राजीव रंजन झा
भारत और अमेरिका या दूसरी संकटग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं की तुलना करते समय अक्सर हम बड़े संतोष के साथ कहते हैं कि चलो हमारी विकास दर भले ही कुछ घट रही हो, लेकिन हमारी स्थिति अमेरिका और यूरोप से काफी अच्छी है। हमारी विकास दर कितनी भी घटे, यह नकारात्मक तो नहीं होने वाली। लेकिन विकास दर की रफ्तार में लगातार हमसे दो कदम आगे ही चलते रहने वाले चीन ने एक बार फिर बताया है कि तेज विकास का कोई विकल्प नहीं है और इसमें आत्मसंतुष्टि की कोई जगह नहीं है।
भारत की विकास दर अब 7-8% के बीच झूलने लगी है। भविष्य में 7% विकास दर बने रहने पर भी सवाल हैं। वहीं चीन की विकास दर इस साल की तीसरी तिमाही में 9% रही है। यानी विश्व अर्थव्यवस्था के संकट के दौर में भी चीन की विकास दर इतनी तेज है, जितनी अपने लिए हम अच्छे दौर में बने रहने की कामना करते हैं। बेशक, अपने ऊपरी स्तरों से चीन की विकास दर काफी घट गयी है। पिछले साल उसकी विकास दर 11.9% पर थी। लेकिन हम तो दो अंकों में विकास दर ले जाने का सपना ही देखते रहे हैं, वह भी जब सब-कुछ हरा-भरा दिख रहा था। अब तो 10% विकास दर का सपना भी कोई नहीं देख रहा होगा।
लेकिन इतनी तेज रफ्तार से विकास करते रहने के बाद भी चीन ने विश्व अर्थव्यवस्था के संकट का सामना करने के लिए 586 अरब डॉलर के एक पैकेज का ऐलान कर दिया है। पैकेज इतना बड़ा है, मानो चीन भी अमेरिका के बराबर ही संकट झेल रहा हो। लेकिन चीन की लड़ाई अपने अर्थ-तंत्र को बचाने की नहीं, उसकी चाल सबसे तेज बनाये रखने की है। मगर इन सबके बीच भारत क्या कर रहा है?
भारत सरकार ने अब तक भरोसा तो काफी बार जताया है कि विकास दर 7.5% के आसपास बनी रहेगी। लेकिन भला कैसे? केवल ईश्वरीय कृपा से, या सरकार ने इसके लिए कुछ करने की बात सोच रखी है? कोई योजना है तो क्या वह इतनी गोपनीय है कि देश को बताना ठीक नहीं समझा गया है? और फिर 7.5% पर संतोष क्यों? हमसे बड़ी अर्थव्यवस्था या तो 9% पर संतोष नहीं कर रही है, या फिर उसे डर है कि कहीं भविष्य यह और न घट जाये।
दोनों ही स्थितियाँ क्या भारत पर भी लागू नहीं होतीं? यदि भविष्य में स्थिति और बिगड़ने के डर से चीन ने यह विशाल पैकेज बनाया है, तो यह भारत के लिए भी खतरे की घंटी है। यदि चीन ने 9% विकास दर को अपने लिए बेहद कम मान कर यह पैकेज बनाया है, तो भारत को भी 7.5% पर आत्मसंतुष्टि में नहीं घिरना चाहिए।