मिलिये बोर्ड के आज्ञाकारी कृपापात्र सदस्यों से

राजीव रंजन झा

सत्यम की जिस बोर्ड बैठक में मेटास प्रॉपर्टीज और मेटास इन्फ्रा के अधिग्रहणों का फैसला किया गया, उस बैठक की अध्यक्षता किसने की थी? आपको जान कर शायद ताज्जुब होगा, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के डीन मेंडु राममोहन राव ने। इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस जैसे प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान का डीन होने के नाते उन्हें ऐसी शख्सितय माना जा सकता है, जिनसे भारतीय उद्योग जगत के दिग्गज कॉर्पोरेट प्रशासन के नैतिक मानदंडों का पाठ पढ़ें। अच्छा पाठ पढ़ाया है उन्होंने!

बिल्कुल यही बात कही जा सकती है प्रोफेसर कृष्ण जी पालेपु के बारे में, जो हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में बिजनेस ऐडमिनिस्ट्रेशन के प्रोफेसर हैं। उन्होंने “बिजनेस एनालिसिस ऐंड वैल्यूएशन” नाम से एक किताब भी लिखी है। लगता है कि मेटास के मूल्यांकन को समझने में उन्होंने सत्यम के निदेशक बोर्ड की अच्छी मदद की होगी!
विनोद धाम के बारे में आपने पहले काफी सुना होगा। इन्हें कंप्यूटर की दुनिया को बदल डालने वाले पेंटियम चिप्स के पिता कहा जाता है। जिस बोर्ड बैठक ने मेटास सौदों को मंजूरी दी, उसमें धाम साहब भी शामिल थे। एक और नाम देखिये – टी आर प्रसाद। ये भारत के कैबिनेट सचिव रह चुके हैं। कंपनी के एक और स्वतंत्र निदेशक वी एस राजू आईआईटी, दिल्ली के निदेशक रह चुके हैं। इन बड़े और प्रतिष्ठित नामों वाले बोर्ड ने एक ऐसे फैसले को सर्वसम्मति से मंजूर किया, जिसे देखते ही सारा शेयर बाजार हतप्रभ रह गया। एक ऐसा फैसला, जिसके बारे में कंपनी के बड़े संस्थागत निवेशकों में से एक टेम्प्लेटन को कहना पड़ा कि वह इसे रोकने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है। एक ऐसा फैसला, जिसके रद्द होने के बावजूद तमाम ब्रोकिंग फर्मों ने सत्यम को अपने पसंदीदा शेयरों की सूची से निकाल बाहर कर इसे बेचने की सलाह दे डाली।
यह प्रसंग भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन के बड़े गंभीर सवाल खड़े करता है, साफ तौर पर दिखाता है कि बड़े प्रतिष्ठित नामों को स्वतंत्र निदेशकों के रूप में बोर्ड में शामिल करने के बावजूद वास्तव में कंपनियों के बोर्ड अपनी वह स्वतंत्र भूमिका नहीं निभाते, जिसकी उनसे उम्मीद होती है। एक ऐसी कंपनी का बोर्ड भी वह स्वतंत्र भूमिका नहीं निभा पाता, जिसमें प्रमोटरों की हिस्सेदारी महज 8.6% हो। ऐसे आज्ञाकारी कृपापात्र बोर्ड सदस्यों का क्या फायदा, चाहे उनका अपना आभामंडल कितना भी बड़ा हो! इन नामों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, और जो नहीं समझ पाये, उन्हें जाना होगा।