चीन ने रेयर अर्थ मिनरल पर लगाया प्रतिबंध, खस्‍ताहाल इंडस्‍ट्री के लिए सरकार उठायेगी ये कदम

चीन के रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले ने वैश्‍व‍िक बाजार में हलचल मचा दी है। ये कदम न केवल एक आर्थिक झटका है, बल्कि ये वैश्‍विक बाजार आपूर्ति श्रंखला पर चीन की पकड़ को एक बार फिर सामने लाता है।

खासकर इलेक्ट्रिक गाड़ियों की इंडस्ट्री जो इन मिनरल्स पर बहुत ज्यादा निर्भर है। हाल ये है कि कई फैक्ट्रियों के बंद होने तक की नौबत आ गयी है। उनका कहना है कि अगर चीन ने प्रतिबंध नहीं हटाया तो उनकी फैक्ट्रियों पर ताला लटक सकता है।

क्यों जरूरी हैं रेयर मिनरल्स?

रेयर अर्थ मिनरल्स का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों, विंड टर्बाइनों, मोबाइल फोन, सैन्य हथियारों और ग्रीन टेक्नोलॉजी में होता है। इनका सबसे कीमती इस्तेमाल मैग्नेट्स में होता है जो इलेक्ट्रिक मोटर्स का मूल आधार होते हैं। चीन दुनिया के 70% रेयर मिनरल्स की माइनिंग और लगभग 90% रिफाइन प्रोडक्ट्स को बनाता है। मैग्नेट्स के मामले में ये आँकड़ा लगभग 90% है।

दुर्लभ, कितना सच?

‘रेयर’ शब्द से भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। ये तत्व धरती की सतह में पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। जैसे सेरियम तांबे से भी अधिक पाया जाता है। असली समस्या इन्हें आर्थिक रूप से सही मात्रा में खोजने और एक-दूसरे से अलग करने में होती है क्योंकि ये तत्व समूहों में पाए जाते हैं और इनकी रिफाइनिंग काफी कठिन होती है।

चीन की पकड़ कैसे बनी?

1980 और 1990 के दशक में चीन ने जानबूझकर इस क्षेत्र को रणनीतिक रूप से विकसित किया। सरकार ने सब्सिडी, सस्ते कर्ज और पर्यावरण के लचर नियमों के जरिये देश को सबसे सस्ता उत्पादक बना दिया। वहीं, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में पर्यावरणीय और आर्थिक कारणों से माइनिंग प्लांट बंद होने लगे। अमेरिका की माउंटेन पास खान, जो एक समय सबसे बड़ी उत्‍पादक थी, 2002 में बंद हो गई। चीन ने केवल माइनिंग ही नहीं, बल्कि रिफिइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग की वैल्यू चेन पर भी कंट्रोल कर लिया और ये ही उसकी असली आर्थिक और रणनीतिक ताकत है।

ये दाँव उल्टा भी पड़ सकता है

चीन के लिए ये रणनीति थोड़े समय के लिए फायदा तो दे सकती है, लेकिन लंबी अवधि में ये उसी के खिलाफ जा सकती है। इसका मुख्य कारण ये है कि कई देशों के पास इन धातुओं के भंडार भी हैं और उन्हें रिफाइन करने की तकनीकी क्षमता भी। अब जब चीन ने इन्हें 'आर्थिक हथियार' की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, तो अन्य देश तेजी से अपने विकल्प तलाशने में जुट गए हैं।

अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देश घरेलू उत्पादन और रिफाइनिंग की दिशा में निवेश कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया ने उत्पादन बढ़ा दिया है और अमेरिका ने आरईई को "क्रिटिकल मिनरल्स" घोषित कर इन्हें घरेलू स्तर पर विकसित करने के लिए फंडिंग शुरू कर दी है।

भारत की रणनीतिक पहल

भारत भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। सरकार ने खनिज और माइनिंग अधिनियम में बदलाव की प्रक्रिया तेज कर दिया है। वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल में जर्मनी में कहा कि भारत वैकल्पिक स्रोतों और तकनीकों पर काम कर रहा है ताकि उसे आरईई आधारित मैग्नेट्स का विकल्प मिल सके।

इसके अलावा, भारत और मध्य एशिया के पाँच देशों ने हाल ही में संयुक्त रूप से इन खनिजों की खोज और उत्पादन में सहयोग की दिलचस्प भी दिखाई है। छोटे स्तर पर भारत में ही स्थायी मैग्नेट्स के कॉमर्शियल प्रोड्कशन की तैयारी भी अंतिम चरण में है।

इनोवेशन और वैकल्पिक तकनीकें

चीन की इस चाल ने वैश्‍विक बाजार नवाचार को भी तेज कर दिया है। कई कंपनियाँ अब आरईई-रहित तकनीकों में निवेश कर रही हैं, जैसे फेराइट मैग्नेट्स और नए प्रकार के मोटर्स जो रेयर मिनिरल्स पर निर्भर नहीं होते। लंबी अवधि में ये पहल चीन की रणनीतिक पकड़ को कमजोर कर सकती है।

एक ग्लोबल बाजार में रणनीतिक बदलाव

रेयर मिनरल्स अब केवल एक संसाधन नहीं रहे, बल्कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय बन चुका है। सरकारें अब इंडस्ट्रियल पॉलिसी, इकोनॉमिक इन्सेंटिव्स और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के जरिये अपने आपूर्ति तंत्र को सुरक्षित और टिकाऊ बनाने पर ध्यान दे रही हैं।

चीन पर निर्भरता कम करने की तैयारी में सरकार

हाल में आयी खबरों के मुताब‍िक भारत सरकार रेयर अर्थ मैग्नेट्स के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना शुरू करने का विचार कर रही है। सरकार जल्द ही इस योजना का ऐलान कर सकती है। दरअसल, सरकार चीन पर निर्भरता कम करना और इलेक्ट्रिक गाड़ियों, रक्षा, और अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनना चाहती है।

प्रस्तावित योजना के मुख्य बिंदु

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस प्रस्तावित योजना के प्रमुख बिंदुओं में से कुछ ये हैं :

1) फाइनेंशियल इन्सेंटिव : सरकार घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता देने की योजना बना रही है। इससे लोकल मैन्युफैक्चर्रस को कंपीटीटिव बनाया जा सके।

2) कीमत अंतर की भरपाई : सरकार चीन से इंपोर्ट होने वाले सस्ते मैग्नेट्स और घरेलू उत्पादन के बीच के मूल्‍य के अंतर के लिए आंशिक रूप से सब्सिडी देने पर विचार कर रही है।

3) लंबी अवधि की सप्लाई : घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ, सरकार लंबी अवधि के लिए सप्लाई चेन श्रृंखला बनाने के लिए कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है।

चीन पर निर्भरता और ग्लोबल सप्लाई संकट

अभी हालात ये है कि वर्तमान में चीन ग्लोबल रेयर अर्थ मैग्नेट्स के प्रोसेसिंग का लगभग 90% नियंत्रित करता है। हाल ही में टैरिफ को लेकर अमेरिका के साथ हुए तनाव के कारण चीन ने इन मैग्नेट्स के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया है। इस बैन के कारण ग्लोबल इंडस्ट्री खासकर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में सप्लाई संकट पैदा हो गया है। भारत में ईवी मैन्युफैक्चर्रस को जरूरी मैग्नेट्स मिलने में कठिनाई हो रही है। इससे उनके सामने प्रोडक्शन कम करने और हालात न सुधरे तो बंद करने का संकट खड़ा हो गया है।

रणनीतिक महत्व और भविष्य की दिशा

रेयर अर्थ मैग्नेट्स, विशेष रूप से नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन मैग्नेट्स, ईवी, विंड टर्बाइनों, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, और डिफेंस सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत के पास लगभग 6.9 मिलियन टन रेयर अर्थ भंडार है, लेकिन प्रोसेसिंग क्षमता की कमी के कारण इनका पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। सरकार की यह पहल 'नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन' के तहत आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

(शेयर मंथन, 11 जून 2025)

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