स्मॉलकैप फंडों पर सेबी की चिंता से क्या रुक जायेंगे बुलबुले?

बाजार नियामक (रेगुलेटर) सेबी इन दिनों म्यूचुअल फंडों के निवेशकों के लिए थोड़ा परेशान है। यह परेशानी उन निवेशकों के लिए ज्यादा है, जिन्होंने स्मॉलकैप और मिडकैप फंडों में निवेश कर रखा है।

सेबी को डर है कि स्मॉलकैप और मिडकैप में एक बुलबुला बन रहा है, जो कभी भी फूट सकता है। अगर ऐसा होता है निवेशकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह डर इसलिए है, क्योंकि पिछले साल स्मॉलकैप और मिडकैप फंडों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। दोनों श्रेणियों की यह तेजी इस साल भी दिख रही है और म्यूचुअल फंड बड़ी मात्रा में इनमें निवेश कर रहे हैं। लेकिन लार्जकैप में फंडों का निवेश अपेक्षाकृत कम है।
यह बात सेबी की परेशानी को और बढ़ा रही है कि लार्जकैप वह श्रेणी है, जिसमें तरलता (लिक्विडिटी) की कोई समस्या नहीं होती है। वहीं स्मॉलकैप और मिडकैप में इसकी परेशानी होती है। लेकिन निवेश है कि इनमें तेजी से बढ़ रहा है। इसी सिलसिले में सेबी ने हाल में 27-28 फरवरी 2024 को देश में म्यूचुअल फंडों की सबसे बड़ी संस्था एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के साथ चर्चा की, अपनी बात रखी और आदेश दिया। लगभग 53 लाख करोड़ रुपये पर पहुँच चुके भारतीय म्यूचुअल फंड उद्योग को आदेश मिला कि 15 मार्च तक वह एक नीति बनाये और बताये कि निवेशकों के हितों की रक्षा वे कैसे करेंगे? वे निवेशकों को न सिर्फ जोखिम के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानकारी दें, बल्कि यह भी बतायें कि अगर कभी उन्हें फंड से बाहर निकलना हो तो उनके पैसे कितने दिनों में उन्हें मिल जायेंगे।
इन हालात में यह सवाल खड़ा होता है कि सेबी के इस आदेश का स्मॉलकैप फंडों पर क्या और कितना असर पड़ेगा। पिछले कुछ सालों में लोगों में बाजार और म्यूचुअल फंडों को लेकर जानकारी बढ़ी है। कोरोना काल में जब देश लॉकडाउन की गिरफ्त में था, लोग घरों में कैद थे, तब बाजार में उन्होंने जम कर निवेश किया। जिन्हें बाजार की जानकारी थी, उन्होंने सीधे-सीधे शेयर खरीदे और जिन्हें जानकारी नहीं थी उन्होंने म्यूचुअल फंडों का सहारा लिया। नतीजतन लोग अब न सिर्फ स्मॉलकैप फंडों को जानने-पहचानने लगे हैं, बल्कि उसमें बड़ा निवेश भी कर रहे हैं। अगर सिर्फ पिछले साल यानी 2023 का ही उदाहरण लें तो स्मॉलकैप 250 इंडेक्स करीब 50% चढ़ा था, जबकि स्मॉलकैप फंडों ने औसतन 41% का लाभ (रिटर्न) दिया था।

म्यूचुअल फंड उद्योग का नजरिया

जानकार कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में स्मॉलकैप फंडों में लोगों का निवेश तेजी से बढ़ा है। ऐसा तब हो रहा है, जब लोग स्मॉलकैप फंडों के जोखिम के बारे में जान रहे हैं। वे यह बात जानते हैं कि इन फंडों में बाजार के उतार-चढ़ाव का सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है। लेकिन इन फंडों से मिलने वाले ज्यादा लाभ और बाजार की तेजी के मद्देनजर लोग इनमें निवेश कर रहे हैं।

जहाँ तक सेबी के आदेश की बात है तो इस उद्योग के जानकारों का मानना है कि इससे उद्योग में पारदर्शिता बढ़ेगी, जिससे निवेशकों का म्यूचुअल फंड उद्योग पर भरोसा और भी बढ़ेगा। यानी निवेश रुकेगा नहीं, बल्कि और बढ़ेगा। जानकार सेबी के आदेश में दो चीजें देखते हैं। पहला यह कि म्यूचुअल फंड कंपनियाँ अपने निवेशकों को स्मॉलकैप फंडों में निवेश के जोखिमों के बारे में पूरी जानकारी दें, जिसके आधार पर वे यह फैसला ले सकें कि उन्हें इनमें निवेश करना है या फिर नहीं। दूसरी चीज यह कि फंड हाउस उनके पोर्टफोलियो में जोखिम की मात्रा को बतायें, मतलब उन्होंने किस तरह के शेयरों में निवेश कर रखा है, क्या वे ज्यादा पीई वाले शेयर हैं या फिर कम पीई वाले। जानकार कहते हैं म्यूचुअल फंड उद्योग सेबी के आदेश को उसी तरह से ले रहा है, जैसे आभूषण विक्रेताओं ने हॉलमार्किंग को लिया है। जैसे हॉलमार्किंग के बाद लोगों का सोने में निवेश बढ़ा है, उसी तरह से बाजार नियामक के इन आदेशों के आधार पर नीति बनने पर म्यूचुअल फंड उद्योग में अधिक पारदर्शिता आयेगी और लोगों का भरोसा भी और बढ़ेगा। (शेयर मंथन, 4 मार्च 2024)