अब कितना नमक लगायेंगे विकास के अनुमानों पर!

राजीव रंजन झा

सरकार या आरबीआई की ओर से हाल में जब भी विकास दर के अनुमान सामने रखे गये, विश्लेषकों का एक बड़ा समूह मानता रहा कि इन अनुमानों को एक चुटकी नमक के साथ ही लेना चाहिए। कहने का मतलब यह कि इन आँकड़ों को पूरी तरह से पक्का नहीं माना जा सकता। लेकिन अब जिस तरह से सरकारी अनुमानों और विश्लेषकों के अनुमानों का फर्क बढ़ता जा रहा है, उसे देख कर कहना होगा कि शायद विश्लेषकों को अब अपनी चुटकी में नमक की मात्रा थोड़ी घटानी होगी।

केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) ने अपने अग्रिम अनुमानों (एडवांस एस्टिमेट्स) में कहा है कि 2008-09 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.1% रहेगी। दूसरी ओर विभिन्न संस्थाओं के अनुमान एक अलग ही तस्वीर दिखाते हैं। जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक पत्रिका इकोनॉमिस्ट की इकाई इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) ने हाल ही में कहा है कि 2008-09 में भारत की जीडीपी केवल 5.6% की दर से बढ़ेगी। ज्यादातर पश्चिमी विश्लेषकों या पश्चिमी संस्थाओं के भारतीय विश्लेषकों ने 2008-09 में भारत की विकास दर के अनुमान 5-6% के बीच ही रखे हैं।
सीएसओ के अग्रिम अनुमान कारोबारी साल के 11वें महीने में जारी किये जाते हैं और बाद में संशोधित अनुमान इससे एकदम अलग नहीं निकला करते। पिछले साल फरवरी में सीएसओ ने अपने अग्रिम अनुमानों में 2007-08 की विकास दर 8.7% रहने की बात कही थी। जब मई 2008 में संशोधित अनुमान रखे गये, तो उसमें यह विकास दर 9.0% रही। एक अंदाजा यही लगाया जा सकता है कि अगर सीएसओ के अनुमान बाद में गलत भी निकले, तो भी अंतर 0.5% से कम का ही रहेगा। ऐसे में भारत की विकास दर को लेकर पश्चिमी संस्थाओं के हद से ज्यादा नकारात्मक नजरिये का कोई साफ कारण समझना मुश्किल लग रहा है।
खैर, 2008-09 की विकास दर को लेकर बहस तो 3 महीने बाद सीएसओ के संशोधित अनुमानों से निपट जायेगी, लेकिन 2009-10 को लेकर अटकलें चलती रहेंगीं। कुछ लोग तो 2009-10 में भारत की विकास दर 4.5% रह जाने की बातें भी कर रहे हैं, जबकि गृह मंत्री चिदंबरम की ताजा टिप्पणी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2009-10 की तीसरी तिमाही से फिर संभलने लगेगी। चिदंबरम कैबिनेट के आधिकारिक प्रवक्ता हैं, इसलिए उनकी बात पर गौर तो करना ही होगा।