
गिरते स्टॉक, बढ़ती माँग और आगामी महीनों में माँग और बढ़ने के आसार, कीमतों के मौजूदा निम्न स्तर, रुपया के मुकाबले मजबूत डॉलर और मानसून की प्रतिकूल रिपोर्ट से कृषि क्षेत्र में मध्यम काल में तेजी दिख सकती है। फसलों के कटाई सितंबर माह से शुरू होगी, तब तक रेलिगेयर को अधिकांश कृषि कमोडिटी की कीमतें मजबूत रहने की उम्मीद है।
कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा वर्ष 2014-15 के लिए प्रमुख फसलों के उत्पादन के संबंध में जारी चौथे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 2526.8 लाख टन रहने की उम्मीद है। यह पूर्ववर्ती साल के 2650.4 लाख टन के रिकॉर्ड उत्पादन के मुकाबले 123.6 लाख टन कम है। पिछले साल कम बारिश के चलते बुवाई में गिरावट आयी थी। इससे भी बुरा यह हुआ कि फरवरी-मार्च में बेमौसम बारिश हो गयी जिससे बोयी गयी फसल को क्षति पहुँची जिससे उत्पादन और उत्पादकता में और गिरावट आयी।
फ्यूचर एक्सचेंज में सूचीबद्ध फसलों में से इस साल दलहन का उत्पादन 172 लाख टन रहने का अनुमान है जो पिछले साल के मुकाबले 20.5 लाख टन कम है। तो वहीं मोटा अनाज का उत्पादन 417.5 लाख टन रहने का अनुमान है जो पिछले वर्ष की तुलना में 15.4 लाख टन कम है। गेहूँ उत्पादन 889.4 लाख टन रहने का अनुमान है जो पिछले वर्ष के मुकाबले 69.1 लाख टन कम है। तिलहन उत्पादन भी 60.7 लाख टन घट कर 266.8 लाख टन रहने का अनुमान लगाया गया है।
रेलिगेयर के मुताबिक अधिकांश फसलों के बुवाई रकबे में इस साल वृद्धि देखने को मिली है जिससे पिछले तीन माह के दौरान कीमतों में नरमी रही है। लेकिन अब बुवाई का समय धीरे-धीरे खत्म होने और कीमतों के अत्यंत निचले स्तर पर होने के चलते निर्यात और घरेलू माँग में धीरे-धीरे सुधार आ रहा है। अगले कुछ माह में त्योहारी मौसम शुरू हो जाने के साथ ही घरेलू माँग बढ़नी शुरू हो गयी है। इसके अलावा रुपये के मुकाबले डॉलर के मजबूत बने रहने से आगामी महीनों में निर्यात माँग को समर्थन मिलने की संभावना है। और, तेजी का आखिरी मुख्य कारक मानसून रिपोर्ट होगा जिसके बारे में मौसम विभाग का अनुमान है कि बारिश में कमी रहेगी। फिलहाल यह कमी 10% तक है। अगर अगस्त और सितंबर में कम बारिश होती है तो यह कमी और बढ़ जायेगी। बारिश कम रहने पर फसल की उत्पादकता पर असर पड़ेगा और यह ज्यादा बुवाई रकबे के बावजूद इस साल के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। इससे कीमतों में तेजी आ सकती है। हालाँकि चीन, अमेरिका और यूरोपीयन यूनियन जैसे देशों में छाये आर्थिक संकट जैसे कारकों से तेजी पर लगाम लग सकती है। कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे लगातार प्रयासों के चलते भी कीमतों में बड़ी उछाल के आसार सीमित होंगे। इसके अलावा अगर मानसून की रिपोर्ट बढ़िया रहती है तो बुवाई का रकबा फिर बढ़ेगा जो इस साल पहले ही ज्यादा था। (शेयर मंथन, 19 अगस्त, 2015)