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सत्यम की असली कहानी: राजू के गुनाहों का इकरारनामा

सत्यम कंप्यूटर के चेयरमैन बी. रामलिंग राजू ने अपना इस्तीफा देते हुए कंपनी के निदेशक बोर्ड को एक लंबी चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्होंने सत्यम के कामकाज के बारे में कई चौंकाने वाले खुलासे किये हैं। इसे एक तरह से राजू के गुनाहों का इकरारनामा कहा जा सकता है। हालाँकि इस बात को लेकर भी जाँच की जरूरत महसूस होती है कि इस पत्र में जो दावे किये गये हैं, वे भी कितने सच्चे हैं। कंपनी की जिस नकदी को लेकर हाल में बवाल मचा था, उसके बारे में रामलिंग राजू ने इस पत्र में कहा है कि वास्तव में यह नकदी कंपनी के पास है ही नहीं। इसी तरह हाल के कारोबारी नतीजों में कंपनी की आमदनी, ऑपरेटिंग प्रॉफिट वगैरह के जो आंकड़े पेश किये गये थे, उनके बारे में भी कहा गया है कि इन आँकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया।

रामलिंग राजू ने निदेशक बोर्ड को जो पत्र लिखा है, उसका हिंदी रूपांतर नीचे दिया जा रहा है।

प्रति: निदेशक बोर्ड, सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज लिमिटेड

द्वारा: बी. रामलिंग राजू, चेयरमैन, सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज लिमिटेड

7 जनवरी 2009

प्रिय बोर्ड सदस्यों,

गहरे दुख और अपनी अंतरात्मा पर चले आ रहे भारी बोझ के साथ मैं कुछ बातें आपके ध्यान में लाना चाहता हूँ:

1. कंपनी की बैलेंस शीट की स्थिति 30 सितंबर 2008 को इस प्रकार है

(a) नकदी और बैंक बैलेंस को वास्तविकता से 5,040 करोड़ रुपये ज्यादा बढ़ा कर बताया गया, जो मौजूद नहीं है (खातों में 5,361 करोड़ रुपये दिखाये गये)

(b) 376 करोड़ रुपये का प्राप्त ब्याज, जो मौजूद नहीं है

(c) मेरे द्वारा जुटायी गयी रकम की वजह से 1,230 करोड़ रुपये की देनदारी, जिसका पूरा खुलासा नहीं किया गया था

(d) कर्ज की स्थिति को वास्तविकता से 490 करोड़ रुपये का अंतर दिखाया गया (बही-खातों में दर्ज रकम 2,651 करोड़ रुपये की)

2. सितंबर तिमाही (दूसरी तिमाही) के लिए हमने 2,700 करोड़ रुपये की आमदनी और 649 करोड़ रुपये का ऑपरेटिंग मार्जिन (आमदनी का 24%) दिखाया था, जबकि वास्तव में आमदनी 2,112 करोड़ रुपये थी, जिस पर ऑपरेटिंग मार्जिन 61 करोड़ रुपये (आमदनी का 3%) का था। इसकी वजह से केवल दूसरी तिमाही में ही नकदी और बैंक बैलेंस में कृत्रिम रूप से 588 करोड़ रुपये का इजाफा हो गया।

कंपनी की बैलेंस शीट में जो अंतर पैदा हुआ है,  वह शुद्ध रूप से पिछले कई सालों से बढ़ा-चढ़ा कर दिखाये जा रहे मुनाफे की वजह से है (यह बात केवल सत्यम के स्टैंडअलोन आँकड़ों के लिए है, सहायक कंपनियों के खातों को उनके वास्तविक प्रदर्शन के मुताबिक ही दिखाया गया है)। पहले यह वास्तविक ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन और खातों में दिखाये गये आँकड़े के बीच मामूली अंतर के साथ शुरू हुआ, और यह अंतर कई सालों के दौरान बढ़ता चला गया। कंपनी का कामकाज तेजी से बढ़ने के चलते यह अंतर इतना बढ़ गया कि इसे संभालना मुश्किल हो गया (सालाना आधार पर बढ़ने की दर सितंबर 2008 की तिमाही में 11,276 करोड़ रुपये की थी, और आधिकारिक रूप से रिजर्व 8,392 करोड़ रुपये का था)। वास्तविक मुनाफे और बही-खातों में दिखाये गये मुनाफे का अंतर इस बात के चलते भी काफी बढ़ गया कि बड़े स्तर पर कामकाज को उचित ठहराने के लिए इसे अतिरिक्त संसाधन और संपत्तियों को साथ रखना पड़ा, जिसके चलते लागत काफी बढ़ी।

इस अंतर को पाटने के जितने भी प्रयास किये गये, वे नाकाम रहे। चूँकि प्रमोटरों के पास इक्विटी हिस्सेदारी काफी कम थी, इसलिए यह चिंता थी कि खराब प्रदर्शन का नतीजा कंपनी के अधिग्रहण के रूप में हो सकता है, जिससे यह अंतर सबके सामने आ जायेगा। यह एक बाघ की सवारी करने जैसा था, यह जाने बिना कि कैसे इससे उतर भी जायें और बाघ हमें खाये भी नहीं।

मेटास अधिग्रहण का सौदा भ्रामक संपत्तियों के बदले असली संपत्तियाँ दिखाने का अंतिम प्रयास था। मेटास के निवेशक इस बात से संतुष्ट थे कि यह उनके लिए विनिवेश का एक सही अवसर और रणनीतिक रूप से उनके अनुकूल था। उम्मीद यह थी कि एक बार जब सत्यम की परेशानी हल हो जायेगी, तब मेटास के भुगतान में देरी की जा सकेगी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। बीते कुछ दिनों में जो कुछ हुआ है,  वह सबकी जानकारी में है।

मैं बोर्ड को यह बताना चाहता हूँ कि:

1. न तो मैंने और न ही प्रबंध निदेशक (हमारी पत्नियों समेत) ने पिछले 8 सालों में अपने शेयर बेचे हैं, सिवाय एक छोटे हिस्से के, जिन्हें दान-संबंधी उद्देश्य से बेचा गया और इसकी घोषणा भी की गयी।

2. पिछले 2 सालों में शुद्ध रूप से सत्यम के लिए 1,230 करोड़ रुपये का प्रबंध किया गया (सत्यम के बही-खातों में इसे नहीं दिखाया गया), ताकि कंपनी का कामकाज चलता रहे। इस रकम का प्रबंध प्रमोटरों के शेयरों को गिरवी रख कर और ज्ञात स्रोतों से पैसा जुटा कर किया गया जिसके लिए हर प्रकार के आश्वासन दिये गये (स्टेटमेंट संलग्न, केवल बोर्ड के सदस्यों के लिए)। बड़े डिविडेंड का भुगतान, अधिग्रहण और विकास के लिए पूँजीगत खर्च जैसे कदमों से भी स्थिति को संभालने में कोई मदद नहीं मिली। गाड़ी चलती रहे और सहयोगियों को समय पर वेतन-भुगतान होता रहे, इसके लिए सारे प्रयत्न किये गये। जब कर्जदाताओं ने गिरवी रखे गये ज्यादातर शेयरों को मार्जिन ट्रिगर होने के चलते बेच दिया, तो यह इस कड़ी में आखिरी तिनका साबित हुआ।

3. न तो मैंने और न ही प्रबंध निदेशक ने कंपनी से एक भी रुपया/डॉलर लिया। कंपनी के बढ़ा-चढ़ा कर बताये गये कारोबारी नतीजों से हमने वित्तीय रूप में कोई फायदा नहीं उठाया।

4. कंपनी के बोर्ड के मौजूदा या पूर्व सदस्यों में से किसी को भी कंपनी की इस स्थिति की जानकारी नहीं थी। यहाँ तक कि कंपनी में भी विभिन्न कारोबारों के प्रमुख और वरिष्ठ अधिकारी, जैसे राम मायनमपटि, सुबु डी., टी.आर. आनंद, केशब पांडा, वीरेंद्र अग्रवाल, ए.एस. मूर्ति, हरि टी., एस.वी. कृष्णन, विजय प्रसाद, मनीष मेहता, मुरली वी., श्रीराम पापानी, किरण कवले, जो लैगिओइया, रविंद्र पेनुमेट्सा, जयरमन और प्रभाकर गुप्ता भी कंपनी के बही-खातों के विपरीत सही स्थिति से अनजान हैं। न तो मेरे और न ही प्रबंध निदेशक के नजदीकी या दूर के सगे-संबंधी इन मुद्दों के बारे में कोई जानकारी रखते हैं।

इन सारी बातों को आपके सामने रखने के बाद मैं यह बात इस बोर्ड की बुद्धिमत्ता पर छोड़ता हूँ कि वह इस मामले को किस तरह आगे बढ़ाना चाहता है। हालाँकि मैं नीचे दिये गये कदम उठाने की सलाह देने की छूट भी ले रहा हूँ:

1. मेटास अधिग्रहण का प्रयास विफल होने से पैदा हुई स्थिति को सँभालने के लिए पिछले कुछ दिनों में एक टास्कफोर्स बनाया गया था। इसमें सत्यम के कुछ जाने-माने वरिष्ठ अधिकारियों को रखा गया था, जिनके नाम हैं: सुबु डी., टी.आर. आनंद, केशब पांडा और वीरेंद्र अग्रवाल, जो विभिन्न कारोबारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और ए.एस. मूर्ति, हरि टी., और मुरली वी., जो ग्राहक-सहायता संबंधी गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मेरा सुझाव है कि कुछ अटके पड़े कामकाजी मुद्दों को निपटाने के लिए राम मायनमपटि को इस टास्कफोर्स का चेयरमैन बनाया जाये। राम एक अंतरिम सीईओ के रूप में भी काम कर सकते हैं, जिनकी जवाबदेही बोर्ड के प्रति हो।

2. मेरिल लिंच को विलय संबंधी अवसरों की जल्द तलाश करने का काम सौंपा जा सकता है।

3. मैंने आपके सामने जो तथ्य रखे हैं, उनके मद्देनजर आप कंपनी के बहीखातों का दोबारा लेखा-जोखा (रीस्टेटमेंट ऑफ एकाउंट्स) ऑडिटरों से तैयार करा कर सबके सामने रख सकते हैं।

मैंने सत्यम का गठन किया और इससे 20 सालों से भी ज्यादा समय तक जुड़ा रहा। मैंने इसे चंद लोगों की कंपनी से बढ़ कर 53,000 लोगों की कंपनी बनते देखा है, जिसके ग्राहकों में आज 185 फॉर्च्यून 500 कंपनियाँ शामिल हैं। इसका कामकाज आज 66 देशों में फैला है। सत्यम ने सभी स्तरों पर खुद को एक अग्रणी और सक्षम कंपनी के रूप में शानदार ढंग से स्थापित किया है। मैं सत्यम के सभी सहयोगियों से और इसके हिस्सेदारों से, जिन्होंने सत्यम को एक विशेष संगठन बनाया, मौजूदा स्थिति के लिए अंतर्मन से क्षमा माँगता हूँ। मुझे भरोसा है कि संकट के इस क्षण में वे कंपनी के साथ खड़े रहेंगे।

ऊपर कही गयी बातों के मद्देनजर, मैं बोर्ड से पुरजोर आग्रह करता हूँ कि वह एकजुट होकर कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये। श्री टी.आर. प्रसाद इस महत्वपूर्ण क्षण में सरकार से मदद हासिल करने में एक भूमिका निभाने की स्थिति में हैं। मुझे यह उम्मीद है कि टास्कफोर्स के सदस्य और वित्तीय सलाहकार मेरिल लिंच (अब बैंक ऑफ अमेरिका) इस महत्वपूर्ण घड़ी में कंपनी के साथ खड़े रहेंगे, इसलिए मैं इस बयान की एक प्रति उन्हें भी भेज रहा हूँ।

मैं इन स्थितियों में सत्यम का चेयरमैन पद छोड़ रहा हूँ और इस पद पर तभी तक बना रहूँगा जब तक मौजूदा बोर्ड का विस्तार नहीं हो जाता। मेरा बने रहना केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि अगले कुछ दिनों में या जितनी जल्दी संभव हो, बोर्ड का विस्तार हो जाये।

मैं अब भारतीय कानून के तहत कार्रवाई का सामना करने और उसके परिणामों को भुगतने के लिए तैयार हूँ।

(बी. रामलिंग राजू)

 

प्रतिलिपि:

1. चेयरमैन, सेबी

2. स्टॉक एक्सचेंजों को

 

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