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महँगाई के खिलाफ मोदी सरकार के कदमों पर बाजार की नजर

राजीव रंजन झा : कल भारतीय शेयर बाजार ने अंतिम घंटे में जबरदस्त छलाँग लगायी और बीते दो दिनों में आयी कमजोरी को झटक कर नये जोश में नजर आया। कल मैंने राग बाजारी में लिखा था कि सेंसेक्स (Sensex) 25,060 के नीचे जाने पर बाजार में बिकवाली का दबाव बढ़ेगा और निफ्टी (Nifty) में यह स्तर 7,485 का है।

कल का निचला स्तर सेंसेक्स के लिए 25,104 और निफ्टी के लिए 7,509 का रहा, यानी नये सिरे से बिकवाली का दबाव बढ़ने के लिए जिन स्तरों का टूटना जरूरी था, उन्हें बाजार ने बचा लिया।

साथ ही मैंने लिखा था कि सेंसेक्स 25,255 के ऊपर निकले तो 25,365 की ओर बढ़ने की स्थिति बनेगी। लेकिन सेंसेक्स ने इससे भी और आगे 25,546 तक की छलाँग लगा ली। इस तरह मैंने लिखा था कि निफ्टी 7,550 के ऊपर जाने पर 7,580-7,590 तक चढ़ने की उम्मीद रहेगी। पर निफ्टी इससे भी आगे 7638 तक चला गया।

अब सामने फिर से नजर जा रही है पिछले हफ्ते बुधवार 11 जून को बने रिकॉर्ड स्तरों पर, जो सेंसेक्स के लिए 25,736 और निफ्टी के लिए 7,700 पर हैं। इसके पार होने पर सेंसेक्स के लिए 26,000 की ओर बढ़ना बड़ा स्वाभाविक होगा। इसके आगे जाने पर 26,650 और फिर 27,250 तक जाने की गुंजाइश बनेगी। निफ्टी के लिए 7,700 के ऊपर जाने पर 7,800, फिर लगभग 8,000 और उसके आगे 8,150 के लक्ष्य नजर आते हैं। लेकिन बुधवार के कारोबार के नजरिये से अगर निफ्टी 7,615 के नीचे जाने लगे तो सावधान हो जाना बेहतर होगा। इसके नीचे जाने पर वापस 7,570 तक फिसलने की गुंजाइश खुल जायेगी।

इस बीच कल भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने इराक संकट का भारत पर असर नहीं होने की जो बात कही, वह वास्तविकता को बताने वाला बयान कम और बाजार को भरोसा बँधाने वाला बयान ज्यादा है। यदि इराक संकट के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें इन स्तरों से और ज्यादा उछलीं तो भारत पर उस संकट का सीधा असर होगा ही। साथ ही अगर इराक से तेल आपूर्ति बाधित हुई तो वैश्विक बाजार की तुलना में भारत पर इसका ज्यादा असर होगा, क्योंकि भारत तेल खरीदने के लिए इराक पर ज्यादा निर्भर है।

इराक का संकट गहराने पर भारत के लिए दोहरी समस्या पेश आयेगी। एक तरफ इससे रुपये में फिर कमजोरी आने लगेगी और दूसरी तरफ तेल मार्केटिंग कंपनियों को मजबूरन पेट्रोल-डीजल के दाम ज्यादा बढ़ाने पड़ेंगे, जिससे महँगाई बढ़ेगी। मई में थोक महँगाई बढ़ने से पहले ही बाजार में कुछ चिंता है।

लेकिन अगर इराक में स्थिति नियंत्रण में बनी रही तो इससे भारत को राहत मिलेगी। कल के कारोबार की खास बात यही थी कि एक साथ शेयर बाजार में भी उछाल आयी और डॉलर की तुलना में रुपया भी वापस मजबूत होता नजर आया। इसलिए फिलहाल शेयर बाजार की दिशा को समझने के एक प्रमुख संकेतक के तौर पर डॉलर की तुलना में रुपये की चाल पर भी नजर रखें।

कल सरकार ने महँगाई पर नियंत्रण पाने के जिन उपायों की घोषणा की है, उनसे भी बाजार को सांत्वना मिलेगी। मई में थोक महँगाई दर 5.2% से बढ़ कर 6% हो जाने बाजार में एक चिंता पैदा हुई है। हालाँकि बाजार अब भी देखना चाहेगा कि जून के आँकड़े किस तरह के आते हैं। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि केवल एक महीने में ऊँची महँगाई दर आने से ज्यादा आतंकित होने की जरूरत नहीं है। साथ ही, मोदी सरकार के कामकाज के लिहाज से जून का महीना ही वास्तव में पहला पूरा महीना होगा। मई में तो मोदी सरकार ने बिल्कुल अंतिम हफ्ते में कामकाज सँभाला था।

कल वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार के कदमों की घोषणा करते हुए बताया कि राज्यों को जमाखोरी रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की सलाह दी गयी है। साथ ही उन्हें फल-सब्जियों को एपीएमसी की सूची से हटाने की भी सलाह दी गयी है। लेकिन इन बातों को लेकर लगभग सारा दारोमदार राज्य सरकारों पर है। खुद केंद्र सरकार जिन तरीकों से कीमतों को प्रभावित कर सकती है और बाजार में पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर सकती है, वह है आयात और निर्यात से संबंधित नीतियों में जरूरी बदलाव। इसके लिए आलू और प्याज जैसी चीजों पर न्यूनतम निर्यात मूल्य तय करके एक तरह से निर्यात को बाधित करने का निर्णय लिया गया है। दूसरी तरफ बाजार में चावल की आपूर्ति बढ़ाने का फैसला किया गया है। दालों की कमी महूसस होने पर राज्य सरकारों को तुरंत दाल आयात करने की सहूलियत दी गयी है।

इन फैसलों का बाजार पर कितना असर दिखता है, यह अगले कुछ दिनों में पता चलेगा। लेकिन आम तौर पर सरकार के कदमों से भी ज्यादा असर सरकार के तेवर का दिखता है। अगर केंद्र सरकार ने महँगाई को रोकने का वास्तविक संकल्प दिखाया तो उसे राज्य सरकारों का सहयोग भी मिल जायेगा और जमाखोरों में डर बैठेगा। मानसून कमजोर रहने की खबरों के चलते वैसे भी मनोवैज्ञानिक तौर पर बाजार में कीमतों का बढ़ना स्वाभाविक है। लेकिन अगर केंद्र सरकार ने स्पष्ट संकेत दिये और उसके कदमों से भी यह स्पष्ट दिखा कि वह महँगाई को नहीं बढ़ने देने के लिए कृत-संकल्प है, तो कीमतों में आयी मनोवैज्ञानिक वृद्धि अपने-आप घट जायेगी, जिससे कीमतें सामान्य स्तरों पर लौट आयेंगी। इस मोर्चे पर अगले कुछ हफ्ते और महीने मोदी सरकार के लिए परीक्षा के महीने होंगे। इस परीक्षा के नतीजों पर शेयर बाजार की भी पैनी नजर रहेगी। Rajeev Ranjan Jha

(शेयर मंथन, 18 जून 2014)

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