सत्यम को बचाने के नाम पर अपराध नजरअंदाज !

राजीव रंजन झा

आखिरकार सत्यम को अपना नया सीईओ मिल गया, खुद अपने ही घर के अंदर, कंपनी को अपने 15 साल की सेवाएँ दे चुके ए ए मूर्ति के रूप में। लेकिन जब कॉर्पोरेट कार्य मंत्री प्रेमचंद गुप्ता बार-बार कहते थे कि किसी ‘इनसाइडर’ को ही सत्यम का नया सीईओ बनाना अच्छा रहेगा, तो शायद उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि उनकी ओर से नियुक्त बोर्ड इस सलाह को इतनी गंभीरता से लेगा और ऐसे व्यक्ति को चुनेगा जिस पर ‘इनसाइडर ट्रेडिंग’ का संदेह बन रहा है!

ए एस मूर्ति ने 12 दिसंबर को सत्यम के 7,000 शेयर और 15 दिसंबर को 14,000 शेयर बेचे। फिर 16 दिसंबर को उन्होंने और 19,000 शेयर बेचे। इस तरह इन तीन सौदों के जरिये उन्होंने सत्यम के कुल 40,000 शेयर बेचे। बेचने का समय याद करें – मेटास सौदों की घोषणा होने से ठीक पहले। बी. रामलिंग राजू ने 16 दिसंबर 2008 की शाम को ही मेटास इन्फ्रा और मेटास प्रॉपर्टीज को खरीदने की घोषणा की थी, जिसके बाद चीजें उनके हाथ से फिसलती चली गयी। वास्तव में अब यही समझ में आ रहा है कि चीजें उनके हाथ से पहले ही फिसल चुकी थीं और मेटास सौदा स्थिति को वापस अपने नियंत्रण में लाने की उनकी आखिरी कोशिश थी। यह भी याद करें कि उसी तारीख के बाद सत्यम के शेयर भाव किस तरह फिसलते चले गये!
ए एस मूर्ति अब तक कंपनी के ग्लोबल सेल्स प्रमुख की भूमिका निभा रहे थे। इतनी अहम भूमिका में रहे व्यक्ति को कंपनी के इतने गहरे संकट का आभास नहीं था, यह मानना मुश्किल है। ऐसे में जब इतनी महत्वपूर्ण घोषणा से ठीक पहले उसने कंपनी के शेयर बेचे, तो उस पर इनसाइडर ट्रेडिंग का आरोप लगना स्वाभाविक है। लेकिन सत्यम के बोर्ड सदस्य दीपक पारिख ने मूर्ति की सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि मूर्ति के इन सौदों की जानकारी बोर्ड को है और बोर्ड संतुष्ट है कि इसमें इनसाइडर ट्रेडिंग नहीं की गयी। अगर दीपक पारिख इतने आश्वस्त हैं तो उन्हें निवेशकों को बताना चाहिए कि भला किस वजह से उन्हें इस बात का भरोसा है।
बाजार के कुछ जानकारों का कहना है कि इस मामले में इनसाइडर ट्रेडिंग का संदेह तो सीधे तौर पर बनता है, लेकिन कंपनी को इस संकट से उबारने के लिए ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो उसके कामकाज को ठीक से जानता-समझता हो। बिल्कुल सही, और इस लिहाज से तो सबसे सटीक व्यक्ति अभी चंचलगुडा जेल में है, बुला लीजिए। रामलिंग राजू से बेहतर कौन जानता है सत्यम को!