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आरबीआई (RBI) कर सकता है रेपो दर (Repo Rate) में 0.25% कमी

अभीक बरुआ, मुख्य अर्थशास्त्री, एचडीएफसी बैंक (Abheek Barua, Chief Economist, HDFC Bank)

इस बुधवार को सामने आने वाली मौद्रिक नीति (Monetary Policy) में नीतिगत दरों में कटौती होगी या नहीं, इसे लेकर कुछ विश्लेषक बहुत संशय में नहीं दिखते हैं।

पिछले दो महीनों से महँगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर अनुमानित 2.0-3.5% महँगाई (Inflation) दर के दायरे के नीचे बनी रही है और वहीं वृद्धि (Growth) संबंधी आँकड़े कमजोर रहे हैं। इसलिए नीतिगत दरों (Policy Rates) पर इसका असर वांछित है। इसके पीछे यह धारणा है, जो काफी हद तक वैध लगती है, कि केंद्रीय बैंक (आरबीआई) को एक हद तक आँकड़ों के आधार पर ही अपने निर्णय लेने चाहिए।
पर मौद्रिक नीति समिति (MPC) को छोटी अवधि के आँकड़ों पर निर्भर करना और भविष्य पर निगाह रखना दो विरोधाभासी बातें लग सकती हैं, अगर छोटी अवधि के आँकड़ों में काफी उतार-चढ़ाव आ रहे हों। पिछले मौद्रिक नीतियों के वक्तव्यों, एमपीसी की बैठकों में कही गयी बातों के विवरणों आदि के आधार पर हमारा आकलन है कि आरबीआई हाल में महँगाई दर में आयी अधिकांश गिरावट को नोटबंदी और दालों की अत्यधिक आपूर्ति आदि बातों के चलते आयी तात्कालिक गिरावट ही मानता है। आरबीआई लंबी अवधि में महँगाई दर को 4% की दर पर स्थिर रखना चाहता है, इसलिए यह छोटी अवधि में आने वाले उतार-चढ़ावों से ज्यादा प्रभावित नहीं होता। इसके सामने कई चिंताएँ भी हैं। जैसे कि दूसरी छमाही में आधार प्रभाव (बेस इफेक्ट) का विपरीत असर होने की संभावना है। केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों के वेतन में हुई वृद्धि का असर भी कीमतों पर होगा। कर्ज-माफी जैसे तरीकों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के उपायों के भी नतीजे सामने आयेंगे। भविष्य में खरीद-मूल्यों में तेज वृद्धि भी संभावित है। इन सब बातों से इस साल की दूसरी छमाही में और फिर अगले वित्त वर्ष में महँगाई दर कुछ बढ़ सकती है।
मगर इसके बावजूद छोटी अवधि के संकेतों को नजरअंदाज करके भविष्य के प्रति सावधान रहने और जिद्दी बनने के बीच एक बारीक लकीर होती है। हमारा मानना है कि आरबीआई इस लकीर को पार नहीं करेगा और इस बार ब्याज दरों में 0.25% की कटौती करेगा। महँगाई को नीचे लाने वाले कुछ कारक भले ही तात्कालिक हों, पर आरबीआई केंद्रीय (कोर) महँगाई में आयी नरमी को भी पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकता है। इसके 40% से अधिक घटक निरंतर गिरावट दिखा रहे हैं, जो इस बात का संकेत है कि वास्तविक अर्थव्यवस्था अपनी संभावना से काफी नीचे चल रही है। हालाँकि दर में कटौती को आरबीआई के रुख में बदलाव के रूप में देखे जाने से भी बचना बेहतर होगा। इसलिए मौद्रिक नीति के संदेश में अनिच्छा से की गयी कटौती वाला भाव रह सकता है, जिसमें बहुत-सी बातें साथ में जोड़ी गयी हों।
अगले कुछ महीने घरेलू और वैश्विक दोनों परिदृश्य में काफी घटनाओं से भरे रहेंगे। जी-7 देशों के केंद्रीय बैंक अपनी बैलेंस शीट में सुधार शुरू कर सकते हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व नीतिगत दर को बढ़ा सकता है। वहीं भारत में कृषि ऋण माफी और इसके लिए धन के स्रोत के पूरे विवरण सामने आ सकते हैं। एक बार धूल बैठ जाने पर 2017-18 की चौथी तिमाही में फिर से एक बार ब्याज दर में कटौती की संभावना बन सकती है, पर अभी से उसके बारे में कहना जल्दबाजी होगी। (शेयर मंथन, 31 जुलाई 2017)

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