इनसाइडर ट्रेडिंग: सौदा सेकेंडों में, ब्यौरा मिनटों में, जाँच सालों में

राजीव रंजन झा

कल लोकसभा में प्रणव मुखर्जी ने बताया कि पिछले 3 सालों में सेबी को कुल 19 कंपनियों के खिलाफ इनसाइडर ट्रेडिंग की शिकायतें मिली हैं। यह बयान केवल एक सामान्य आँकड़ा बन कर रह जाता, अगर इन 19 कंपनियों की सूची में रिलायंस पेट्रोलियम का नाम नहीं होता। इस मामले में सेबी की ओर से तैयार की गयी टिप्पणी में कहा गया कि 6 नवंबर 2007 को रिलायंस पेट्रोलियम (आरपीएल) के शेयर में तीखी गिरावट आयी और यह पिछले दिन के 267.55 रुपये से 22.35 रुपये पर आ गया। इसके बाद 23 नवंबर को कंपनी ने जानकारी दी कि 6 से 23 नवंबर के बीच इसकी प्रमोटर कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 18 करोड़ शेयर (4.01% हिस्सेदारी के बराबर) बेचे। इससे पहले 1 से 6 नवंबर के बीच इस शेयर में खरीद-बिक्री करने वाले सबसे बड़े ग्राहकों ने वायदा बाजार में काफी बड़ी मात्रा में बिकवाली सौदे किये थे। ये सौदे 7.97 करोड़ शेयरों के थे, जो इस शेयर में कुल खुले सौदों के 93.63% के बराबर थे।

यह बड़ी अच्छी बात है कि सेबी ने ये तमाम जानकारियाँ जुटायीं। यह बड़ी अच्छी बात है कि सेबी रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी दिग्गज कंपनी पर भी आरोप लगने पर इसकी पूरी जाँच कर रही है। लेकिन इस जाँच को इसके तार्किक अंजाम तक ले जाने में देरी किस वजह से हो रही है? क्या एक्सचेंजों ने आपको सूचना नहीं दी? नहीं, उन्होंने तो सारे आँकड़े आपके सामने रख दिये। फिर क्या वजह है कि नवंबर 2007 का मामला अब तक सुलट नहीं सका है?
बात केवल आरपीएल की नहीं है। सेबी के पास इनसाइडर ट्रेडिंग की जो 19 शिकायतें हैं, उनमें से 6 मामले साल 2006 के हैं। साल 2007 में 6 कंपनियों और 2008 में 3 कंपनियों के खिलाफ शिकायतें आयीं। आज जब शेयरों के सारे सौदे इलेक्ट्रॉनिक तरीके से होते हैं, सेबी को किसी शेयर के तमाम सौदों का सारा ब्यौरा मिनटों में मिल सकता है। इनकी छानबीन और संबंधित पक्षों की सुनवाई में कितना वक्त लगना चाहिए?
अगर ऐसे आरोप सालों-साल लटके रहते हैं तो इससे पूरी व्यवस्था के बारे में निवेशकों का भरोसा कमजोर होता है। यह धारणा बनती है कि बाजार में सारा कुछ गलत ही होता है और पूरा बाजार चंद लोगों के इशारों पर चलता है। इसलिए अगर ये आरोप सही हैं तो तुरंत दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। अगर इन आरोपों में दम नहीं है तो मामला खत्म करना चाहिए।