शेयर मंथन में खोजें

'आप' का आचरण देखेगी जनता : नक़वी

अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के विधानसभा चुनाव में मिली सफलता दिखाती है कि जनता देश की राजनीति और राजनीतिक दलों से किस हद तक निराश हो चुकी है।
यह उस निराशा की ही अभिव्यक्ति है। लोगों को लगता है कि केजरीवाल सचमुच आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं। आम आदमी के दिल के तार केजरीवाल ने छुए हैं। यहाँ लोकतंत्र की बात तो होती है, लेकिन लोकतंत्र में नेता इतना बड़ा हो चुका है कि नेता और जनता में पुराने जमाने के राजा-प्रजा का समीकरण बन गया है। पुराने जमाने में जो राजा-प्रजा का रिश्ता होता था, वही आज नेता-जनता के बीच है। हमारे इस लोकतंत्र में जनता का काम खाली वोट दे देना है और पाँच साल के लिए अपना राजा चुन लेना है। 
दूसरी बात यह है कि दलों के नाम और झंडे छोड़ दीजिये तो सारे दलों का एक ही चरित्र है। एक ही प्रकार के लोग हैं, एक ही प्रकार के आरोप उनके ऊपर लगते रहे हैं और आरोप कभी साबित नहीं होते। इसीलिए लोगों को लगा कि भाई यह आदमी कम-से-कम आम आदमी के साथ जुड़ने का काम कर रहा है। पिछले डेढ़ साल में केजरीवाल ने लोगों को सीधे-सीधे जोड़ा है अपने साथ और एक उम्मीद जगायी है। यह जरूर है कि उम्मीद कुछ जरूरत से ज्यादा जग गयी है। कई बार जब उम्मीद बहुत ज्यादा हो जाती है तो निराशा भी बहुत जल्दी आती है। केजरीवाल के लिए सबसे बड़ा खतरा यही है। उनकी चुनौती यही है कि लोगों ने उम्मीदें लगायी हैं, उन पर वे खरे उतरें।
चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद से शपथ ग्रहण के बीच की पूरी प्रक्रिया में जो घटनाएँ हुई हैं, उनमें केजरीवाल ने बिल्कुल अलग तरह की राजनीति करके सारे परंपरागत राजनीतिज्ञों की धज्जियाँ उड़ा कर उनके अनुमानों को ध्वस्त कर दिया। उन दस-पंद्रह दिनों में जो हुआ, उससे केजरीवाल की छवि को बड़ा फायदा हुआ और समर्थन काफी बढ़ा है। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि जो चीजें आपने कही हैं, उन चीजों को आप कितना कर पायेंगे? अगर 'आप' ने 50%-60% भी कर लिया तो लोग मानेंगे कि ये जो बात कहते हैं वो करते हैं। बात केवल इतनी ही नहीं है कि जो वायदे किये हैं उनको पूरा कर पायेंगे या नहीं। ये वायदे पूरा करना तो बड़ा आसान है। सरकार के ऊपर जो भी खर्च बढ़े, उसके साथ किसी भी प्रकार आप साल-छह महीने निकाल दीजिये। कोई अगर शॉर्टकट राजनीति करना चाहे तो दो-चार महीनों के लिए यह नाटक कर सकता है। लेकिन जो लंबा चलना चाहता है राजनीति में, उसको यह चीज देखनी पड़ेगी कि वायदों को भरोसेमंद ढंग से पूरा करें। जनता को यह न लगे कि जनता के टैक्स के पैसे की बरबादी है। एक अनुशासित और नियोजित ढंग से पूरा कर पाते हैं तो बड़ी अच्छी बात है। 
लेकिन इससे ज्यादा बड़ी बात है कि उनके विधायक और मंत्री कैसा आचरण करते हैं। वे आम आदमी के सेवक हैं, तो उनको सेवक की तरह रहना चाहिए, शासक की तरह से नहीं। यह जरा काफी कठिन चुनौती है। इस तरह लोग उन्हें दो कसौटियों पर कसेंगे। पहले दो-तीन महीने इस मामले में महत्वपूर्ण होंगे। 
केजरीवाल के पास दो महीने का समय है। फरवरी के बाद चुनाव की आचार संहिता लागू हो जायेगी। उसके बाद वे चुनाव होने तक नीतिगत फैसले नहीं ले पायेंगे। इन दो महीनों के नीतिगत फैसलों और काम पर जनता उनको आंकेगी। साथ ही जनता उनका देखेगी कि वे खुद कैसा आचरण करते हैं, उनके मंत्री और विधायक कैसा आचरण करते हैं। उन्होंने राजनीतिक जीवन में शुचिता की बात की है। अगर वे ऐसा कर पाते हैं तो बाकी परंपरागत राजनीतिक दलों को अपने-आप को पूरी तरह बदलना पड़ेगा। 
गाड़ी पर लाल बत्ती नहीं लगाने की ऊपरी प्रक्रिया तो फिर भी आसान है, आप पालन कर लेंगे। लेकिन भ्रष्टाचार से दूर रहना और बिना अर्थ की कामना किये राजनीति करते रहना कोई छोटी चुनौती है क्या! कुछ मिलना नहीं है यहाँ तो क्यों यहाँ समय खराब करो! केजरीवाल की टीम पर सबसे ज्यादा निगाह इसी मुद्दे पर रहेगी कि कैसे अपने-आपको भ्रष्टाचार की काजल की कोठरी से बचा के रखते हैं। 
यह केजरीवाल प्रभाव ही है कि दिल्ली में 32 सीटें जीत करके भी भाजपा ने कहा कि हम सरकार नहीं बनायेंगे। वरना जोड़-तोड़ करते शायद। झारखंड में इतने साल से जोड़-तोड़ करके किसी-न-किसी प्रकार सरकारें बनायी ही थी उन्होंने। वहाँ जोड़-तोड़ करने में एतराज नहीं था तो यहाँ अचानक से परिवर्तन क्यों हुआ? इसीलिए हुआ कि एक पार्टी खड़ी हो गयी, जो नैतिकता की, शुचिता की और सफाई-सादगी की बात करती है। आपको लगा कि इस समय जोड़-तोड़ करना हमें नुकसान करेगा। इसी तरह कांग्रेस में राहुल गाँधी बयान दे चुके हैं कि केजरीवाल से हमें सीखना चाहिए। जाहिर सी बात है जब ये दो बड़ी पार्टियाँ इस प्रकार से बातें करती हैं तो मतलब यह है कि केजरीवाल जो कर रहे हैं उस पर ध्यान देना पड़ेगा और एक प्रकार से वैसा ही करना पड़ेगा। वे एक वैकल्पिक राजनीति की संस्कृति दे रहे हैं। वह संस्कृति जनता को ज्यादा बेहतर और ज्यादा अपनी लगती है। 
ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी ने खुले मैदान में शपथग्रहण किया हो। मुझे याद आता है कि मुलायम सिंह ने 1989 में लखनऊ के स्टेडियम में शपथ ग्रहण किया था। शायद इससे ज्यादा ही भीड़ रही होगी। लेकिन उसमें जनता की सहभागिता नहीं थी। जनता की सहभागिता वी. पी. सिंह के शपथ ग्रहण में जरूर थी। वीपी सिंह से भी लोगों ने बड़ी उम्मीदें लगायी थी। लेकिन वी. पी. सिंह का क्या नतीजा हुआ सबके सामने है, तो इसलिए लोगों की आशंका भी ठीक है। दो-तीन बार ऐसा हुआ है कि जनता की उम्मीदें पूरी नहीं हो पायीं। जनता पार्टी के समय में भी यही हुआ था। जनता पार्टी के समय लोगों की उम्मीदें इससे भी कहीं ज्यादा थीं। केजरीवाल लोगों की उम्मीदों पर थोड़ा-बहुत भी खरे उतरे तो जनता संतुष्ट हो जायेगी। लेकिन अगर वे विफल हो गये तो शून्य भी हो जायेंगे। 
अगले लोकसभा चुनाव में 'आप' की लोकप्रियता बढ़ने से नुकसान किसका होगा, यह हम अभी कह नहीं सकते। जब शुरू में 'आप' ने विधानसभा चुनाव में लड़ना शुरू किया तो ज्यादातर लोगों ने कहा कि वह भाजपा का वोट काटेगा। यही माना गया कि जो कांग्रेस-विरोधी वोट हैं, आप उसी को बाँटेगा और कांग्रेस का वोट तो कांग्रेस को मिल ही जायेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भाजपा का वोट तो कुछ बढ़ ही गया, जबकि आप ने कांग्रेस के काफी वोट ले लिये। मुझे लगता है कि जनता जिस जगह पर जिस पार्टी से ज्यादा असंतुष्ट होगी, उसी के बदले में 'आप' को विकल्प के तौर पर लाना चाहेगी। यह हो सकता कि लोकसभा चुनाव में विभिन्न राज्यों में 'आप' उन राज्यों में मौजूद तीसरी शक्तियों के वोट भी बाँटे। 
दिल्ली में तो विधानसभा का चुनाव था, लेकिन आगे मामला लोकसभा का है। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में राष्ट्रीय सुरक्षा या देश की मजबूती का प्रश्न जुड़ा हुआ नहीं था। लोकसभा चुनाव में जनता यह देखती है कि ऐसी सरकार बने जो देश को मजबूती दे सके, जो देश में स्थिरता को बनाये रख सके। बहुत बार ऐसा हुआ है कि विधानसभा चुनाव के तीन-चार महीने बाद लोकसभा चुनाव हुए तो जनता ने दूसरे दल को वोट दे दिया और जिसको विधानसभा में हराया था, उसे लोकसभा में जिता दिया। इसलिए अभी से अनुमान लगाना कठिन है कि क्या होगा? लेकिन यह जरूर है कि 'आप' ने जो बातें कही हैं उनमें से वे कुछ कर पाये तो एक बड़ी ताकत बन कर उभरेंगे, चाहे अभी इनके पास ढाँचा हो या न हो। लोग उनसे जुड़ रहे हैं। क़मर वहीद नक़वी, संपादकीय निदेशक, इंडिया टीवी 
(शेयर मंथन, 01 जनवरी 2014) 

कंपनियों की सुर्खियाँ

निवेश मंथन : डाउनलोड करें

बाजार सर्वेक्षण (जनवरी 2023)

Flipkart

विश्व के प्रमुख सूचकांक

निवेश मंथन : ग्राहक बनें

शेयर मंथन पर तलाश करें।

Subscribe to Share Manthan

It's so easy to subscribe our daily FREE Hindi e-Magazine on stock market "Share Manthan"