डॉलर में कमजोरी के बावजूद रुपया खस्ताहाल, इन कारणों से नहीं संभल पा रही भारतीय मुद्रा

डॉलर इंडेक्स भले ही 4 महीनों के निचले स्तरों पर पहुँच गया हो और अमेरिकी मुद्रा की ये गिरावट कई कमोडिटी को सहारा दे रही हैं, कई बाजारों में जोश भरने का काम कर रही हो लेकिन इससे रुपये की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। 10 मार्च 2025 को डॉलर के मुकाबले रुपया अपने सबसे निचले स्तरों तक फिसल गया। 

रुपये में रिकॉर्ड गिरावट

10 मार्च को डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट देखने को मिली और ये 38 पैसे गिरकर रिकॉर्ड 87.33 के स्तर पर जा पहुँचा। डॉलर के मुकाबले रुपये में मार्च में ये एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है। ये गिरावट तब आई है जब 7 मार्च को डॉलर के मुकाबले रुपया 17 पैसे मजबूत होकर 86.95 पर बंद हुआ था। 

क्या कहते हैं जानकार?

जानकारों की मानें तो रुपये में इस गिरावट की दो मुख्य वजहें हैं। पहली, विदेशी निवेशक लगातार भारतीय शेयर बाजार में शेयरों की बिकवाली कर रहे हैं जिससे रुपय पर दबाव बना हुआ है। 7 मार्च को जब रुपया मजबूती के साथ बंद हुआ था तब शेयर बाजार भी हरे निशान में बंद हुए थे। भारतीय मुद्रा में कमजोरी की दूसरी वजह भूराजनीतिक अनिश्चितता है। बाजार अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों को लेकर कोई कयास नहीं लगा पा रहा है, जिसका भी असर रुपये की कमजोरी के रूप में दिखाई दे रहा है।

रुपये की कमजोरी से महँगा होगा आयात 

रुपये में कमजोरी का सबसे ज्यादा नकारात्मक असर आयात पर पड़ता है और ये महँगा हो जाता है। इसके अलावा विदेश घूमना या विदेश में बच्चों की पढ़ाई भी महँगी हो जाती है, क्योंकि रुपये की गिरावट पर एक डॉलर के मुकाबले ज्यादा रुपये चुकाने पड़ते हैं।

हम कच्चा तेल, सोना जैसी चीजाें का आयात करते हैं। इनका ज्यादातर भुगतान अमेरिकी डॉलर में किया जाता है, जिसका असर इनसे प्रभावित चीजों पर होता है और वे महँगी हो जाती हैं। इसका असर महँगाई पर पड़ना तय है, वो भी बढ़ जायेगी।

रुपये की कमजोरी किसके लिए अच्छी?

रुपये की कमजोरी का सबसे ज्यादा फायदा आईटी और निर्यात दो उद्योगों को मिलता है, जहाँ हम दूसरे देशों को सेवा या उत्पाद बेच रहे होते हैं। तब हम भुगतान लेते हैं और वो डॉलर में होता है।

करेंसी रेट्स कैसे तय होते हैं?

हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है। इसके घटने या बढ़ने का असर मुद्रा की कीमत पर दिखता है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपये की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटेगा तो रुपया कमजोर होगा, बढ़ेगा तो रुपया मजबूत होगा।

(शेयर मंथन, 11 मार्च 2025)

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