

इसने 65.12 का नया रिकॉर्ड स्तर बनाया है। हालाँकि इन पंक्तियों को लिखते समय तक रुपया थोड़ा सँभला है और अभी डॉलर की कीमत 64.70-64.75 के आसपास दिख रही है। लेकिन इतना साफ है कि अभी रुपये की कमजोरी बेलगाम है और रुपये को सहारा देने के लिए सरकार और आरबीआई की तमाम कोशिशें अपना असर नहीं दिखा पा रही हैं।
अब अटकलें चल रही हैं कि सरकार रुपये को सँभालने के लिए डीजल की कीमतों में कोई बड़ी बढ़ोतरी कर सकती है। हर महीने 50 पैसे प्रति लीटर दाम बढ़ाने का सिलसिला तो पहले से चल ही रहा है। लेकिन मेरी छोटी बुद्धि में यह बात नहीं समा पा रही है कि इससे डॉलर और रुपये के समीकरण पर क्या असर पड़ेगा! क्या पेट्रोल पंप पर लोग डीजल खरीदते समय डॉलर में भुगतान करते हैं? आप पेट्रोल पंप पर खरीदार से 3-4 रुपये प्रति लीटर ज्यादा ले लेंगे तो क्या इससे देश में डॉलर की बरसात हो जायेगी?
यह तर्क जरूर अपनी जगह है कि रुपये की कमजोरी के चलते तेल कंपनियों के लिए डीजल की बिक्री पर घाटा बढ़ा है और उसकी भरपाई जरूरी है। बताया जा रहा है कि डीजल पर यह घाटा अब 11 रुपये प्रति लीटर के पास पहुँच रहा है। अगर डीजल की कीमत बढ़ायी गयी तो इससे सरकार को सब्सिडी का बोझ बढ़ने से रोकने में और अंततः सरकारी घाटा (fiscal deficit) नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी।
लेकिन चालू खाते का घाटा (current account deficit या CAD) कम करने में इससे क्या मदद मिलेगी, यह समझ पाना मेरे लिए मुश्किल है। डॉलर और रुपये की विनिमय दर पर चालू खाते का घाटा बढ़ने का सीधा असर पड़ता है। चालू खाते का घाटा तब बढ़ता है जब देश में बाहर से आने वाले डॉलर की मात्रा देश से बाहर जाने वाले डॉलर की तुलना में कम होती है।
भारत में डीजल की माँग ऐसी लचीली नहीं है कि आपने दाम बढ़ा दिया तो माँग घट जाये। इसलिए तेल के आयात पर आपको डॉलर तो उतने ही खर्च करने पड़ेंगे। इसलिए डीजल की खुदरा कीमत में वृद्धि का डॉलर देश से बाहर जाने पर कोई असर नहीं होने वाला।
अभी रुपये की कमजोरी के संदर्भ में सरकार केवल लक्षणों का इलाज करने का प्रयास कर रही है, सीधे बीमारी की जड़ पर प्रहार नहीं कर रही है। बाजार इसकी उम्मीद भी नहीं कर रहा, क्योंकि वह मान चुका है कि इस सरकार के पास ऐसे उपायों के लिए न तो इच्छा शक्ति बची है और न ही पर्याप्त समय। लेकिन यह इस समय बाजार की धारणा है। सरकार चाहे तो इस धारणा को बदल सकती है। अगर इस सरकार के पास ज्यादा समय नहीं भी बचा है तो क्या हुआ? अगली कोई सरकार तो बनेगी ही ना, चाहे वह किसी की भी हो! Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 22 अगस्त 2013)
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