ब्याज दरें घटाना जरूरी

राजीव रंजन झा

इस 27 जनवरी को जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रेपो दर, रिवर्स रेपो दर और सीआरआर में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया था, तब उसे इस बात का एक अंदाजा तो रहा ही होगा कि दिसंबर महीना भारतीय उद्योग जगत के लिए कैसा बीता है। इसके बावजूद आरबीआई ने इस आधार पर दरों में बदलाव नहीं किया कि उसने पहले जितने कदम उठाये हैं, अभी उनका ही पूरा असर बाजार में दिखना बाकी है। लेकिन औद्योगिक उत्पादन के दिसंबर के आँकड़े शायद आरबीआई को स्थिति की फिर से समीक्षा के लिए मजबूर करेंगे।

आरबीआई की यह बात बिल्कुल ठीक है कि उसने वाणिज्यक बैंकों को दरों में कटौती का जितना फायदा दिया है, वह सारा फायदा अभी बैंकों ने अपने ग्राहकों को नहीं दिया है। निजी बैंक और सरकारी बैंक दोनों ही ऐसा कर रहे हैं। सरकारी बैंकों ने तो सरकार के दबाव में कुछ कदम उठाये भी हैं, निजी बैंक अब तक अपनी ऊँची दरों पर अटके हैं। आरबीआई को यह सोचना होगा कि वह कैसे इन बैंकों को अपनी दरों में नरमी लाने के लिए तैयार करे। वह इन्हें दरें घटाने का सीधा आदेश नहीं दे सकता, और उसकी ओर से नरम-गरम संकेत तो काफी समय से दिये जा रहे हैं। तो अब आरबीआई इस बारे में क्या करे, यह एक अजीब पहेली है!
लेकिन आरबीआई इस बात का इंतजार करते नहीं बैठा रह सकता कि जब तक उसके पिछले कदमों का पूरा असर बाजार में नहीं दिखता, तब तक वह नये कदम नहीं उठायेगा। वास्तव में उसकी ओर से नयी पहल वाणिज्यिक बैंकों को एक नया और सीधा संकेत देगी और वे अपनी दरें घटाने के लिए ज्यादा सुविधाजनक स्थिति में होंगे। हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि बैंकों के सामने भी अपने दबाव और डर हैं। नकदी की स्थिति सहज हो जाने की बात बार-बार कही जा रही है। लेकिन उसके बाद भी तमाम बैंक ग्राहकों की जमाराशियों पर ब्याज दरें ज्यादा नहीं घटा सके हैं। उनकी यह बात तो माननी होगी कि जमा और कर्ज दोनों पर ब्याज दरों के बीच सीधा संबंध है। जब तक उनकी लागत नहीं घटती, तब तक स्वाभाविक रूप से कर्ज पर ब्याज दरें घटाने में उनके हाथ कुछ बंधे रहेंगे।
इसलिए अगर आरबीआई चाहता है कि बैंकों के खुदरा और कॉर्पोरेट ग्राहकों के लिए ब्याज दरें घटें, तो उसे बैंकों के दबाव और डर दोनों को दूर करने वाले कदम उठाने होंगे। इसमें सबसे पहला स्वाभाविक कदम तो यही है कि वह रेपो दर, रिवर्स रेपो दर और सीआरआर में जल्दी ही एक कटौती करे।