सस्ता तेल : बढ़िया है!

राजीव रंजन झा

आखिरकार केंद्र सरकार ने पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस (एलपीजी) के दाम सस्ते करने का फैसला कर ही लिया। आपके घर पर जब रसोई गैस का अगला सिलिंडर आयेगा तो आपको 25 रुपये कम देने होंगे। जब आप अगली बार पेट्रोल पंप जायेंगे तो वहाँ भी आपकी जेब कुछ कम हल्की होगी – पेट्रोल के लिए 5 रुपये और डीजल के लिए 2 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से।

यह खबर आज हर अखबार में छपी है। लेकिन क्या आपने इस बात पर गौर किया कि यह फैसला किस बैठक में लिया गया। नाम पढ़ कर आप एक बार मुस्कुरायेंगे जरूर – कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स यानी राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति! अभी दो दिन पहले ही खुद सोनिया गाँधी ने एक बयान देकर पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटने का संकेत दिया था। यानी जब सरकार ने अपना मन लगभग बना लिया कि कीमतों में कटौती कितनी करनी है, तो पहले एक राजनीतिक बयान दिया गया और उसके बाद सरकार के उस हिस्से ने औपचारिक निर्णय लिया जिसे राजनीतिक मामले देखने होते हैं। कुल मिलाकर एक अच्छा फैसला ढेर सारे अनसुलझे सवालों के साथ आया।
कीमतों में इस कटौती का राजनीतिक गुणा-भाग जो भी हो, और भले ही यह दिखता हो कि कच्चे तेल के अर्थशास्त्र के बदले आने वाले चुनावों से इसका ज्यादा लेना-देना है, लेकिन फिर भी यह कदम अर्थव्यवस्था को राहत देगा। मगर जो सवाल अनसुलझे हैं, उनका संबंध देश में पूरे तेल-गैस क्षेत्र के ताने-बाने से है। यह अच्छा ही रहा कि सरकार ने फिलहाल पेट्रोल-डीजल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने का नाटक नहीं किया। इस समय ऐसा कोई फैसला नाटक से ज्यादा कुछ नहीं होता, क्योंकि माना यही जाता कि जब सरकार को सुविधा होती है तो तेल कंपनियों को आजादी दे दी जाती है और जब स्थिति नाजुक होती है तो यह आजादी छीन ली जाती है। पहले भी ऐसा हो चुका है।
लेकिन देर-सबेर तेल कंपनियों को कीमतें तय करने के मामले में आजादी देना ही एक उचित विकल्प होगा। और अगर यह छूट केवल पेट्रोल-डीजल के मामले में दी जाती है, तो यह भी आधा-अधूरा इलाज होगा, जिससे अलग समस्याएँ पैदा होंगीं। कीमतें तय करने की आजादी, सब्सिडी के उलझे तार, बेहद ज्यादा करों का बोझ (क्योंकि यह केंद्र और राज्य सरकारों की आमदनी का काफी बड़ा स्रोत है) – जब तक इन सारे मुद्दों को एक साथ नहीं सुलझाया जाता, तब तक तेल-गैस क्षेत्र सरकारी थाली का बैंगन बना रहेगा। और जब तक यह स्थिति रहती है, तब तक इस क्षेत्र में निवेश जोखिम भरा ही होगा।