यह सत्यम नहीं, और सुंदरम तो बिल्कुल नहीं

राजीव रंजन झा

सत्यम कंप्यूटर आज एक अराजक कंपनी बन चुकी है। इसकी बागडोर ऐसे प्रबंधन के हाथों में है, जिसके पास कंपनी की महज 5% या उससे भी कम हिस्सेदारी है और बाकी निवेशकों का विश्वास यह प्रबंधन पूरी तरह खो चुका है। इसके बावजूद ऐसा जान पड़ता है कि यह प्रबंधन किसी भी तरह की जोड़-तोड़ से खुद को बचाये रखने की अंतिम कोशिशों में लगा है। अब यह साफ हो चुका है कि इस प्रबंधन ने न केवल अपने निवेशकों से, बल्कि खुद अपने निदेशक बोर्ड से कंपनी के बड़े-बड़े सत्यों को छिपाये रखा।

यह साफ दिख रहा है कि पर्दे के पीछे काफी कुछ ऐसा हो रहा है, जिसकी जानकारी शेयरधारकों को नहीं मिल रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो विनोद धाम ने कल इस्तीफा नहीं दिया होता, जिन्होंने केवल 2 दिन पहले यह कहा था कि मैंने विभिन्न विकल्पों पर विचार करने और चिंताओं को दूर करने के लिए बोर्ड की एक विशेष बैठक बुलाये जाने का अनुरोध किया है। जाहिर है कि 2 दिनों पहले तक विनोद धाम को सत्यम से कुछ उम्मीदें थीं, लेकिन कल वे उम्मीदें समाप्त हो गयीं।
कल ही कंपनी के 2 और स्वतंत्र निदेशकों ने भी इस्तीफा दिया, जिनमें प्रो. कृष्ण जी पालेपु और प्रो. राममोहन राव शामिल हैं। इससे पहले 25 दिसंबर को डॉ. मंगलम श्रीनिवासन ने भी इस्तीफा दे दिया था। ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों की प्रसिद्ध हस्तियाँ हैं और मेटास सौदों के बाद बाजार को इन पर भी काफी गुस्सा था। गुस्सा इसलिए कि इन नामों के बोर्ड में रहते निवेशकों के साथ धोखे का इतना बड़ा फैसला कैसे हो गया। इतना सब कुछ होने के बावजूद बाजार ने इन पर केवल अक्षमता या अपनी सही जिम्मेदारी नहीं निभाने का ही आरोप लगाया, उनकी नीयत पर सवाल नहीं उठाया।
अब रामलिंग राजू परिवार के शेयर मार्जिन कॉल की वजह से बेचे जाने की खबरें सामने आने से यह साफ हो गया है कि खुद अपने वित्तीय संकट की वजह से इस परिवार ने सत्यम की नकदी हड़पने का खेल रचा था। यह सारा सत्य जगजाहिर हो जाने पर भी अगर यह परिवार सत्यम पर नियंत्रण बनाये रखने की कोशिशों में लगा है, तो इस पर आश्चर्य ही होता है। लेकिन उससे ज्यादा आश्चर्य इस बात पर है कि कंपनी के बाकी 95% शेयरधारक क्या कर रहे हैं!