विद्युत पारेषण और वितरण को मिलेगी विशेष तवज्जो

राजेश रपरिया :

विद्युत पारेषण (Transmission) और वितरण (Distribution) की भारी अड़चनों को दूर करने के लिए आगामी बजट में भरपूर वजन मिलने के प्रबल आसार हैं।

आगामी तीन सालों में राज्यों को पारेषण और वितरण को अधिक सक्षम बनाने के लिए एक लाख एक हजार करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव है। 2015-16 के बजट में इस मद में 35,000 करोड़ रुपये के प्रावधान की तैयारी है, क्योंकि मोदी सरकार अरसे से लंबित पारेषण की 35,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को हरी झंडी दिखा चुकी है। उत्तर भारत के आठ राज्यों में नयी पारेषण तारें बिछाने के लिए 10,000 करोड़ रुपये मुहैया कराने की चर्चा विद्युत मंत्रालय में है। दिल्ली में विद्युत के ढाँचे को सुधारने के लिए 7,700 करोड़ रुपये आंवटित करने की सरकारी मंशा सामने आ रही है। दरअसल मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बिजली की बहुलता है, मगर पारेषण तारों की दिक्कत के कारण वहाँ की अतिरिक्त बिजली को तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे बिजली की कमी वाले राज्यों में भेजने में भारी दिक्कत आ रही है। विद्युत पारेषण में अभी निजी क्षेत्र की भागीदारी महज 5% है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि पीपीपी मॉडल (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) अपने उद्देश्यों को पूरा करने में अनेक व्यावहारिक कारणों से विफल रहा है। अधिक पारदर्शी कार्यप्रणाली और सुशासन के दम पर वित्त मंत्री जेटली को पूरी उम्मीद है कि वे इस मॉडल को कारगर बनाने में सफल रहेंगे।

इसके अलावा अक्षय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने 10 लाख करोड़ रुपये भी महत्वाकांक्षी परियोजना बनायी है। इसके तहत साल 2022 तक एक लाख मेगावाट के सौर ऊर्जा और 60,000 मेगावाट के पवन ऊर्जा संयंत्र लगाने का लक्ष्य रखा गया है। केंद्र में मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होते ही विद्युत उद्योग में नये उत्साह और विश्वास का संचार हुआ है। जेपी मॉर्गन की भारत प्रमुख कल्पना मोरपारिया का कहना है कि विद्युत क्षेत्र में गतिविधियाँ काफी तेजी से बढ़ी हैं। कंपनियों का विश्वास बढ़ा है कि वे अब बाजार से फंड उगाहने में समर्थ हैं। विद्युत विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी सरकार इस क्षेत्र के लिए तेजी से निर्णय ले रही है। भारतीय रिजर्व बैंक का रुख भी उत्साहवर्धक है। दुनिया भर में ईंधन और जिंसों (कमोडिटी) के दामों में  भारी गिरावट आयी है। विद्युत कंपनियों को पूरी उम्मीद है कि मोदी सरकार की (मेक इन इंडिया) मुहिम से आने वाले सालों में बिजली खपत तेजी से बढ़ेगी।

विद्युत विशेषज्ञों का साफ कहना है कि जयराम रमेश के पर्यावरण कानूनों से कोयला उत्पादन और आपूर्ति की स्थिति भयावह हो गयी थी। पर अब मोदी सरकार ने पर्यावरण के अनेक अड़ंगों को दूर कर दिया है। मोदी राज में एक और महत्वपूर्ण अंतर आया है। पहले कोयला और विद्युत विभागों में छत्तीस का आँकड़ा रहता था, जो मोदी सरकार में खत्म हो गया है। ये दोनों विभाग अब पीयूष गोयल के पास हैं। सुरेश प्रभु के रेल मंत्री बनने के बाद विद्युत क्षेत्र का आत्मविश्वास काफी बढ़ा है कि रेल के कारण विद्युत संयंत्रों को कोयला आपूर्ति की रुकावटों में काफी कमी आयेगी। सुरेश प्रभु तीन नयी रेल लाइन परियोजनाओं को शुरू करने के लिए कटिबद्ध हैं, जिनसे कोल इंडिया की कोयला यातायात की क्षमता और विश्वसनीयता में भारी इजाफा होगा। समय पर पर्याप्त कोयला आपूर्ति न होने से विद्युत उत्पादन स्थपित क्षमता से काफी कम हो रहा था।

विद्युत क्षेत्र के बढ़े आत्मविश्वास का सीधा असर विद्युत कंपनियों पर पड़ा है। भारी कर्ज के बोझ से दबी अनेक विद्युत कंपनियों को अपने संयंत्र बेचने के लिए अब आसानी से खरीदार मिल रहे हैं। वित्तीय साल 2014-15 की दूसरी छिमाही से 38,000 करोड़ रुपये के विद्युत संयंत्र बेचने के सौदे हुए हैं, जिनमें अडानी पावर, टाटा पावर और जेएसडब्ल्यू पावर जैसी दिग्गज कंपनियाँ शामिल हैं। उद्योग सूत्रों के अनुसार अभी ऐसे अनेक सौदे होने बाकी हैं। हो सकता है कि आने वाले दिनों में सरकारी कंपनी एनटीपीसी एक बड़े खरीदार के रूप में उभरे।

नहीं होने देंगे फंड की कमी : जेटली

चेन्नई में सोमवार 19 जनवरी को सीआईआई के एक कार्यक्रम में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भरोसा दिलाया है कि भारतीय कॉर्पोरेट जगत को भय है कि राजकोषीय प्रबंधन को नियंत्रित करने के कारण विकास की गति को बढ़ाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाने में फंड का पर्याप्त बंदोबस्त नहीं कर पायेगी। श्री जेटली ने कहा कि व्यय आयोग के अनेक सुझावों को बजट में तरजीह मिलेगी। तेल और उर्वरक सब्सिडी अधिक तर्कसंगत बनाने का सुझाव व्यय आयोग ने दिया है। इससे सरकारी घाटे का बोझ हल्का होगा। उर्वरक उद्योग का विश्वास है कि केंद्र सरकार यूरिया को विनियंत्रित करने का पक्का मन बना चुकी है। वित्त मंत्री ने साफ कहा कि निवेश के लिए सरकारी फंड की कमी नहीं होने देंगे। (शेयर मंथन, 21 जनवरी 2015)