रियल्टी बाजार की हकीकत

राजीव रंजन झा

डीएलएफ के तिमाही नतीजे आने के बाद से ही पूरे जमीन-जायदाद (रियल्टी) क्षेत्र के शेयरों की जबरदस्त पिटायी हो रही है। केवल बीते 2 दिनों में डीएलएफ 25% टूट चुका है और अपने 52-हफ्तों के सबसे निचले स्तर को छू रहा है। अभी महीने भर पहले ही 5 जनवरी को इसने 310 का जो ऊँचा स्तर बनाया था, वहाँ से यह 57% की चोट खा चुका है। इस क्षेत्र के बाकी शेयरों की हालत कुछ अलग नहीं है।

इस क्षेत्र के बारे में बाजार की धारणा दो खास वजहों से एकदम बिगड़ गयी है। सत्यम मामले के बाद बाजार अब उन कंपनियों को जरा भी रियायत देने के लिए तैयार नहीं दिखता, जिनके कामकाज में साफ-सुथरापन नहीं हो। दुर्भाग्य से जमीन-जायदाद के क्षेत्र की कंपनियों में भी सहायक कंपनियों, प्रमोटर परिवार की दूसरी कंपनियों और शायद एक हद तक बेनामी लेन-देन का ऐसा जाल है, जिसमें उलझ कर बड़े माहिर विश्लेषक भी इनकी सच्ची तस्वीर बताने में हाथ खड़े कर देते हैं।
दूसरी अहम बात इस क्षेत्र की कारोबारी संभावनाओं की है, जहाँ कम-से-कम अगले एक-दो साल तक स्थिति सुधरने की गुंजाइश कम ही दिखती है - कोई करिश्मा हो जाये तो बात अलग है। हालाँकि कंपनियों के प्रबंधन बार-बार मजबूत हौसला दिखाते नजर आते हैं, दावा करते हैं कि बस ब्याज दरें थोड़ी घट जायें तो हमारी बिक्री फिर से बढ़ जायेगी। लेकिन जैसा मैंने पहले भी कई बार लिखा है, या तो वे जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर रहे हैं, या कम-से-कम सबके सामने उसे कबूलना नहीं चाहते।
सेंट्रम ब्रोकिंग ने ईटी मुंबई रियल्टी एक्सपो 09 का जायजा लेने के बाद अपनी ताजा रिपोर्ट में लिखा है कि इस एक्सपो में लोगों की भीड़ तो अच्छी रही, लेकिन ऊँची कीमतों के चलते लोग अब भी खरीदने से हिचक रहे हैं। कीमतें पहले से 20-25% घट चुकी हैं, लेकिन अब भी वे लोगों की जेब के दायरे से बाहर ही हैं। इसी का नतीजा है कि बने-बनाये (रेडी-टू-पजेशन) मकानों का अनुपात अब 45% तक चला गया है, जिसका मतलब यह है कि पहले से चालू परियोजनाओं की बिक्री काफी घट चुकी है और नयी परियोजनाएँ चालू नहीं हो रही हैं। जब पिछला बिका ही नहीं, तो नया कैसे चालू होगा! सेंट्रम का अनुमान है कि कीमतें जून तक और 15-20% घट सकती हैं। शायद उस मुकाम पर कुछ खरीदार लौटने शुरू हो जायें, लेकिन मेरा मानना है कि जब तक ईएमआई बनाम किराये का समीकरण फिर से नहीं लौटेगा, तब तक इस बाजार में हरियाली नहीं लौटेगी।