वित्तीय सुधार के लिए बैंक क्रेडिट की डिलीवरी के दिशानिर्देश से बढ़ेगा रिफायनेसिंग का खतरा

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) ने बैंक ऋण की डिलीवरी के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के दिशानिर्देशों से छोटी से मध्यम अवधि में कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए रिफाइनेंसिंग के जोखिम बढ़ जायेंगे, जबकि कर्जदार के रूप में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर सीमित प्रभाव पड़ेगा।

ऐसे माहौल में जब ब्याज दरों में सख्ती की जा रही हो और बैंकों एवं पूँजी बाजार में जोखिम लेने की इच्छा कम होती जा रही हो, तो ऐसे में इन दिशानिर्देशों से भारतीय कॉर्पोरेट कर्जदारों के ऋण व्यवहार में व्यापक बदलाव की आवश्यकता होगी।
नये दिशानिर्देशों में कहा गया है कि मंजूर की गयी 1.5 अरब रुपये और उससे अधिक की फंड-आधारित कार्यशील पूँजी सीमा (ऐड हॉक सीमा और अस्थायी ओवरड्राफ्ट सहित, निर्यात क्रेडिट और बिल डिस्काउंटिंग को छोड़ कर) में कम-से-कम 40% 'ऋण घटक' (डब्लूसीएल) शामिल होना चाहिए। शेष राशि को 1 अप्रैल 201 9 से प्रभावी नकद क्रेडिट सीमा के रूप में स्वीकृत किया जा सकता है। पूरे डब्लूसीएल घटक का उपयोग करने के बाद ही कर्जदार को नकद ऋण वाले हिस्से का उपयोग करने की अनुमति दी जायेगी। इन दिशानिर्देशों के अनुसार 1 जुलाई 2019 से डब्लूसीएल का हिस्सा बढ़ा कर 60% करने की आवश्यक होगी। (शेयर मंथन, 10 दिसंबर 2018)