एमएमडीआर (MMDR) संशोधन विधेयक पर संसद की मुहर

संसद ने आज खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) (संशोधन) विधेयक पारित कर दिया।

इस विधेयक का उद्देश्य एमएमडीआर अधिनियम, 1957 के कुछ प्रावधानों को समाप्त करना है। सरकार के मुताबिक खनन उद्योग में उभरती समस्याओं के मद्देनजर ऐसा करना जरूरी हो गया था। पिछले कुछ वर्ष में देश में दिये गये नयी खानों के पट्टे विवाद में फँस गये थे। इसके अतिरिक्त दूसरी बार और उसके बाद नवीकरण से भी उच्चतम न्यायालय के कुछ निर्णय प्रभावित हो रहे थे। फलस्वरूप, खनन क्षेत्र में उत्पादन बहुत घट गया था, जिससे उन खनिजों का उपयोग करने वाले आयात करने लगे थे।

संशोधित विधेयक के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं :

विवेकाधीन अधिकारों की समाप्ति : आवंटन की एकमात्र विधि अब नीलामी होगी। संशोधन के तहत खनिज रियायतों की अनुमति में विवेकाधीन अधिकार समाप्त कर दिये गये हैं। सभी तरह की खनिज रियायतों की अनुमति संबंधित राज्य सरकारें देती हैं। वे अनुमति देती रहेंगी, लेकिन सभी तरह की खनिज रियायतों की अनुमति नीलामी के जरिए ही दी जायेगी।

खनिज क्षेत्र को प्रोत्साहन : दूसरे और उसके बाद नवीकरण के लिए लंबित आवेदनों के कारण खनन उद्योग में कामकाज निरंतर प्रभावित हो रहा है। सरकार का कहना है कि इसके कारण बड़ी संख्या में खानें बंद हो गयी हैं। संशोधन के तहत इन समस्याओं को दूर कर दिया गया है।

प्रभावित व्यक्तियों के लिए सुरक्षा उपाय : विधेयक में उन सभी जिलों में जिला खनिज प्रतिष्ठान (डीएमएफ) स्थापित करना अनिवार्य बनाया गया है, जहाँ खनन किया जाता है। यह लंबे समय से चली आ रही शिकायतों के समाधान के लिए किया गया है।

अन्वेषण एवं निवेश को प्रोत्साहन : भारतीय खनन उद्योग में अन्य देशों की तरह अन्वेषण कार्य नहीं हो रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए राष्ट्रीय अन्वेषण न्यास की स्थापना की जायेगी। इससे अन्वेषण गतिविधियों के लिए सरकार के पास समर्पित निधि उपलब्ध हो सकेगी।

प्रक्रियाओं को सरल बनाना और देरी से बचना : संशोधन के तहत केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। इसलिए राज्य सरकारों को खनिज रियायतों की अनुमति देने की प्रक्रिया सरल होगी और उसमें तेजी लायी जा सकेगी।

अवैध खनन को रोकने के लिए सख्त प्रावधान : कानून के तहत अब अधिकतम 5 वर्ष की जेल या 5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर जुर्माना लगाया जा सकेगा। राज्य सरकारों को अवैध खनन के मुकदमों के तेजी से निपटारे के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने के अधिकार दिये गये हैं।

(शेयर मंथन, 20 मार्च 2015)