव में 'आप' के बेहतर प्रदर्शन के कई मायने हैं। इसकी कई तरीके से व्याख्या की जा सकती है। 'आप' पर ठीक से नजर रखनी होगी, क्योंकि यह एक ऐसे कारक के रूप में उभर रहा है जो किसी भी तरफ पासा फेंक सकता है और किसी भी तरफ पलड़े को झुका सकता है। यह बात जरूर है कि विधान सभा चुनाव के पहले के जो समीकरण थे, अब वे बदल गये हैं। रही बात यह कि 'आप' किसको ज्यादा नुकसान पहुँचायेगा। अक्सर ऐसा होता है कि डूबते जहाज को ही लोग जल्दी छोड़ते हैं। कांग्रेस ने यह चूक की है कि जब 'आप' पार्टी ने भ्रष्टाचार और महँगाई को मुद्दा बना लिया और उस पर कामयाब हो गयी, तब कांग्रेस कह रही है कि भ्रष्टाचार एक मुद्दा है। जब आप किसी पार्टी की नकल करते हैं तो कोई नयी चीज नहीं दे रहे हैं। जो 'आप' पार्टी ने कहा, उसी को आप विधान सभा चुनाव के बाद कह रहे हैं, तो जनता यही कहेगी कि पचास सालों से तो आप यही कर रहे थे। अब अचानक यह हृदय परिवर्तन क्यों है? 
पहले भी तो मीडिया कह ही रहा था न कि महँगाई है। तब ये लोग कहते थे कि मीडिया वालों को समझ में नहीं आता है कि राजकाज क्या होता है। हमको शहरी मतदाता का वोट चाहिए ही नहीं। ये लोग ऐसी बातें भी कर रहे थे कि हमारे जो प्रमुख कार्यक्रम हैं, वे उस मतदाता के लिए हैं जो चुपचाप वोट करता है। इस बात की सबसे बड़ी परीक्षा राजस्थान में थी, जहाँ राज्य सरकार भी इन्हीं की थी। सब लोग इस बात की उम्मीद भी कर रहे थे कि इनके प्रमुख कार्यक्रम शायद वहाँ कुछ करिश्मा दिखायेंगे। लेकिन करिश्मा नहीं हुआ। अब अगर राजस्थान में गरीबी के ऊपर 2.5 लाख करोड़ रुपये के बड़े बजट वाले प्रमुख कार्यक्रमों ने कोई करिश्मा नहीं दिखाया तो कांग्रेस क्या करेगी, यह देखने की बात है। अगर ये मतदाता साथ नहीं आते तो क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी। जो काम मनरेगा ने यूपी में कांग्रेस के लिए किया, क्या इस बार के प्रमुख फ्लैगशिप कार्यक्रम वही प्रदर्शन कांग्रेस के लिए दोहरायेंगे, वह देखने की बात है।
यह तो कहा ही जा सकता है कि 'आप' के उभरने के चलते राजनीतिक परिदृश्य पहले से ज्यादा अनिश्चित हो गया है। जहाँ तक भाजपा की बात है, उसमें तीन तरह की बातें हैं। अगर 200 से ज्यादा सीटें भाजपा को मिलती हैं तभी मोदी प्रधानमंत्री बन पायेंगे। कुछ लोग कह रहे हैं कि उनके साथ बहुत से सहयोगी दल नहीं आयेंगे। कुछ लोग कह रहे हैं कि यदि भाजपा को 180 से ऊपर सीटें भी मिलीं तो जोड़-तोड़ कर के मोदी प्रधानमंत्री बन जायेंगे। भाजपा को 180 से ऊपर सीटें मिलने पर उसकी सरकार बनना तो समझ में आता है, लेकिन अगर भाजपा 180 सीटें भी नहीं पाती है तो मोदी के प्रधानमंत्री बन सकने पर एक प्रश्न चिह्न है।
इसके बाद सवाल यह है कि सबसे बड़े दल के तौर पर कौन उभरता है और कौन गठबंधन बना सकता है। इसमें तीसरे मोर्चे की भी थोड़ी गुंजाइश बढ़ती ही जायेगी। सुना है कि केरल में अच्युतानंदन से प्रशांत भूषण की मुलाकात हुई है। चूँकि विजयन और अच्युतानंदन का झगड़ा है तो हो सकता है कि अच्युतानंदन उधर चले जायें। योगेंद्र यादव को भी 'आप' ने हरियाणा का सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इस तरह आम आदमी पार्टी अपना आधार बढ़ा रही है। एक संभावना यह भी रहेगी कि तीसरा मोर्चा भी ठीक-ठाक तरीके से उभर सकता है। अजय उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार 
(शेयर मंथन, 01 जनवरी 2014)