भारत में क्विक-कॉमर्स यानी फटाफट डिलीवरी वाला ई-कॉमर्स सेक्टर अब रिटेल की दुनिया में क्रांति ला रहा है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का क्विक-कॉमर्स बाजार करीब 64,000 करोड़ रुपये का हो चुका है। ये ग्रोथ बेहद तेज रफ्तार से हुई है — वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2025 के बीच इसने सालाना 142% की कंपाउंड ग्रोथ दर्ज की है। इतना ही नहीं, आने वाले तीन साल में ये बाजार लगभग 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने की संभावना है।
क्विक-कॉमर्स क्या है और क्यों हो रहा है इतना लोकप्रिय?
क्विक-कॉमर्स एक खास तरह की ई-कॉमर्स सेवा है, जिसका मकसद है ग्राहकों तक जरूरी सामान महज 10 से 30 मिनट के भीतर पहुँचाना है। इसमें किराना, दूध, स्नैक्स, पर्सनल केयर से लेकर जरूरी दवाइयों तक की डिलीवरी की जाती है।
ग्राहकों की बदलती जरूरतें, शहरीकरण, और बढ़ती डिजिटल पहुँच ने इस सेक्टर को तेजी से आगे बढ़ाया है। लोग अब हर चीज फटाफट चाहते हैं चाहे वो खाना हो या फिर साबुन। ऐसे में क्विक-कॉमर्स कंपनियाँ इस माँग को तेजी से पूरा कर रही हैं, जिससे उनका मार्केट शेयर लगातार बढ़ रहा है।
टियर-2 और टियर-3 शहरों में बढ़ता विस्तार
रिपोर्ट में बताया गया है कि अब क्विक-कॉमर्स की पकड़ सिर्फ मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं है। टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी ये सेवाएँ पहुँच रही हैं। बेहतर डिलीवरी नेटवर्क, डार्क स्टोर्स का इस्तेमाल और तकनीकी निवेश की वजह से ये कंपनियाँ अब छोटे शहरों में भी महज कुछ मिनटों में डिलीवरी देने में सक्षम हो गई हैं।
ब्रांड्स भी कर रहे हैं रणनीति में बदलाव
बड़ी एफएमसीजी कंपनियाँ भी क्विक-कॉमर्स के बढ़ते असर को पहचान चुकी हैं। वे अब प्लेटफॉर्म स्पेसिफिक स्पेशल पैक साइज, प्रीमियम प्रोडक्ट और तेजी से डिलीवर होने वाले पैकेज तैयार कर रही हैं। इससे न सिर्फ प्रोडक्ट वैरायटी बढ़ी है, बल्कि एवरेज ऑर्डर वैल्यू भी ऊपर गई है।
डिलीवरी से नहीं, प्लेटफॉर्म फीस से कमाई का जरिया
रिपोर्ट में एक दिलचस्प बात सामने आई है कि क्विक-कॉमर्स कंपनियों की कमाई अब डिलीवरी से ज्यादा प्लेटफॉर्म फीस से हो रही है। वित्त वर्ष 2022 में जहाँ ये कमाई महज 450 करोड़ रुपये थी, वहीं वित्त वर्ष 2025 में ये बढ़कर 10,500 करोड़ रुपये तक पहुँच गई है। वहीं वित्त वर्ष 2028 तक इसके 34,500 करोड़ रुपये तक जाने की उम्मीद है।
इसकी बड़ी वजह है कि कंपनियों ने प्लेटफॉर्म फीस और डिलीवरी चार्ज में बढ़ोतरी की है। वित्त वर्ष 2022 में जहाँ ये रेट 7-9% के बीच था, वित्त वर्ष 2025 में ये 14-18% तक पहुँच चुका है। यानी सिर्फ तीन साल में कंपनियों ने अपने रेवेन्यू का स्ट्रक्चर ही बदल दिया है।
भविष्य क्या है?
रिपोर्ट का कहना है कि ये सेक्टर अभी अपने शुरुआती चरण में है, और आगे भी दोगुनी-तीगुनी रफ्तार से बढ़ता रहेगा। स्मार्टफोन, इंटरनेट और यूपीआई जैसी सुविधाएँ पहले ही करोड़ों लोगों तक पहुँच चुकी हैं। साथ ही, कस्टमर्स अब परंपरागत खरीदारी की बजाय ऐप के जरिए फटाफट ऑर्डर देने को प्राथमिकता दे रहे हैं। कंपनियों की ओर से डार्क स्टोर्स, टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर और डिलीवरी ऑप्टिमाइजेशन में भारी निवेश हो रहा है, जो इस इंडस्ट्री को और मजबूत बनाएगा।
(शेयर मंथन, 14 जुलाई 2025)
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