2100-3500 के बीचो-बीच

राजीव रंजन झा

अहमदाबाद के एक मित्र से बात हो रही थी। बाजार की कमजोरी का जिक्र करते-करते उसने कुछ दिलचस्प लक्ष्य बताये – सेंसेक्स 5150, रिलायंस 580, ओएनजीसी 450, भारतीय स्टेट बैंक 670... कल किसी टीवी कार्यक्रम में एक तकनीकी विश्लेषक को कहते सुना कि अगर बाजार यहाँ से और कमजोर हो गया तो इस बार मामला 7,700 पर नहीं रुकेगा, बाजार उससे काफी नीचे जायेगा। कितना नीचे? क्या उतना नीचे, जितना बाजार की चर्चाओं में बताया जा रहा है? एक विश्लेषक को कल ही कहते सुना कि बाजार के मूल्यांकन में यहाँ से और 25% कमी की गुंजाइश है। यहाँ से 25% नीचे का मतलब है सेंसेक्स लगभग 7000 पर या उसके कुछ और नीचे, और निफ्टी की बात करें तो 2100 के आसपास।

ये चर्चाएँ एक आम निवेशक को डराती हैं। खास कर ऐसे माहौल में जब तमाम नकारात्मक खबरें सामने आ रही हों, जब अर्थव्यवस्था की कमजोरी के तमाम संकेत उभरने लगे हों। और अब यह डर केवल शेयर बाजार में उसके निवेश तक सीमित नहीं रह गया है। आर्थिक धीमेपन का अहसास उसे अपने आसपास भी एक हद तक होने लगा है। अगर वह किसी कारोबार में है तो शायद उसे दिखने लगा होगा कि उसके अपने ग्राहक किसी नये खर्च से हिचक रहे हैं। अगर वह नौकरीपेशा है तो अपने आसपास ही छँटनी के कई किस्सों ने उसे डरा रखा होगा। अमेरिका एक बड़ी मुसीबत में फँसा है, यह बात अब केवल गुलाबी अखबारों की सुर्खियों तक सीमित नहीं है आम लोगों की चर्चाओं का भी हिस्सा बन गया है। लेकिन उसके साथ ही लोग यह भी कह देते हैं कि हमारे यहाँ तो उतनी दिक्कत नहीं है!
बेशक बाजार में डराने वाली काफी बातें हैं, लेकिन इस समय बाजार डर और उम्मीद के दोराहे पर है। जितना डर निफ्टी के 2,100 पर फिसलने का है, उतनी ही उम्मीदें अभी चंद दिनों पहले ही इसके 3,500 पर जाने की भी थीं। और बीते दो हफ्तों में भारत की अर्थव्यवस्था में बुनियादी रूप से कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। अभी हम 2,100 और 3,500 के इन दोनों छोरों के ठीक बीच में हैं।
इस माहौल में एक निवेशक को पहले से ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। लेकिन सावधानी का मतलब चुपचाप बैठे रहना या बाजार से अलग रहना नहीं होता। सावधानी का मतलब होता है अपने निवेश से पहले ज्यादा खोजबीन करना, एक सीमा से ज्यादा जोखिम नहीं उठाना और अपनी उम्मीदों को सीमित रखना।