"...तो अनिल अंबानी को बनाना होगा रिलायंस इंडस्ट्रीज का वाइस चेयरमैन"

Anil Ambaniसर्वोच्च न्यायालय में रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) और रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेज (आरएनआरएल) के बीच चल रहे मुकदमे में वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने तर्कों के कई नये तीर चलाये।

अनिल अंबानी खेमे की ओर से पैरवी कर रहे जेठमलानी ने दावा किया कि अगर पारिवारिक समझौते पर पूरा अमल नहीं हुआ तो अनिल अंबानी को फिर से रिलायंस इंडस्ट्रीज का वाइस चेयरमैन बनाना होगा। उनका कहना है कि कंपनी अधिनियम की धारा 392 के तहत अगर रिलायंस के अलगाव (डीमर्जर) की योजना पर पूरी तरह अमल नहीं किया गया तो रिलायंस इंडस्ट्रीज को वाइंड अप करना होगा, यानी एक कंपनी के रूप में इसका अस्तित्व ही खत्म करना होगा। ऐसा करना इसके लाखों शेयरधारकों के हित में नहीं होगा, इसलिए दूसरा विकल्प यह होगा कि अनिल अंबानी को रिलायंस इंडस्ट्रीज के बोर्ड में फिर से बहाल कर उन्हें 27 जुलाई 2004 को पारित प्रस्ताव से पहले वाली सारी शक्तियाँ लौटायी जायें।

जेठमलानी का तर्क है कि विलगाव योजना (डीमर्जर स्कीम) को उचित तरीके से लागू किया जा रहा है या नहीं, इसका निरीक्षण करना न्यायालय के अधिकार-क्षेत्र में है। न्यायालय इस योजना को उचित तरीके से लागू करने में आ रही बाधाओं, खास कर बेइमानी भरे व्यवहार के चलते आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठा सकता है।

इस मुकदमे में पहले चली सुनवाई और जिरह के दौरान मुकेश अंबानी खेमा यह दिखाने की कोशिश करता रहा है कि अंबानी परिवार का आपसी समझौता मानने के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज बाध्य नहीं है। मुकेश अंबानी खेमे की ओर से दिये गये तर्कों में इस मुकदमे के लिए पारिवारिक समझौते को महत्वहीन बताने की भी कोशिश की जाती रही है।

इसके जवाब में राम जेठमलानी ने आज अपने तर्कों में मुकेश अंबानी को रिलायंस इंडस्ट्रीज का एक तरह से पर्याय (अल्टर इगो) बता डाला। जेठमलानी ने कहा कि मुकेश अंबानी ही रिलायंस इंडस्ट्रीज का मन और उसकी इच्छा हैं। अपने इस तर्क को मजबूत बनाने के लिए जेठमलानी ने जिक्र किया कि मुकेश अंबानी के पास रिलायंस इंडस्ट्रीज को नियंत्रित करने लायक हिस्सेदारी है। साथ ही मुकेश इसके प्रमोटर निदेशक और आजीवन निदेशक हैं। उन्हें कंपनी के निदेशक बोर्ड में रहने के लिए शेयरधारकों से प्रस्ताव पारित कराने की जरूरत नहीं है। वह कंपनी के प्रबंध निदेशक और चेयरमैन हैं। साथ ही, 27 जुलाई 2004 को कंपनी के निदेशक बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित कर मुकेश अंबानी को सभी तरह की शक्तियाँ सौंप दी थी।

इसके आधार पर जेठमलानी ने तर्क दिया कि मुकेश अंबानी ने जो समझौता किया, रिलायंस इंडस्ट्रीज भी उस समझौते से बंधी है। जेठमलानी ने यह भी कहा कि 27 जुलाई 2004 को बोर्ड की ओर से पारित प्रस्ताव ही अनिल अंबानी के गुस्से और उनकी अवमानना का मूल कारण है। (शेयर मंथन, 25 नवंबर 2009)